Sunday, November 17, 2024
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आपका बच्चा रहता है बीमार, कहीं वास्तु दोष तो नहीं जिम्मेदार!

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बच्चे किसी घर के ही नहीं बल्कि एक देश का भी भविष्य होते हैं। एक समय था जब यह आमधारणा देखी जाती थी बच्चे कभी बीमारी ही नहीं होते थे लेकिन आज अगर हम देखें तो हर घर में बच्चें बीमार रहते हैं। यहाँ तक कि छोटी सी उम्र में ही उन्हें ऐसे ऐसे गंभीर रोग हो जाते हैं जिसका शायद उनके परिजन अंदाज़ा भी नहीं लगा सकते हैं। ऐसे में चिकित्सक की सलाह तो ज़रूरी है ही साथ ही सनातन संस्कृति के अनुकूल चलें तो हम वास्तु दोषों का परिहार करके इस स्थिति से उबर सकते हैं। वास्तु शास्त्र, एक सामंजस्यपूर्ण रहने की जगह बनाने के बारे में निर्देश देता है जो बच्चे के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर सकारात्मक प्रभाव डालता है।

धन्यं यशस्यं आयुष्यं स्वास्थ्यं परमं सुखम्। सर्वसुखं मलं नास्ति, स्वास्थ्यं सुखमुत्तमम्॥ इसका आशय है धन, यश, आयु, स्वास्थ्य और परम सुख – ये सभी जीवन में आवश्यक हैं। सभी सुखों में स्वास्थ्य सबसे महत्वपूर्ण है। शरीर का स्वास्थ्य ही उत्तम सुख का आधार है। स्वास्थ्य के लिहाज से बच्चे के कमरे की दिशा महत्वपूर्ण है। बच्चों के कमरे के लिए पूर्व, उत्तर या उत्तर-पूर्व एक आदर्श दिशा है। माना जाता है कि ये दिशाएं बच्चे के बौद्धिक और शारीरिक विकास को बढ़ाती हैं। बच्चे का कमरा दक्षिण या दक्षिण-पश्चिम में नहीं होना चाहिए।

माना जाता है इन दिशाओं से स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं होने की आशंका रहती है। बच्चों का बेडरूम नकारात्मक दिशा या कम ऊर्जा वाली दिशा में न बनाया गया हो। अगर दिशा बच्चों के लिए अनुकूल नहीं है, तो उन्हें डॉक्टर के पास जाना पड़ सकता है। अगर आप अक्सर अपने बच्चों के विकास को लेकर चिंतित रहते हैं और बार-बार डॉक्टर के पास जाते हैं, तो उनके बेडरूम की दिशा की जाँच करने के लिए किसी पेशेवर वास्तु विशेषज्ञ से सलाह अवश्य लें।

हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि बच्चे के कमरे में बिस्तर लगाते समय यह सुनिश्चित करें कि उसका सिर पूर्व या दक्षिण दिशा की ओर हो। ऐसा माना जाता है कि यह बेहतर फोकस और समग्र कल्याण को बढ़ावा देता है। बच्चे का सिर उत्तर दिशा की ओर रखने से बचना चाहिए, क्योंकि यह अशुभ माना जाता है तथा ऐसा होने पर बच्चे के मन में नकारात्मक विचार आते हैं और वह माइग्रेन जैसी गंभीर बीमारियों से भी ग्रस्त हो सकता है।

आज कल यह देखा जाता हैं की बच्चों के कमरे में कौनसा रंग करवाना है इस पर कोई गंभीर रुप से विचार नहीं किया जाता है जबकि यह कोई सामान्य सी बात नहीं है कमरे में रंग संयोजन का सीधा असर बच्चे के मन पर पड़ता है । बच्चे के बेडरूम के लिए हल्के रंग चुनें। नीले, हरे या गुलाबी रंग के सॉफ्ट शेड अच्छा ऑप्शन हैं। गहरे या आक्रामक रंगों के प्रयोग से बचें क्योंकि ये बेचैनी की भावना पैदा कर सकते हैं। प्रसन्नतापूर्ण और प्रेरणादायक दीवार सजावट शामिल करें जो बच्चे की रचनात्मकता और सकारात्मकता को बढ़ाती है।

बच्चे के कमरे को साफ सुथरा और अव्यवस्था मुक्त रखें। माना जाता है कि अव्यवस्था सकारात्मक ऊर्जा के प्रवाह में बाधा डालती है। व्यवस्थित स्थान बच्चों में अनुशासन और एकाग्रता की भावना को बढ़ावा देने में मदद करते हैं। यह सुनिश्चित करें कि बच्चे के कमरे में पर्याप्त प्राकृतिक रोशनी और उचित वेंटिलेशन हो। सूरज की रोशनी विटामिन डी का एक प्राकृतिक स्रोत है और अच्छे स्वास्थ्य को बनाए रखने में मदद करती है। उचित वेंटिलेशन ताजी हवा का निरंतर प्रवाह सुनिश्चित करता है, जो समग्र कल्याण के लिए आवश्यक है।

यदि आपका बच्चा स्कूल जाने की उम्र का है, तो कमरे में अच्छी रोशनी वाला और व्यवस्थित अध्ययन क्षेत्र होना आवश्यक है। यह क्षेत्र कमरे के पूर्व या उत्तर भाग में होना चाहिए, क्योंकि ये दिशाएं ज्ञान और विद्या से जुड़ी हैं।

बच्चों के कमरे में इनडोर पौधों को शामिल करने से हवा की गुणवत्ता बढ़ सकती है और एक ताज़ा वातावरण बन सकता है, लेकिन कांटेदार या कैक्टस के पौधों से बचें, माना जाता है कि ये नकारात्मकता लाते हैं।

बच्चे के कमरे में दर्पण लगाने से बचें, विशेष रूप से ऐसे तरीके से जो बच्चे के सोने के क्षेत्र को प्रतिबिंबित करता हो। दर्पण बच्चे की नींद में खलल डाल सकते हैं और बेचैनी पैदा कर सकते हैं।

बच्चों के कमरे में खिलौने बहुत अच्छे लगते हैं, लेकिन टूटे हुए खिलौने बच्चे के कमरे में नहीं होने चाहिए। टूटे हुए खिलौने बच्चे के अंदर नकारात्मकता भर सकते हैं। इसका बुरा असर बच्चों की सेहत पर भी देखने को मिल सकता है।

घर का ईशान कोण ऊंचा हो और बाकी सभी दिशाएं उससे नीची हों तो भी घर के बच्चो को गंभीर बीमारी होने की आशंका बनी रहती है। किसी घर में वो नैऋत्य कोण में निर्माण कार्य नहीं हुआ हो और वहाँ पर यदि शौचालय बना हुआ तो ऐसी स्थिति में भी बच्चों को गंभीर रोग होने की आशंका रहती हैं।

सबसे महत्वपूर्ण बात बच्चे अपनी भावनाओं को कैसे नियंत्रित करें। अगर माता-पिता स्वस्थ भावनात्मक अभिव्यक्ति और प्रभावी मुकाबला रणनीतियां अपनाते हैं, तो बच्चों में उन कौशलों को विकसित करने की अधिक संभावना होती है। -सुमित व्यास, एम.ए (हिंदू स्टडीज़), काशी हिंदू विश्वविद्यालय, वाराणसी, मोबाइल – 6376188431

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