Sunday, December 22, 2024
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मुखिया को सटीक निर्णय लेने में सक्षम बनाता है नैऋत्य कोण

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महाभारत के वनपर्व में कहा गया है- नैऋत्यां दिशि स्थितो यो राजा वरुणः पाशहस्तः। इसका आशय है नैऋत्य दिशा में स्थित राजा वरुण हाथ में पाश लिए हुए हैं। नैऋत्य कोण घर का सबसे महत्त्वपूर्ण स्थान होता है। यहाँ पर किसी प्रकार का वास्तुदोष होने का कुप्रभाव प्रमुख रूप से मुखिया को प्रभावित करता है। जब मुखिया पीड़ित होगा तो घर के अन्य सदस्यों का पीड़ित होना लाजमी है। यह स्थायित्व और मजबूत निर्माण का स्थान है। यहाँ की दीवारें मोटी और ऊँची होनी चाहिये। इस कोण को भूमिगत जल का टैंक, जल की व्यवस्था, जल की निकासी, मुख्यद्वार, जमीन का नीची होना अशुभ होता है। इस कोण का वास्तुदोष जीवन में विभिन्न प्रकार की समस्याओं का कारण बनता है। इससे स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्या, शत्रुओं का बलवान होना, मुकदमेबाजी के चक्कर में उलझना जैसी बाधायें रहती हैं। इनसे बचने के लिये इस कोण वास्तुदोषों से मुक्त रखना आवश्यक है।

जब किसी भवन का विस्तार नैऋत्य कोण की ओर हो, तो वह अत्यधिक अशुभ माना जाता है। इस प्रकार के भवन में निवास करने वाले लोगों को निरन्तर दुर्घटनाओं का सामना करना पड़ता है । घर का मुखिया जो भी कार्य करता है, उसमें असफलता ही प्राप्त होती है। उस घर में नकारात्मक ऊर्जा इतनी अधिक रहती है कि वहाँ निवास करने वाला आदमी चाह कर भी कोई उचित कदम उठा ही नहीं पाता है। नतीजा उसके जीवन में निरन्तर कठिनाइयां बनी रहती हैं। उसका सामाजिक, आर्थिक व पारिवारिक सुख अव्यवस्थाओं की भेंट चढ़ जाता है। यदि नैऋत्य कोण के साथ पश्चिम दिशा में भी विस्तार हो, तो यह स्थिति ओर भी अशुभ परिणाम देने वाली रहती है। इस तरह के घर में रहने वालों को रोगों का सामना करना पड़ता है।

वास्तु शास्त्र के अनुसार, नैऋत्य कोण के खाली होने का प्रभाव आपकी आर्थिक स्थिति पर भी पड़ता है। यदि नैऋत्य कोण को खाली रखा जाए तो घर के स्वामी को आर्थिक संकटों से जूझना पड़ सकता है। इसलिए घर की इस दिशा को हमेशा भारी रखना चाहिए।

वास्तु रत्नावली में कहा गया है- नैऋत्ये शून्यगृहं वा मृतिभयं प्रजायते। धनक्षयः सततं च रोगव्याधिसमाकुलम्॥ इसका आशय है “नैऋत्य दिशा में घर खाली या शून्य होने पर मृत्यु का भय उत्पन्न होता है। इस दिशा में दोष होने से निरंतर धन की हानि होती है और रोग-व्याधियों की समस्या बनी रहती है।”

नैऋत्य कोण में साफ-सफाई ना रखने या गंदे होने से ना केवल मानसिक तनाव में वृद्धि नहीं होती है बल्कि आपसे ईर्ष्या रखने वाले लोग भी अधिक होते हैं। वहीं यदि आप किसी कोर्ट-कचहरी के मुकदमे में फंसे हैं तो उसमें जीत हासिल करने में भी ढेरों समस्याएं पैदा होने लगती हैं। नैऋत्य कोण में रसोईघर का होना व्यक्ति के व्यावसायिक जीवन में अस्थिरता का कारण बनता है। ऐसे घर में रहने वाले लोग अपनी पूरी योग्यता के अनुरूप काम नहीं कर पाते है। सनातन व वास्तु शास्त्र में आस्था रखने वालों को नैऋत्य कोण में रसोई का निर्माण करने से बचना चाहिए।

इस कोण में मंदिर होने पर ना तो पूजा करने में मन लगता है और ना ही पूजा का कोई सकारात्मक फल मिलता है। नैऋत्य कोण शौचालय के लिए बहुत ज्यादा उपयुक्त स्थान नहीं है। यहां शौचालय होने पर उस घर में रहने वाले लोगों की सोच में सकारात्मकता का अभाव मिलता है । घर के लोगों की फिजूलखर्ची भी बढ़ जाती है। वास्तु ग्रन्थ समरांगण सूत्रधार में कहा गया है- नैऋत्ये धननाशः स्यात् रोगभयसमन्वितम्। दोषयुक्तं गृहं ज्ञेयं मरणं च निरन्तरम्। इसका आशय है कि नैऋत्य कोण में दोषयुक्त घर में धन की हानि होती है, रोग और भय बना रहता है और निरंतर मृत्यु का भय बना रहता है।

यह दिशा घर में स्थिरता के लिए जानी जाती है इसलिए इस दिशा में घर के मुखिया का शयन कक्ष शुभ माना जाता है। यहां रहने पर मुखिया का आदर होता है और घर के लोग उसकी बात का भी सम्मान करते हैं। वह मुखिया बड़े व मजबूत निर्णय लेने में सक्षम होता है। इस दिशा में आप भारी सामान रख सकते हैं या फिर आपको इस दिशा को अन्य दिशाओं से थोड़ा भारी बना करके रखना चाहिए। नैऋत्य कोण में मालिक का स्थान होने से घर में धन, धान्य और समृद्धि आती है, और यह स्थान राजाओं के भवनों में भी सर्वश्रेष्ठ माना जाता है।

इस दिशा में सीढ़ियों का निर्माण भी घर में बढ़ने वाले नकारात्मक प्रभाव को रोकता है। सीढियों में वजन होने के कारण इस दिशा के दोष भी दब जाते हैं। नैऋत्य के महत्व के बारे में कहा गया है- “नैऋत्य कोणे स्थिति देवता वरुण स्थान, धन समृद्धि का घर में वास। रोग शोक मिटे सुख समृद्धि बढ़े, नैऋत्य कोणे स्वामी स्थान सर्वश्रेष्ठ हो।” इसका आशय है नैऋत्य कोण में वरुण देवता का स्थान होता है, जो धन और समृद्धि का प्रतीक है। इस कोण में स्वामी का स्थान होने से घर में सुख और समृद्धि बढ़ती है, और रोग और शोक मिट जाते हैं। यदि चाहकर भी दोष मिटा नहीं पा रहे तो इस दोष के निवारण के लिए भगवान शिव को रोज जल अर्पित करें और राहु-केतु के निमित्त सात प्रकार के अनाज का दान करें। –सुमित व्यास, एम.ए. (हिंदू स्टडीज़), काशी हिंदू विश्वविद्यालय, वाराणसी, मोबाइल – 6376188431

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