








ऋषियों के द्वारा पुराणों में सनातन धर्म का वैज्ञानिक स्वरूप मिलता है, जिसे धर्म में रखकर महर्षियों ने इस विज्ञान को आम जन तक पहुँचाने का प्रयास किया है, आज आवश्यकता है इसे पुराणों से निकाल कर शोध के माध्यम से सामने लाने की कुछ तथ्य इस लेख के माध्यम से प्रस्तुत कर रही हूँ।
पीपल का महत्त्व : हमारे हिंंदू धर्मशास्त्रों में अश्वत्थ (पीपल) की महिमा बताई गई है। अथर्ववेद की शौनक संहिता में लिखा हैं:-‘अश्वत्थों देवसदन’ (शौ. सं. ५/४/१) पीपल को देवताओं का घर ही कहा है। अतएव उसकी पूजा से भी देवताओं की पूजा होती है। ‘अश्वत्थः सर्ववृक्षाणां’ (गीता १० / २६) कहकर भगवान् कृष्ण ने भी पीपल को अपनी विभूति स्वीकार किया है। उन्होंने सम्पूर्ण जगत् को अश्वत्थ का प्रतिरूप माना है (देखिये गीता का पुरुषोत्तम योग)। अश्वत्व का ज्ञान से भी बहुत निकट का सम्बन्ध है। पीपल वृक्ष के नीचे ध्यान जप या मंत्रपाठ करने पर शीघ्र सिद्धि प्राप्त होती है। महाज्ञानी काकभुशुण्डिजी पीपल के नीचे ही ध्यान एवं जप करते थे।
तुलसीदास जी ने “रामचरितमानस’ में लिखा है- “पीपर तरुतर ध्यान सो धरड़ी” हिंंदू धर्म के अनुसार, विष्णु के 23वें अवतार भगवान बुद्ध को भी ज्ञान की प्राप्ति अश्वत्थ वृक्ष के नीचे ही हुई थी। इससे पूर्व छठे अवतार दत्तात्रेय जी भी अश्वत्थ के नीचे ध्यान लगाया करते थे, इस बात का उल्लेख शास्त्रों में मिलता है। आयुर्वेद जो कि ऋग्वेद का उपवेद है, में भी अश्वत्थ की महिमा सबसे बढ़कर कही गई है। लौकिक दृष्टि से पीपल का वृक्ष पुत्रप्रदाता माना गया है। स्त्री के बन्ध्यात्व दोष को हटाने की इसके बीजों में अद्भुत क्षमता है। -अंजना शर्मा (लिपि विशेषज्ञ) प्रबन्धक, देवस्थान विभाग, राजस्थान सरकार





