Monday, April 28, 2025
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संस्कृत संस्कृति का संरक्षक संग्रहालय : पद्मश्री नारायण दास संग्रहालय एवं पांडुलिपि शोध संस्थान

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राजस्थान के विशाल प्रान्त में जयपुर का योगदान भी इस दृष्टि से पर्याप्त समुन्नत रहा है। यहाँ के शासकों ने अनेक विद्वानों का ससम्मान आश्रय प्रदान कर साहित्य परिवर्द्धन में पर्याप्त सहयोग दिया है। यद्यपि बहुत कुछ साहित्य कालवश नष्ट भी चुका है, तथापि अनेक भण्डार, पुस्तकालय, संग्रहालय अब भी अपने अंक में अनेक बहुमूल्य ग्रंथों को छिपाये हुए है। इन संग्रहालयों में से कतिपय व्यक्तिगत हैं तथा कतिपय राज्याश्रित। इनमें हस्तलिखित ग्रन्थों के साथ-साथ प्रकाशित परन्तु अब दुर्लभ अनेक ग्रंथ हैं (प्रिन्टेड रेयर बुक्स)। यहाँ ऐसे ही एक संग्रहालय का उल्लेख किया जा रहा है, जो वास्तव में इस संरक्षण के द्वारा जयपुर के संस्कृत साहित्य के इतिहास निर्माण में सहायक हो रहे हैं। पद्मश्री नारायण दास संग्रहालय एवं पांडुलिपि शोध संस्थान जयपुर इसकी स्थापना तो कुछ ही वर्षों पूर्व हुई पर संग्रह की दृष्टि से यह अति प्राचीन संग्रहालय है। जयपुर के विजेंद्र बंसल द्वारा कम आयु में ही ग्रंथों को संरक्षण करने का कार्य प्रारंभ कर दिया।

ग्रंथों के साथ-साथ हिसाब किताब की पुरानी बहियां, राजसी वस्त्र, अस्त्र-शस्त्र तथा दैनिक उपयोग की प्राचीन वस्तुओं के प्रति आकर्षण में इस संग्रह को विराट संग्रहालय का रूप दे दिया इसमें साहित्यिक दृष्टि से देखा जाए तो लगभग 40000 से अधिक पांडुलिपियों का संग्रह हैं। जो विभिन्न विषयों पर आधारित हैं।

इस संग्रहालय में ज्योतिष शास्त्र, विमान शास्त्र, आयुर्वेद शास्त्र, तंत्र शास्त्र, हिंदी साहित्य, संस्कृत साहित्य, राजस्थानी साहित्य, वेदांत दर्शन, धर्मशास्त्र, व्याकरण शास्त्र, पुराण, उपनिषद, कोष ग्रंथ, इतिहास आदि विभिन्न विषयों पर आधारित ग्रंथों का संग्रह है। गोस्वामी तुलसीदास कृत रामचरितमानस की प्राचीन पांडुलिपियां सर्वाधिक मात्रा में इसी संग्रहालय में उपलब्ध हैं। -डॉ. सुभद्रा जोशी, निदेशक, पद्मश्री नारायण दास संग्रहालय एवं पांडुलिपि शोध संस्थान, जयपुर

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