Monday, May 20, 2024
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पुष्‍करणा सावे में आडम्‍बर, दिखावे को देनी होगी तिलांजलि

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बीकानेर Abhayindia.com मेरे समाज जनों, आओ, बढाएं पुष्‍करणा सावे का मान। इसके अंतर्गत आज हम हमारी दिव्य परंपराओं की चर्चा करते हैं। हमारे यहां जब दो परिवारों में वैवाहिक संबंध अथवा रिश्ता तय होता है तो दोनों को एक-दूसरे का सगा कहा जाने की परंपरा है। देखिए तो कितना मधुर संबंध हमारे बुजुर्गों द्वारा निर्मित किया गया है सगा। एक बार फिर निवेदन करता हूं सगा शब्द पर विशेष ध्यान देकर इसका अर्थ समझेंं। सगा यानि वह व्यक्ति जो परस्पर अपने सगे का अथवा तो संबंधी का हर दृष्टि से ध्यान रखता है। जो अपने सगे का सामाजिक, आर्थिक, पारिवारिक मान सम्मान कभी ना बिखरने दें वह सगा। हम अपने बुजुर्गों का किस मुंह से धन्यवाद करें उन्होंने हमें एक दिव्य शब्द दिया सगा।

मेरे निवेदन पर थोड़ी सी ध्यान अवस्था में नाभि से बोलिए…सगा। मेरा आत्मीय बंधु साक्षात परमपिता का स्वरूप मेरा…सगा। मेरा आत्मीय बंधु मेरा आत्मीय बंधु और ऐसा बंधु जो कहता है विश्वास करो मैं किसी भी स्थिति में तुम्हारी पाग की इज्जत को गिरने नहीं दूंगा। ऐसी भावना शायद हमारे बुजुर्गों की रही होगी। आज भी हम हमारे बुजुर्गों का विश्वास डूबने नहीं दे रहे हैं। हालांकि, वर्तमान समय में कहीं-कहीं इसका अपवाद भी देखने को मिलता है कि जिन्हें परमात्मा ने थोड़ा बहुत संपन्न बना दिया है वह अपने खर्च को इस प्रकार प्रदर्शित करते हैं कि सगे की पगड़ी उछल जाए।

मित्रों, एक पल के लिए मनन करें की क्या हम परमात्मा की दी हुई इस संपदा को इस प्रकार खर्च नहीं कर सकते कि खर्च की गई संपदा भावी पीढ़ी के काम आए, ना कि एक रात के कार्यक्रम के पीछे दोनों ही पक्ष प्रतिस्पर्धा के रूप में इतना खर्च कर देते हैं जो कहीं काम नहीं आता। मेरा निवेदन दोनों पक्षों से कि दोनों पक्ष मिलकर आपसी सहमति से ऐसा विधान चुने जो आडंबर से परे हो स्वार्थी बाजार हमारे पर प्रभावी नहीं हो हम ऐसा खर्च करें जिसे हमारे बुजुर्ग कहते थे। धाए रो श्रृंगार भूखेरो आधार। फिर निवेदन करता हूं… धाए रो श्रृंगार भूखे रो आधार। मित्रों, समाज जनों अभी भी समय है हम अपने आप को बाजार का गुलाम ना बनाएं। फिल्मीस्तान की नकल ना करें। भौतिकवादिता से अपने आप को दूर करें। परमात्मा की दी हुई संपदा परस्पर विश्वास से सदुपयोग करें। निवेदन करना परमात्मा की कृपा से मेरा काम मानना या न मानना यह आपका काम और होगा वही जो हमारी पुष्करणा समाज की कुलदेवी मां उष्ट्र वाहिनी कृपा होगी। -रमेश कुमार रंगा, शिक्षाविद्, बीकानेर

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