सनातन धर्म में प्रत्येक व्यक्ति अपने घर में एक मंदिर बनाता है तथा वह समयानुसार कुछ वक्त ईश्वर को याद करने में देता ही है ताकि उसका जीवन सुख समृद्धि से परिपूर्ण रहें। ऐसे में यदि व्यक्ति मंदिर से संबंधित कुछ बिंदुओं का ध्यान रखें तो उसको बहुत लाभ मिल सकता है तथा उसकी यह शिकायत – “ इतना करने पर भी कुछ नहीं मिल रहा” यह दूर हो सकती है।
पूजा घर में जल से भरा कलश मंगलकारी माना जाता है। दरअसल, हम जल को शुद्ध तत्व मानते हैं, जिससे ईश्वर आकृष्ट होते हैं। इसे मंगल कलश भी कहा जाता है। एक कांस्य या ताम्र कलश में जल भरकर उसमें कुछ आम के पत्ते डालकर उसके मुख पर नारियल रखा होता है। कलश पर रोली, स्वस्तिक का चिह्न बनाकर, उसके गले पर मौली (नाड़ा) बांधी जाती है। जल कलश में पान और सुपारी भी डालते हैं। देव पूजा उत्तरमुख होकर और पितरों की पूजा दक्षिण मुख होकर करनी चाहिए। केश खोलकर आचमन और देव पूजन नहीं करना चाहिए इससे दरिद्रता का आगमन होता है। भगवान् की उपासना करते समय दीपक का स्पर्श करने पर हाथ धो लेना चाहिये, अन्यथा दोष लगता है। दीपं स्पृष्ट्वा तु यो देवि मम कर्माणि कारयेत्। तस्यापराधाद्वै भूमे पापं प्राप्नोति (वराहपुराण १३६।१)।
भारतीय वास्तुशास्त्र में घर के पूजा घर में कुछ वस्तुओं को रखने की मनाही है। कुछ वस्तुएँ हैं जो पूजा घर में नहीं होनी ही नहीं चाहिए। जैसे श्मशान से लाई गई वस्तुएँ, तोड़फोड़ की वस्तुएँ, मृत पशुओं की तस्वीरे, अश्लील चित्र, दरिद्रता के प्रतीक, खंडित मूर्तियाँ, अशुद्ध वस्तुएँ व जुआ खेलने के सामान को पूजा घर में रखने से अशुभ परिणाम हो सकते हैं। प्रमुख भारतीय वास्तु ग्रन्थ में कहा गया है- श्मशानादागतं द्रव्यं पूजास्थाने न कुर्यात्”। कैंची को पूजा स्थल और सोने के कमरे जैसी पवित्र जगहों पर नहीं रखना चाहिए। कैंची को हमेशा कपड़े या कागज़ में लपेटकर रखना चाहिए। यदि पूजाघर में खंडित मूर्ति या तस्वीर रखी है तो उसे तुरंत हटा दें। यह शुभ नहीं मानी जाती है। इससे घर में नकारात्मक ऊर्जा का वास हो जाता है। किसी भी देवी या देवता की रौद्र रूप की तस्वीर घर में नहीं लगाना चाहिए।
मान्यताओं के मुताबिक, शंख बजाने से ईश्वर का आशीर्वाद मिलता है और मनोकामनाओं की पूर्ति होती है।शंख से निकलने वाली ध्वनि सभी बाधाओं और दोष को दूर करती है। मान्यता है कि जिस घर में शंख होता है, वहां पर माता लक्ष्मी की कृपा बरसती है। शंखं चन्द्रार्कदैवत्यं वरुणं चाधिदैवतम्। पृष्ठे प्रजापतिं विद्यादग्रे गङ्गासरस्वती।। शंख की तरह घंटी की मधुर ध्वनि के साथ पूजा करने से मन एकाग्रचित होता है। आगमार्थन्तु देवानां गमनार्थन्तु रक्षसाम्। कुरु घण्टे वरं नादं देवतास्थानसन्निधौ।। शालग्राम, तुलसी और शंख-इन तीनों को एक साथ रखने से भगवान् बहुत प्रसन्न होते हैं। शालग्राम तथा शंखपर रखी हुई तुलसी को अलग करना पाप है। शालग्राम से तुलसी अलग करने वाले को जन्मान्तर में स्त्री-वियोग की प्राप्ति होती है और शंख से तुलसी अलग करने वाला भार्याहीन तथा सात जन्मों तक रोगी होता है।
इसके अलावा कटी-फटी धार्मिक पुस्तकें भी नहीं रखनी चाहिए। पूजा घर में बासी फूल, हार या अनुपयोगी पूजा सामग्री तुरंत हटा देना चाहिए। घर के पूजाघर में कभी भी खंडित या टूटे हुए चावल न रखें। चावल को हल्दी में भिगोगर ही रखें। यदि आपने पूजाघर में अपने पितरों की तस्वीर रखी हैं तो उसे तुरंत हटा दें। वास्तु शास्त्र मृत परिजनों की तस्वीर रखना अशुभ मानता है। हिन्दू धर्म में सिर्फ देवताओं की पूजा का विधान है। पूजाघर में किसी साधु या संत की मूर्ति या चित्र न रखें। सनातन धर्म में पूजा के समय धूप, दीप और अगरबत्ती जलाने का विधान है। इससे घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। लोग रोजाना स्नान-ध्यान के पश्चात देवी-देवताओं की पूजा-उपासना करते हैं। इस दौरान धूप, दीप और अगरबत्ती जलाते हैं। घी का दीपक देवता के दायें भागमें और तेल का दीपक बायें भागमें रखना चाहिये। घृतदीपो दक्षिणे स्यात् तैलदीपस्तु वामतः। (मन्त्रमहोदधि २२। ११९) आमतौर पर धूप दीप प्रज्वलित करने के बाद माचिस और उसकी जली तीली मंदिर में ही रख देते हैं। ऐसा नहीं करना चाहिए। अगर घर का मंदिर अस्त-व्यस्त या गंदा है तो घर में कभी भी सुख-शांति नहीं रहेगी। कई कारणों से ना चाहते हुए भी वास्तु दोष रह जाता है।
नवरात्र में कन्या पूजन के समय एक वर्ष की अवस्था वाली कन्या नहीं लेनी चाहिये। ‘कुमारी’ वही कहलाती है, जो कम-से-कम दो वर्ष की हो चुकी हो। तीन वर्ष की कन्याको ‘त्रिमूर्ति’ और चार वर्ष की कन्याको ‘कल्याणी’ कहते हैं। पाँच वर्षवाली को ‘रोहिणी’, छः वर्षवाली को ‘कालिका’, सात वर्ष वालीको ‘चण्डिका’, आठ वर्षवाली को ‘शाम्भवी’, नौ वर्षवाली को ‘दुर्गा’ और दस वर्षवाली को ‘सुभद्रा’ कहा गया है। इससे ऊपर अवस्था वाली कन्या की पूजा नहीं करनी चाहिये। वह सभी कार्यों में निन्द्य मानी जाती है। (देवीभागवत ३। २६।४०-४३)
सनातन धर्म के अनुसार, जिन घरों में वास्तुदोष हो वहां सुख-शांति के लिए शिवलिंग पर अभिषेक करने के उपरान्त जलहरी के जल को घर लाकर उससे “नमः शिवाय “ ये मंत्र जपते हुए पूरे भवन में छिड़काव करना चाहिए। ऐसा करने से वहां उपस्थित सभी नकारात्मक शक्तियां दूर हो जाती हैं। कार्य में विघ्न-बाधा,आपसी कलह, रोग आदि परेशानियों को दूर करने के लिए घर के उत्तर-पूर्व (ईशान) या ब्रह्म स्थान में रुद्राभिषेक करना शुभ परिणाम देता है। -सुमित व्यास, एम. ए. (हिंदू स्टडीज़), काशी हिंदू विश्वविद्यालय, वाराणसी, मोबाइल – 6376188431
जीवन में प्रोग्रेस का रास्ता खोलता है वास्तुपूर्ण पूजा घर (1)