जयपुर Abhayindia.com वैदिक काल के पश्चात जब मूर्ति पूजा होने लगी। ईश्वर के वर्णित स्वरूप को साकार रूप में पूजा जाने लगा तो संपूर्ण देश में देवों को स्थापित किया गया। देवस्थान काल, स्थिति, संस्कृति के अनुसार बनाए गए देव मूर्तियों का स्वरूप भी भिन्न-भिन्न था। मंदिरों के निर्माण की शैली भी पृथक थी। पर एक समानता रही वह था “गर्भगृह”। सभी मठ मंदिरों में गर्भगृहों की स्थापना होने लगी जिसमें आमजन का प्रवेश निषेध था। ऐसा क्या था? गर्भगृह निर्माण की क्या आवश्यकता थी। कौन से पवित्र और बहुमूल्य वस्तु थी जिसे छुपाने के लिए गर्भगृह बनाए गए जिसे सुरक्षित और संरक्षित रखा जा सके। वह थे हमारे ज्ञान संस्कृत के धरोहर हस्तलिखित ग्रंथ (पांडुलिपियों) जिसे प्राचीन समय से ही बहुमूल्य माना गया। आक्रमणकारियों की नजर से बचाने के लिए, प्राकृतिक आपदाओं से सुरक्षित करने के लिए तथा लंबे समय तक इस पवित्र अति बहुमूल्य निधि को सुरक्षित संवर्द्धित करने के लिए देवस्थानों में गर्भगृह बनाकर इन्हें रखा गया।आजकल देवता की मूर्ति रखने के स्थान को ही गर्भगृह कहा जाता है, जबकि ये तल घर ही गर्भगृह थे।
प्राचीन भारत की वैज्ञानिकता यह है कि कर्क रेखा भारत के मध्य में होकर के गुजरती है जो कि भारत को दो भागों में विभाजित करती है। उत्तर और दक्षिण। दक्षिणी हिस्सा उष्णकटिबंधीय का भाग है और उत्तरी उपोष्ण कटिबंधीय का। इस कारण गर्भगृहों की गहराई इस आधार पर बनाई गई। उष्ण को गहरा और उपोष्ण भाग में कम गहरा जिससे ग्रंथालय को एक समान तापमान में सुरक्षित रखा जा सके। आज पुनः हमें इस वैज्ञानिकता व ग्रंथों की महत्व पर विचार करना चाहिए जिससे दीर्घकाल से सुरक्षित होती आ रही इस ज्ञान राशि को अक्षुण्ण बनाया जा सके। -अंजना शर्मा (ज्योतिष दर्शनाचार्य)(शंकरपुरस्कारभाजिता) पुरातत्वविद्, अभिलेख व लिपि विशेषज्ञ प्रबन्धक, देवस्थान विभाग, जयपुर