धीर धरो…
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फिर निकलेगा
सुख का सूरज धीर धरो
बंदिशें जो आज लगी है
तेरे ही कल को बचायेगी
फिर से होगा खुला गगन
और खुली हवा तुम धीर धरो।
घर को संसार समझ
खोजो नित नया यहाँ
बच गये आज अगर
बच जाएगा जहां यह धीर धरो।
भौतिकता की दौड़ में
सर पर पाँव रखकर दौड़े
अब अवसर है एकांत-
चिंतन में खुद को मोड़ धीर धरो।
रिश्तों में मिठास भरने
का भरपूर समय है अब
जगा फिर से वह शौक
जो था छूटा सा तब धीर धरो।
मिट्टी से वास्ता और
माँ की लोरी सा अनुपम
तंदरुस्ती का वह माहौल
जल्द लौट आएगा बस धीर धरो।
डॉ. अनिता जैन ‘विपुला’
उदयपुर लेकसिटी।