Friday, March 29, 2024
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साधारण को असाधारण रूप से कहना ही व्यंग्य की विशेषता है : बुलाकी शर्मा

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बीकानेर Abhayindia.com जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय जोधपुर के राजस्थानी विभाग की ओर से ऑनलाइन फेसबुक लाइव पेज पर गुमेज व्याख्यानमाला श्रृंखला के अंतर्गत राजस्थानी भाषा के ख्यातनाम कहानीकार, साहित्यकार, व्यंग्यकार बुलाकी शर्मा ने कहा कि साधारण को असाधारण रूप से कहना ही व्यंग्य की विशेषता है और उसमें ही व्यंग्य की सार्थकता है।

राजस्थानी विभाग की विभागाध्यक्ष डॉ. मीनाक्षी बोराणा ने बताया कि व्याख्यानमाला में बुलाकी शर्मा ने आधुनिक राजस्थानी व्यंग्य विधा पर बोलते हुए कहा कि आज की सबसे चर्चित विधा व्यंग्य विधा है। जिसमें तात्कालिक घटनाओं को व्यंग्य के रूप में सामने लाया जा सकता है, और व्यंग्य इसीलिए भी पसंद किए जाते हैं क्योंकि इसमें विसंगतियां, विरोधाभास, दोगलापन आदि उजागर होते हैं। व्यंग्य की यह ताकत है कि जिस व्यक्ति की प्रवृत्ति पर चोट की गई है, वह पढ़-समझ कर चोट सहन करके भी बोल नहीं सकता, अंदर ही अंदर तिलमिलाकर चुप रहता है क्योंकि उसे पता है कि वह बात गलत नहीं है सत्य है। व्यंग्य में किसी व्यक्ति पर कटाक्ष या चोट करना नहीं होता बल्कि उसका उद्देश्य प्रवृत्तिगत चोट करना है।

उन्होंने कहा कि व्यंग्य में साधारण बात को असाधारण रूप से कहने का सामर्थ्य होता है, और वही व्यंग्य मजबूत बनता है। व्यंग्य का मतलब व्यंजना है। व्यंग्यकार ज्यादा कारुणिक होता है, समाज को बदलना चाहता है, समाज में सकारात्मक सोच रखता है, वह सभी के कल्याण की कामना करता है, समाज के हित चिंतन की बात करता है। उसमें सत्यम शिवम सुंदरम का भाव होता है। वह हमेशा सत्ता का विरोधी होता है, प्रतिपक्ष में खड़ा होता है। सत्ता और व्यवस्थाओं की कमियों को व्यंग्य के माध्यम से उजागर किया जाता है।

बुलाकी शर्मा ने बताया कि राजस्थानी भाषा में व्यंग्य की छोटी-छोटी रचनाएं तो बहुत पहले से ही सामने आती रही है जो कि मारवाड़ी भास्कर, मारवाड़ी हितकारक आदि पत्रिकाओं में छपती रही है। किंतु मूल व्यंग्य पर काम बहुत बाद में शुरू हुआ था। शुरुआती जो पत्र पत्रिकाएं निकलती थी वह प्रवासी राजस्थानियों ने निकाली जो कि राजस्थान के बाहर से निकलती थी और उसमें भी बहुत ही कम व्यंग्य रचनाएं थी जो कि ललित निबंध के रूप में छपी सामने आई।

उन्होंने बताया कि राजस्थान में जयनारायण व्यास आंगीवाण अखबार निकालते थे उसमें जो संपादकीय वे लिखते थे उसमें कभी-कभी व्यंग्यात्मक भाषा में उनके संपादकीय लिखे मिलते हैं। उसके बाद श्रीमंतकुमार व्यास, नरोत्तम दास स्वामी, युगल आदि के सम्पादन में 1946-47 के आस पास बहुत सी पत्रिकाओं में कुछ व्यंग्यपरक रचनाएं सामने आईं जिसमें मुरलीधर व्यास राजस्थानी, डॉ मनोहर शर्मा, कृष्ण गोपाल शर्मा, श्रीलाल नथमल जोशी आदि की व्यंग्य प्रधान वहनाएँ उल्लेखनीय हैं। उन्होंने कहा कि अन्य विधाओं को देखते हुए उस समय व्यंग्य विधा पर बहुत ही कम लिखा गया है।

बुलाकी शर्मा ने कहा कि ‘कवि कविता और घरआळी’ नाम से 1987 में मेरा व्यंग्य संग्रह प्रकाशित हुआ जो कि राजस्थानी भाषा का पहला व्यंग्य संग्रह माना जाता है। उसके बाद आज तक अगर हम देखें तो 30 से 35 व्यंग्य संग्रह ही सामने आए हैं, जिनमें बुलाकी शर्मा नागराज शर्मा, प्रहलाद श्रीमाली, शंकर सिंह राजपुरोहित, सांवर दइया, श्याम जांगिड़, श्याम गोयनका, मदन केवलिया, नंदकिशोर सोमानी, मनोहर सिंह राठौड़, हरमन चौहान, देव किशन राजपुरोहित, मंगत बादल, श्यामसुंदर भारती, सुरेंद्र शर्मा, छगनलाल व्यास, छत्र छाजेड, कैलाश दान लालस, पूरन सरमा, शरद उपाध्याय, राजेंद्र शर्मा मुसाफिर, कमल रंगा आदि व्यंग्यकारों के व्यंग्य संग्रह प्रमुख हैं और अगर हम व्यंग्य उपन्यास की बात करें तो 1921 में प्रकाशित कृष्ण कुमार आशु का ‘व्याधि उच्छब’ एकमात्र राजस्थानी व्यंग्य उपन्यास है। इसके अलावा भी व्यंग्य पर साझा संकलन, अनुवाद, संपादित व्यंग्य संग्रह आदि भी लिखे जा रहे हैं।

बुलाकी शर्मा ने कहा कि व्यंग्य विधा में और भी कई रचनाकार अपनी लेखनी के माध्यम से रचनाएँ लिख रहे हैं उनमें त्रिलोक गोयल, रमेश मयंक, रामजीलाल घोड़ेला, अंबिकादत्त, ओम नागर, दुलाराम सारण, अतुल कनक आदि ऐसे नाम हैं जो कि सटीक और कुछ न कुछ सीख देने वाले व्यंग्य सामने ला रहे हैं। उन्होंने बताया कि व्यंग्य लेखन विविध विषयों पर हो रहा है जैसे साहित्यिक क्षेत्र, सांस्कृतिक क्षेत्र, राजनीतिक क्षेत्र, सामाजिक क्षेत्र, धार्मिक क्षेत्र, आंचलिकता, गांव और कस्बों की समस्याओं आदि को लेकर, उनकी वहां व्याप्त विसंगतियों पर प्रहार करते हुए लिखे जाते रहे हैं। क्षेत्र विशेष की समस्याओं को लेकर आम जनता की समस्याओं को लेकर व्यंग्य लिखे जा रहे हैं। बुलाकी शर्मा ने कहा कि व्यंग्य लिखना और उसमें भी आत्मपरक व्यंग्य लिखना बहुत ही साहस का काम होता है क्योंकि इसमें मैं को यानी अहम को मारना आवश्यक होता है, मैं पर चोट करना ही व्यंग की सार्थकता होती है और पाठक उससे ही जुड़ता है। व्यंग्य वही होता है जो चीज बरसों बाद भी अगर हम पढ़ें तो ऐसा लगता है कि आज ही की परिस्थितियों पर लिखा गया हो।

बुलाकी शर्मा ने कहा कि व्यंग्य रचनाएं ऐसी होनी चाहिए जो कि पाठक को पढ़ते हुए ऐसा लगे कि मैं स्वयं लेखक के संपर्क में रहा हूं। व्यंग्य में छोटी-छोटी रचनाओं को हास्य का पुट देते हुए कटाक्ष किया जाता है। भाषा, शिल्प की दृष्टि से बहुत ही अलग विषयों पर कम शब्दों में बहुत गहरी बात कहने का प्रयास किया जाता है। आपने कहा कि जो व्यंग्य उपन्यास व्याधि उच्छब उपन्यास में लेखक ने कोरोना काल की विसंगतियों को तीखेपन से लिखा है, उपन्यास राजस्थानी भाषा का ही नहीं दूसरी भाषाओं के हिसाब से भी बहुत ही महत्वपूर्ण उपन्यास है।

उन्होंने अपने व्यंग्य संग्रह पर भी बात की और राजस्थानी के प्रसिद्ध व्यग्यकारो के व्यंग्य संग्रह और उनकी लेखनी पर भी प्रकाश डाला। विजय दान देथा जी ने बुलाकी शर्मा की व्यंग्य पुस्तक पढ़कर कहा कि वे राजस्थानी के परसाई हैं। बुलाकी शर्मा ने राजस्थानी व्यंग्य विधा में बहुत सी संभावनाओं पर बात की और राजस्थानी के रचनाकारों को राजस्थानी व्यंग्य विधा को आगे बढ़ाने के लिए उसे समृद्ध बनाने के लिए आगे आने को कहा और राजस्थानी विभाग द्वारा आयोजित इस गुमेज व्याख्यानमाला की बहुत प्रशंसा की।

इस ऑनलाईन व्याख्यानमाला में देश भर से बड़ी संख्या में साहित्यकार, विद्वान और शोधार्थी, विद्यार्थी जुडे रहे। जिनमें डॉ. नीरज दइया, मीठेश निर्माेही, डॉ. गजेसिंह राजपुरोहित, मोईनुदीन कोहरी, चन्द्रशेखर जोशी, राम गोपाल पारीक, मदन गोपाल लढढा, संतोष चौधरी, डॉ अनिता जैन, अंजु, दीपशिखा कविया, ममता मेहक, डॉ. नमामी शंकर आचार्य, डॉ. रामरतन लटियाल, डॉ. इन्द्रदान चारण, विष्णुशंकर, रणजीत, मुकेश राठौड़, प्रदीप भट्नागर आदि प्रमुख हैं।

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