Tuesday, November 18, 2025
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ग्रहों की ऊर्जा व वास्तु का सही समन्वय खोल सकता है समृद्धि का द्वार

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ज्योतिष और वास्तुशास्त्र दोनों ही प्राचीन भारतीय विज्ञान हैं जो हमारे जीवन को सकारात्मक दिशा में प्रभावित करने का प्रयास करते हैं। ज्योतिष और वास्तुशास्त्र दोनों ही हमारे जीवन को प्रभावित करने वाले कारकों को समझने और उन्हें संतुलित करने का प्रयास करते हैं। ज्योतिष हमारे जन्म के समय ग्रहों की स्थिति को देखकर हमारे जीवन के बारे में जानकारी प्रदान करता है, जबकि वास्तुशास्त्र हमारे आसपास के वातावरण और निर्माण को संतुलित करने का प्रयास करता है। दोनों ही विज्ञान ऊर्जा के संतुलन पर जोर देते हैं।

ज्योतिष में ग्रहों की ऊर्जा को संतुलित करने का प्रयास किया जाता है, जबकि वास्तुशास्त्र में वास्तु के अनुसार निर्माण कर ऊर्जा को संतुलित करने का प्रयास किया जाता है। वास्तुशास्त्र में दिशा और स्थान का महत्व है, जबकि ज्योतिष में ग्रहों की स्थिति और दिशा का महत्व है। दोनों ही विज्ञान प्राकृतिक तत्वों जैसे कि अग्नि, जल, वायु, पृथ्वी और आकाश के संतुलन पर जोर देते हैं।

ज्योतिष और वास्तुशास्त्र दोनों ही एक दूसरे के पूरक हो सकते हैं। यदि हम अपने ज्योतिष के अनुसार अपने वास्तु को संतुलित करें, तो हम अपने जीवन में अधिक सकारात्मक ऊर्जा और समृद्धि प्राप्त कर सकते हैं। इस प्रकार, ज्योतिष और वास्तुशास्त्र दोनों ही एक दूसरे के पूरक हो सकते हैं और हमारे जीवन को सकारात्मक दिशा में प्रभावित कर सकते हैं। भारतीय संस्कृति में ज्योतिष और वास्तु शास्त्र दोनों ही अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। ये दोनों शास्त्र व्यक्ति के जीवन को संतुलित, सुखद और समृद्ध बनाने के लिए मार्गदर्शन प्रदान करते हैं। यद्यपि ये अलग-अलग विधाएं हैं, फिर भी इनका आपसी संबंध गहरा और पूरक है।

ज्योतिष शास्त्र ग्रहों, नक्षत्रों और उनके प्रभावों का अध्ययन है। यह व्यक्ति की जन्म कुंडली के आधार पर उसके जीवन की घटनाओं, स्वभाव, स्वास्थ्य, करियर और संबंधों की भविष्यवाणी करता है। ज्योतिष के प्रमुख अंग हैं :- * ग्रहों की स्थिति * राशियाँ और भाव * दशा और गोचर।

वास्तु शास्त्र भवन निर्माण की एक प्राचीन भारतीय विद्या है, जो पंचतत्वों (भूमि, जल, अग्नि, वायु, आकाश) और दिशाओं के संतुलन पर आधारित है। इसका उद्देश्य है- * सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह * मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य में सुधार
* आर्थिक समृद्धि और पारिवारिक सुख। वास्तव में, ज्योतिष और वास्तु एक-दूसरे के पूरक हैं। व्यक्ति की कुंडली में ग्रहों की स्थिति के अनुसार उपाय सुझाए जाते हैं।

हम प्रायः पढ़ाई की बात करते हैं तो ज्योतिष के अनुसार कुंडली में गुरु की स्थिति देखते हैं। वास्तु शास्त्र में उत्तर-पूर्व अर्थात ईशान कोण के स्वामी देवगुरु बृहस्पति हैं। देवगुरु ज्ञान तथा अध्यात्म के कारक हैं। इसलिए ईशान कोण में पूजा कक्ष और अध्ययन कक्ष का निर्माण किया जाता है। जिससे कि व्यक्ति अपने आध्यात्मिक स्तर को बढ़ाये तथा बुराइयों से दूर रहे।

आग्नेय कोण रसोई का आदर्श स्थान माना जाता है। आग्नेय कोण शुक्र की दिशा है। शुक्र स्त्री ग्रह हैं। जब स्त्रियों के स्वास्थ्य में गिरावट आती है तो प्रायः देखा जाता है कि उस घर के आग्नेय कोण में कोई न कोई दोष होता है। ज्योतिष शास्त्र में भी हम स्त्री के सुख के लिए शुक्र की स्थिति को देखा जाता है। घर की स्त्री जब अधिकाधिक समय इस शुक्र ग्रह की ऊर्जा को ग्रहण करेगी तो न केवल उसकी कार्यक्षमता बढ़ेगी अपितु वह अपने घर पर भी अपना वर्चस्व स्थापित कर पाएगी। शुक्र ग्रह का पूर्ण प्रभाव स्त्री की कार्यक्षमता में देखने को मिलेगा।

नैऋत्य कोण के स्वामी ग्रह राहु-केतु को माना गया है और इसी कोण में मुखिया के शयनकक्ष को उचित माना जाता है क्योंकि राहु के सकारात्मक प्रभाव से व्यक्ति को गूढ़ विद्या में रुचि और बाधाओं पर विजय पाने की शक्ति मिलती है। वह वित्तीय सफलताएं भी दिलाता है साथ ही केतु वैराग्य की भावना और सेवा भाव बरकरार रखता है जो कि एक मुखिया में होने अत्यावश्यक हैं।

वास्तु और ज्योतिष, ये दोनों भारतीय जीवन दर्शन के ऐसे दो पंख हैं, जिनके सहारे जीवन संतुलन और समृद्धि के उच्च शिखर तक पहुँच सकता है। ज्योतिष व्यक्ति की जन्म कुंडली द्वारा उसकी ग्रह-ऊर्जाओं और भाग्यरेखाओं को प्रकट करता है,जबकि वास्तु उन ऊर्जाओं को स्थान, दिशा और तत्वों के माध्यम से स्थिर व संतुलित करता है। जब दोनों का समन्वय किया जाता है, तो व्यक्ति न केवल अपने दोषों को दूर कर सकता है, बल्कि भाग्य और वातावरण दोनों को अनुकूल बनाकर सफलता, स्वास्थ्य, शांति और आध्यात्मिक उन्नति प्राप्त कर सकता है। -सुमित व्यास, एम.ए (हिंदू स्टडीज़), काशी हिंदू विश्वविद्यालय, वाराणसी, मोबाइल – 6376188431

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