प्राचीन वृष्टि विज्ञान का भाग है “नौतपा”। इसे वर्षा का गर्भकाल कहा जाता है। जिस प्रकार बच्चों को गर्भ काल में ही देख कर निर्धारण किया जाता है, उसी प्रकार हमारे वृष्टि विज्ञान शास्त्रियों ने गर्मी के समय में ही वर्षा के गर्भ काल का निर्धारण कर वृष्टि किस प्रकार होगी, ऐसा बता दिया करते हैं। यह विद्या शास्त्र में लोक जनमानस तक में प्रचलित रही है।
शास्त्र दृष्टि से विद्यावाचस्पती पंडित मधुसूदन ओझा, जो कि जयपुर राजघराने के राजपंडित रहे हैं, अपने ग्रंथ कदंबिनी में वर्षा के इस प्रकार पूर्व सूचना का सूर्य के गति, नक्षत्र, ताप के अनुसार तीन भागों में निर्धारण करते हैं- गर्भकाल, पोषण काल और प्रसव काल। इसमें नौतपा को गर्भकाल कहा गया है। राजस्थान में जनमानस मे इस विषय का ज्ञान मिलता था, जिसके माध्यम से मौसम का पूर्व अनुमान लगाने में सक्षम रहे हैं।
नौतपा से ही पता चलता है आगामी मौसम
नौतपा के पहले दो दिन लू न चली तो चूहे बहुत हो जाएंगे। अगले दो दिन न चली तो फसल को नुकसान पहुंचाने वाले कीड़े पैदा होते हैं। तीसरे दिन से दो दिन लू नहीं चली तो टिड्डियों के अंडे नष्ट नहीं होंगे। चौथे दिन से दो दिन नहीं तपा तो बुखार लाने वाले जीवाणु नहीं मरेंगे। इसके बाद दो दिन लू न चली तो विषैले सांप-बिच्छू नियंत्रण से बाहर हो जाएंगे। आखिरी दो दिन भी नहीं चली तो आंधियां अधिक चलेंगी। फसलें चौपट कर देंगी। इसलिए नौतपा में गर्मी का बढ़ना और लू का चलना आगामी मौसम के लिये अच्छा माना जाता है। -अंजना शर्मा (ज्योतिष दर्शनाचार्य)(शंकरपुरस्कारभाजिता) पुरातत्वविद्, अभिलेख व लिपि विशेषज्ञ प्रबन्धक देवस्थान विभाग, जयपुर, राजस्थान सरकार
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