जयपुर (अभय इंडिया न्यूज)। प्रदेश में होने वाले आगामी विधानसभा चुनाव को देखते हुए सरकारी कर्मचारियों ने भी अपनी विभिन्न मांगों को लेकर राज्य सरकार पर दबाव बनाना शुरू कर दिया है। कर्मचारी संगठन सत्तारूढ़ दल भाजपा पर दबाव बनाकर अपने पक्ष में फैसला कराना चाहते है। अब सरकार की मुश्किल यह है कि यदि कर्मचारियों की मांगे मानी जाती है तो लगभग 15 हजार करोड़ रुपए का वित्तीय भार आएगा, जिसे वहन करना मुश्किल नजर आ रहा है। विभिन्न विभागों के कर्मचारी धरने, प्रदर्शन और हड़ताल के जरिए चुनाव की आचार संहिता लागू होने से पहले अपनी मांगे मनवाने के लिए सरकार के मंत्रियों और भाजपा विधायकों को चुनाव में वोट नहीं देने की बात भी कह रहे है।
पिछले एक सप्ताह से राज्य पंचायती राज कर्मचारी, समायोजित कर्मचारी, शिक्षक, मंत्रालयिक कर्मचारी, रोडवेज कर्मचारी, नर्सिंग कर्मचारी, लैब टेक्नीशियन और बिजली कम्पनियों के कर्मचारी आंदोलन कर रहे है। रोडवेज कर्मचारियों की हड़ताल के चलते करीब पांच हजार बसों का संचालन नहीं हो पा रहा है। इसके चलते यात्रियों को काफी परेशानी हो रही है। रोडवेज बसें नहीं चलने के कारण निजी बस चालक मनमाना किराया भी वसूल रहे है। कर्मचारियों की प्रमुख मांगों में वेतनमान, एरियर, पदोन्नति, पेंशन का भुगतान आदि शामिल है।
कर्मचारियों की मांगों को मानने पर सरकार पर पडऩे वाले वित्तीय भार को वहन करने के लिए वित्त विभाग विभाग के अधिकारी तैयार नहीं है। वित्त विभाग के अधिकारियों ने मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को साफ कह दिया कि सरकार के खजाने में इतना पैसा नहीं है कि कर्मचारियों की मांगों को माना जाए। वित्त विभाग के अधिकारियों का कहना है कि यदि कर्मचारियों की मांगे मानी जाती है तो सरकार पर करीब 15 हजार करोड़ रूपए का वित्तीय भार आएगा, जिसे वहन करना मुश्किल होगा। सरकार के खजाने में इतना पैसा ही नहीं है।
इधर, प्रदेश के संसदीय कार्यमंत्री राजेन्द्र राठौड़ और मुख्य सचिव डी. बी. गुप्ता कर्मचारी नेताओं के साथ लगातार चर्चा कर रहे है, इसके बावजूद कर्मचारी नेता अपनी मांगे पूरी होने तक आंदोलन वापस लेने को तैयार नहीं है।
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चुनाव साल में सरकार पर भारी पड़ रही कर्मचारियों की ये मांगें
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