बीकानेर Abhayindia.com राज्य सरकार की अकादमियों में “सब धान बाईस पसेरी” कहावत चरितार्थ हो रही है। इस बात का पता अभय इंडिया को प्रख्यात राजस्थानी लेखक मालचंद तिवाड़ी के फोन से चला। उन्होंने अभय इंडिया को फोन कर बताया कि 21 फरवरी को विश्व मातृभाषा दिवस पर आयोजित अकादमी की कथित संगोष्ठी में शामिल होने का आमंत्रण उन्हें अकादमी के सूचना सहायक के फोन से मिला। जब तिवाड़ी ने फोनकर्ता से पूछा कि यह विश्व मातृभाषा दिवस किस कारण से मनाया जाता है, तो फोनकर्ता निरुत्तर था। तिवाड़ी ने अभय इंडिया को बताया कि भारत विभाजन के बाद पाकिस्तान द्वारा बांग्लादेश पर उर्दू को राजभाषा बनाने की सरकारी कार्रवाई में आठ नौजवानों ने अपनी मातृभाषा बंगाली के लिए आंदोलन करते हुए सरकारी दमन में अपनी जानें गंवा दी। संयुक्त राष्ट्रसंघ इसी दिवस 21 फरवरी को विश्व मातृभाषा दिवस के रूप में दशकों से मनाता आ रहा है। लेकिन अकादमियों के मौकापरस्त कारिंदों का किसी वैश्विक संवेदना से क्या लेना–देना? वे रस्मपूर्ति के लिए राजस्थानी जैसी मातृभाषा के बड़े–से बड़े लेखक को अपने चपरासी से न्यौता दिलवाने से भी गुरेज नहीं करती। यहां तक कि लेखक के अकादमी कार्यालय में आयोजित ‘दिवस‘ में अपने खरचे से आने के किसी पुनर्भरण का प्रस्ताव भी नहीं देती।
- Advertisment -