Friday, April 26, 2024
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“लव यू म्हारी जान ” फिल्म के मार्फत राजस्थानी भाषा के साथ अंग्रेजी शब्दों के प्रयोग की बात…

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राजस्थानी फिल्म लव यू म्हारी जानको लेकर हमारी मातृ भाषा राजस्थानी की संवैधानिक मान्यता और राज्य में उसे दूसरी राज भाषा बनाने के लिए लंबे समय से संघर्षरत युवा साथियों का उत्साह सराहनीय है। यह राजस्थानी फिल्म बीकानेर के सिनेमा हॉल में लगी हुई है और युवा संघर्ष समिति के उत्साही युवाओं ने इस फिल्म को अधिकाधिक लोगों को दिखाने की मंशा से एक शो के सभी टिकट खरीद कर अपनी ओर से कल बीकानेरवासियों को फ्री में दिखा कर जहां उन्होंने राजस्थानी फिल्मकारों और अभिनेताओं का हौसला बढ़ाया, वहीं मातृ भाषा राजस्थानी को प्रति सम्मान का परिचय दिया। मैं इस समिति से जुड़े सभी युवा साथियों का अभिनंदन करता हूं। प्रिय प्रशांत जैन ने फोन करके मुझसे भी सपरिवार फिल्म देखने का आग्रह किया था किंतु अत्यावश्यक कार्य से मुझे शहर से बाहर जाना पड़ा, इसलिए नहीं देख सका।

लव यू म्हारी जानफिल्म पर बात उसको देखने के बाद कर सकूंगा, फिलवक्त इसके नाम को लेकर बात करना चाहूंगा। इसका नाम अब तक आई राजस्थानी फिल्मों के नामों से हट कर है। आज तक प्रायः पारंपरिक और परंपरागत नाम ही राजस्थानी फिल्मों के होते आए हैं किंतु इस फिल्म का नाम पुरानी परंपरा से मुक्त, आज के समय को ध्यान में रखकर रखा गया है। सोशल मीडिया के प्रभाव से शहर ही नहीं, गांव भी मुक्त नहीं हैं। वहां भी अंग्रेजी शब्दों का प्रयोग कम पढ़े लिखे स्त्रीपुरुष भी करने लगे हैं। आम बोलचाल में आम अंग्रेजी शब्द काम में लिए जा रहे हैं। दर्शकों को जोड़ने के ध्येय से फिल्म निर्माता और निर्देशक द्वारा ठेठ राजस्थानी की जगह आम बोलचाल की राजस्थानी भाषा में नाम रखा गया और इसे राजस्थानी मान्यता से जुड़े युवा साथियों ने पूरा समर्थन दिया, यह मुझे सुखद लगा।

इधर, साहित्य में हम शुद्धतावादी !

राजस्थानी फिल्म के अंग्रेजी नाम से युवा साथियों ने एतराज की जगह उसका स्वागत किया है किंतु हमारे राजस्थानी साहित्य समाज के कुछ अति शुद्धतावादी लेखकों को इससे सख्त एतराज रहता आया है। मालचंद तिवाड़ी के कहानी संग्रह सेलिब्रेशन“, सत्यदेव सविंतेंद्र के बाल कथा संग्रह न्यू पिंच“, डॉ मदन गोपाल लढ़ा के बाल कथा संग्रह फाइव स्टार“, हरिचरण अहरवाल के उपन्यास डोंट वरी पापाआदि नामों को आत्मसात नहीं करने वाले भी हैं। उनका तर्क है कि हमारी राजस्थानी का शब्द कोश बहुत समृद्ध है, फिर अंग्रेजी या अन्य भाषा के शब्दों को हम काम में क्यों लेवें? आम बोलचाल में जो शब्द सहजता से प्रयोग किए जा रहे हैं, उन्हें काम में लेने से पाठकों का जुड़ाव होता है, इस ओर वे ध्यान देना नहीं चाहते और यह शिकायत बराबर बनी रहती है कि हमारी राजस्थानी के पाठक नहीं है।

आम बोलचाल में हम हिंदी, उर्दू, अंग्रेजी आदि के शब्द काम में लेते रहे हैं, उनको साहित्य में काम में लेना मेरे विचार से सही है। इस संबंध में आप क्या सोचते हैं, जानने की उत्सुकता है। खासकर युवा साथियों से अनुरोध कि वे खुलकर अपने विचार साझा करें।

पुनः, यह पोस्ट मैं जानबूझकर हिंदी में लगा रहा हूं ताकि हमारी राजस्थानी सहित हिंदी भाषी साथियों के विचारों से भी लाभान्वित हो सकूं। बुलाकी शर्मा, कविव्‍यंग्‍यकार, बीकानेर (फेसबुक वॉल से)

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