Monday, May 20, 2024
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कुछ इस वीडियो में दिखने वाले, तो कुछ ऐसे भी जिनके लिए ऐसे शब्द लिखने पड़े…..

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15 वर्ष के पत्रकारिता अनुभव में पुलिस ने जुड़ी अनेक तरह अच्छी बुरी रिपोर्टिंग करने का मौका मिला। बहुत से पुलिस अधिकारीयो और जवानों की ड्यूटी के प्रति समर्पणता और सह्रदयता ने इस खाखी विभाग के प्रति सदैव सम्मान का भाव जगाए रखा। इस दौरान असंख्य बार खाकी मित्रों के लिए उनकी आवाज बनने का काम भी किया तो कई बार खाखी में छिपे बुरे तत्वों का पर्दाफाश कर इस विभाग की गरिमा बनाए रखने का प्रयत्न भी किया।

कुछ इस वीडियो में दिखने वाले तो कुछ ऐसे भी जिनके लिए ऐसे शब्द लिखने पड़े….. 15 वर्ष के पत्रकारिता अनुभव में पुलिस ने जुड़ी अनेक तरह अच्छी बुरी रिपोर्टिंग करने का मौका मिला। बहुत से पुलिस अधिकारीयो और जवानों की ड्यूटी के प्रति समर्पणता और सह्रदयता ने इस खाखी विभाग के प्रति सदैव सम्मान का भाव जगाए रखा। इस दौरान असंख्य बार खाखी मित्रो के लिए उनकी आवाज बनने का काम भी किया तो कई बार खाखी में छिपे बुरे तत्वों का पर्दाफाश कर इस विभाग की गरिमा बनाए रखने का प्रयत्न भी किया। पर आज कोरोना के रूप में सामने आए विश्वव्यापी संकटकाल में अत्यंत व्यथित मन के साथ खाखी के चंद बुरे चेहरो की करतूतों पर भी लिखने का मन कर रहा है। इस लेख के माध्यम से निकले शब्द आंखों देखी है और ये शब्द उन चेहरों को उजागर करने के बजाय उनके स्वभाव में परिवर्तन लाने के उद्देश्य से लिख रहा हूँ ताकि इस संकटकाल में ये तमाम लोग जैसे भी हो आम जनता के संकटमोचक बने रहे। *लोकडाउन में आवश्यक वस्तुओं की सप्लाई से जुड़े वाहनों को आवागमन की छूट है*। केंद्र सरकार, राज्य सरकार व जिला मजिस्ट्रेटों के यही आदेश है पर विभिन्न थानों के नाको पर तैनात सरकारी कारिंदे व कुछ पुलिसकर्मी इन आदेशो की आड़ में भृष्टाचार का खेल शूरु कर चुके है। प्रत्येक थानों की कुछ खास पुलिसकर्मी अपने इलाके की शुरुवात में नाका लगाए ऐसे वाहनों का इंतज़ार करते रहते है और फिर शूरु होता है सब्जी किसान, राशन वितरकों व दुग्ध वाहन चालकों को परेशान करने का खेल ताकि वाहन चालक उन्हें मन वांछित चढ़ावा चढ़ाए। इस चढ़ावे में नकदी के साथ साथ तरह तरह की सब्जियां भी शामिल है जिन्हें ये सरकारी कारिंदे अपने पास मौजूद प्लास्टिक की थैलियों में रखवा लेते है। इन सरकारी कारिंदों में शामिल पुलिस के जवान इन दिनों अपने पूरे शवाब में है। खासतौर से ग्रामीण इलाकों में सड़क पर डंडे की फटकार के साथ रौब झाड़ते ये कारिंदे सब्जी किसानों और दुग्ध वितरकों से वह गैरज़रूरी परमिशन मांगते है जिसपर सिर्फ कलेक्टर के हस्त्ताक्षर हो जबकि कलेक्टर महोदय के अनुसार इस संकटकाल में आवश्यक वस्तुओं की पूर्ति कर रहे इन लोगो को किसी तरह की परमिशन की आवश्यकता ही नही है। ऐसा ही हाल उन सामान्य किसानों का भी है जो जिलों की बॉर्डर पर बसे है। खरीफ की फसल को समेटने चंद किलोमीटर की परिधि में स्थित अपने खेतों की ओर जाते किसानों को भी यह कारिंदे नही बक्श रहे। भले ही इन किसानों से ये कारिंदे कुछ नकदी वसूल ना कर पाए पर इन पर रौब झाड़ने और उन्हें बेइज्जत करने में जरा भी कसर नही छोड़ी जा रही। इतिहास की इस सबसे बड़े संकटकाल में तानाशाह बने चंद सरकारी कारिंदे आवश्यक वस्तुओं की सप्लाई कर रहे लोगो को जिस तरह से परेशान कर रहे है उससे समूचे सरकारी तंत्र की बदनामी हो रही है। भले ही आम जनता पुलिस व स्वास्थ्य कर्मियों के अच्छे कार्यो के लिए पुष्पवर्षा के साथ साथ कभी ताली, कभी थाली बजा रही हो पर इन चंद कारिंदों ने जनता की उस अच्छाई को भुलाकर रौब झाड़ना, बदतमीजी करना ही अपना प्रथम कार्य समझा हुआ है। यही नही अगर इन्हें ऐसा ना करने के लिए कोई आमजन कुछ कह दे तो यह उसपर पिल पड़ते है और फिर इस सरकारी कारिंदे द्वारा अपशब्दों और डंडों की मार झेलने के अलावा दूसरा रास्ता नही दिखता। आशा है इस लेख को पढ़कर ऐसे सरकारी कारिंदे (जिनकी पहचान उजागर नही की गई है) स्वय में सुधार करेंगे क्योंकि यह लेख उनका व्यक्तिगत नुकसान करने के लिए नही बल्कि उनके सुधरने के लिए लिखा गया है। दुआ है कि ईश्वर इन्हें इनके बुरे कामो के लिए माफ कर देगा।सादर सहितरवि विश्नोई स्वतंत्र पत्रकार।#rajasthan_police

Posted by Ravi Vishnoi on Sunday, April 12, 2020

पर आज कोरोना के रूप में सामने आए विश्वव्यापी संकटकाल में अत्यंत व्यथित मन के साथ खाखी के चंद बुरे चेहरों की करतूतों पर भी लिखने का मन कर रहा है। इस लेख के माध्यम से निकले शब्द आंखों देखी है और ये शब्द उन चेहरों को उजागर करने के बजाय उनके स्वभाव में परिवर्तन लाने के उद्देश्य से लिख रहा हूँ ताकि इस संकटकाल में ये तमाम लोग जैसे भी हो आम जनता के संकटमोचक बने रहे।

लोकडाउन में आवश्यक वस्तुओं की सप्लाई से जुड़े वाहनों को आवागमन की छूट है : केंद्र सरकार, राज्य सरकार व जिला मजिस्ट्रेटों के यही आदेश है पर विभिन्न थानों के नाकों पर तैनात सरकारी कारिंदे व कुछ पुलिसकर्मी इन आदेशों की आड़ में भृष्टाचार का खेल शुरु कर चुके है।

प्रत्येक थानों की कुछ खास पुलिसकर्मी अपने इलाके की शुरुआत में नाका लगाए ऐसे वाहनों का इंतज़ार करते रहते है और फिर शुरु होता है सब्जी किसान, राशन वितरकों व दुग्ध वाहन चालकों को परेशान करने का खेल ताकि वाहन चालक उन्हें मन वांछित चढ़ावा चढ़ाए। इस चढ़ावे में नकदी के साथ साथ तरह तरह की सब्जियां भी शामिल है, जिन्हें ये सरकारी कारिंदे अपने पास मौजूद प्लास्टिक की थैलियों में रखवा लेते है।

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इन सरकारी कारिंदों में शामिल पुलिस के जवान इन दिनों अपने पूरे शवाब में है। खासतौर से ग्रामीण इलाकों में सड़क पर डंडे की फटकार के साथ रौब झाड़ते ये कारिंदे सब्जी किसानों और दुग्ध वितरकों से वह गैरज़रूरी परमिशन मांगते है जिसपर सिर्फ कलेक्टर के हस्‍ताक्षर हो जबकि कलेक्टर महोदय के अनुसार इस संकटकाल में आवश्यक वस्तुओं की पूर्ति कर रहे इन लोगों को किसी तरह की परमिशन की आवश्यकता ही नही है।

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ऐसा ही हाल उन सामान्य किसानों का भी है जो जिलों की बॉर्डर पर बसे है। खरीफ की फसल को समेटने चंद किलोमीटर की परिधि में स्थित अपने खेतों की ओर जाते किसानों को भी यह कारिंदे नही बख्‍श रहे। भले ही इन किसानों से ये कारिंदे कुछ नकदी वसूल ना कर पाए पर इन पर रौब झाड़ने और उन्हें बेइज्जत करने में जरा भी कसर नही छोड़ी जा रही।

इतिहास की इस सबसे बड़े संकटकाल में तानाशाह बने चंद सरकारी कारिंदे आवश्यक वस्तुओं की सप्लाई कर रहे लोगो को जिस तरह से परेशान कर रहे है उससे समूचे सरकारी तंत्र की बदनामी हो रही है। भले ही आम जनता पुलिस व स्वास्थ्य कर्मियों के अच्छे कार्यो के लिए पुष्पवर्षा के साथ साथ कभी ताली, कभी थाली बजा रही हो पर इन चंद कारिंदों ने जनता की उस अच्छाई को भुलाकर रौब झाड़ना, बदतमीजी करना ही अपना प्रथम कार्य समझा हुआ है।

यही नहीं, अगर इन्हें ऐसा ना करने के लिए कोई आमजन कुछ कह दे तो यह उस पर पिल पड़ते है और फिर इस सरकारी कारिंदे द्वारा अपशब्दों और डंडों की मार झेलने के अलावा दूसरा रास्ता नही दिखता।

आशा है इस लेख को पढ़कर ऐसे सरकारी कारिंदे (जिनकी पहचान उजागर नही की गई है) स्वयं में सुधार करेंगे क्योंकि यह लेख उनका व्यक्तिगत नुकसान करने के लिए नही बल्कि उनके सुधरने के लिए लिखा गया है। दुआ है कि ईश्वर इन्हें इनके बुरे कामों के लिए माफ कर देगा।

-रवि विश्नोई
स्वतंत्र पत्रकार

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