बीकानेर abhayindia.com स्वामी केशवानंद राजस्थान कृषि विश्वविद्यालय के खजूर फार्म में खजूर के फलों की नीलामी सोमवार को प्रातः 11 बजे से फार्म परिसर में होगी। फार्म में खजूर के 15 टन से अधिक फलों की पैदावार हुई है।
कुलपति प्रो. आर. पी. सिंह ने बताया कि विश्वविद्यालय के खजूर फार्म में वर्तमान में खजूर की 34 किस्मों पर अनुसंधान का कार्य चल रहा है। इनमें बरही, हलावी, खूनिजी, मेदजूल आदि सर्वाधिक लोकप्रिय किस्में हैं। खजूर फार्म में खजूरों की डोका अवस्था में तुड़ाई शुरू होती है। पिछले कुछ समय से आमजन में खजूर की मांग बढ़ी है। जुलाई-अगस्त महीने मंे इनकी मांग परवान पर रहती है।
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इसके मद्देनजर फलों की नीलामी की जा रही है। उन्होंने बताया कि केन्द्र द्वारा उत्पादन तकनीक, कीड़ों और बीमारियों से खजूर को बचाने, कम पानी में पैदावार तथा पौधे लगाने की तकनीक से किसानों से रूबरू करवाना भी है। केन्द्र ने पिछले वर्षों में खजूर उत्पादन के नए कीर्तिमान स्थापित किए हैं।
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अनुसंधान निदेशक डाॅ. प्रकाश सिंह शेखावत ने बताया कि खजूर के फलों में परिपक्वता की चार अवस्थाएं होती हैं। इन्हें गंडोरा, डोका, डेंग और पिंड अवस्थाएं कहते हैं। बीकानेर में सामान्यतया डोका अवस्था में खजूर के फल तोड़े जाते हैं। उन्होंने बताया कि खजूर मधुर, पौष्टिक, बलवर्धक, पित्तनाशक और वीर्यवर्धक होता है। खजूर में विटामिन, प्रोटीन, रेशे, कार्बोहाइड्रेट और शर्करा होने की वजह से इसे पूर्ण आहार कहा जाता है। इसी कारण उपवास के दौरान इसका उपयोग किया जाता है। खजूर की चटनी बनती है। मेदजूल किस्म का खजूर छुहारे बनाने के काम आता है। केक और पुडिंग में भी खजूर का उपयोग किया जाता है।