एस. पी. मित्तल
अजमेर। राजस्थान में भाजपा के ताजा राजनीतिक हालातों को प्रमुख शिक्षाविद् डॉ. लोकेश शेखावत के प्रकरण से समझा जा सकता है। आठ फरवरी को ही हरियाणा के राज्यपाल कप्तान सिंह सोलंकी ने डॉ. शेखावत को रोहतक स्थित एमडीएस यूनिवर्सिटी में अपना प्रतिनिधि नियुक्त किया है। यानि अब इस यूनिवर्सिटी में डॉ. शेखावत की महत्वपूर्ण भूमिका होगी। शेखावत के मनोनयन के समाचार 10 फरवरी को प्रदेश के सभी प्रमुख दैनिक समाचार पत्रों में छपे हैं। मुझे डॉ. शेखावत के मनोनयन पर आश्चर्य हुआ, क्योंकि शेखावत ने हाल ही में सम्पन्न हुए अजमेर के लोकसभा चुनाव में भाजपा को हरवाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। राजपूत समाज की जो भी बैठकें हुई उसमें डॉ. शेखावत ने उपस्थिति दर्ज करवाई। इन बैठकों में ही भाजपा को हराने की रणनीति तय की गई। उपचुनाव में भाजपा उम्मीदवार रामस्वरूप लाम्बा की 85 हजार मतों से हार में राजपूत समाज की खास भूमिका रही। यही वजह रही कि मैंने डॉ. शेखावत से उनके ताजा मनोनयन और उपचुनाव में भूमिका के बारे मे ंसवाल किया तो डॉ. शेखावत ने बेबाकी के साथ कहा कि मैंने भाजपा को हराने का काम नहीं किया। मेरा मकसद प्रदेश नेतृत्व (सीएम वसुंधरा राजे) को सबक सिखाने का था। अब सीएम स्तर पर कोई सुनवाई ही नहीं हो रही है तो मेरे जैसे विचारवान व्यक्ति के पास यही रास्ता था। डॉ. शेखावत ने स्वीकार किया कि उपचुनाव में मैंने राजपूत समाज की बैठकों में भाग लिया था। शेखावत ने कहा कि मैं धृतराष्ट्र नहीं हंू जो अनीति को सहता रहंू। मैं विचारवान हंू और भाजपा का भला सोचता हंू। शेखावत ने अपनी प्रतिक्रिया का समापन इस अंदाज में किया ‘मोदी तुझ से बैर नहीं, वसुंधरा तेरी खैर नहीं।
अब राष्ट्रीय नेतृत्व करे फैसला
इसमें कोई दो राय नहीं कि डॉ. शेखावत ने अपनी भावना को बेबाकी के साथ रखा है। उन्होंने इस बात की भी चिंता नहीं की कि उनका यह बयान ताजा मनोनयन को प्रभावित भी कर सकता है। असल में अब भाजपा के राष्ट्रीय नेतृत्व को फैसला करना होगा। हो सकता है कि शेखावत जैसे विचार भाजपा के अधिकांश नेताओं एवं कार्यकर्ताओं के हों। चूंकि वसुंधरा राजे अभी भी सीएम हैं, इसलिए किसी के बोलने की हिम्मत नहीं हो रही है। अब शेखावत ने पहल की है तो और लोग भी बोल सकते हैं। डॉ. शेखावत की स्थिति का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि वे जोधपुर स्थित जयनारायण विश्वविद्यालय के कुलपति रह चुके हैं। डॉ. शेखावत की पृष्ठभूमि भी राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की रही है।
राजस्थान पत्रिका का सर्वे
राजस्थान के तीनों उपचुनावों के नतीजों को लेकर राजस्थान पत्रिका ने भी भाजपा विधायकों के बीच एक सर्वे किया था। पत्रिका का दावा है कि इस सर्वे में भाजपा के पचास से भी ज्यादा विधायकों ने हार के लिए सरकार और संगठन को जिम्मेदार माना है।
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