








सुरेश बोड़ा/बीकानेर (अभय इंडिया न्यूज)। शहर के समूचे साठ वार्डों में विकास की जिम्मेदारी जिस नगर निगम के कंधों पर टिकी है, वो कंधे विवादों के बोझ के चलते कमजोर हो गए है। विकास खूंटी पर टंगा हुआ नजर आ रहा है और विवाद चरम पर साफतौर पर देखा जा सकता है। विपक्ष का तो विरोध करने का हक बनता है, लेकिन पक्ष के लोग भी इससे परहेज नहीं कर रहे। महापौर को घेरने के लिए नगर निगम के करीब डेढ़ दर्जन पार्षदों ने पिछले तीन साल से पूरी ताकत झोंक रखी है। अविश्वास प्रस्ताव के नाम पर वे तकरीबन जिले से जुड़े मंत्रियों, पार्टी पदाधिकारियों के दरवाजे खटखटा चुके है। इसके बावजूद उनकी मन की मुराद पूरी नहीं हो सकी है।
ताजा हालात भी कमोबेश ऐसे ही बने हुए है। महापौर को पटखनी देने के लिए उनके ‘अपने’ पार्षदों ने एकबार फिर म्यान से तलवारें निकाल रखी है। भाजपा में यह रवायत नहीं नई है। ‘अपनों’ के बीच ऐसा ही विवाद पूर्व में सभापति अखिलेश प्रताप सिंह के कार्यकाल के दौरान भी उपजा था। तब ‘अपने’ इतने भारी पड़े कि सभापति सिंह निगम के सिंहासन से ‘धड़ाम’ से गिर पड़े। और ङ्क्षसहासन पर कांग्रेस आराम से विराजमान हो गई। हालात तो वर्तमान में भी ऐसे ही बने हुए हैं, लेकिन पार्टी हाईकमान से इशारा नहीं मिल रहा। लिहाजा जोर आजमाइश जोरों पर है। शहर की सफाई व्यवस्था चौपट है। रोड लाइटों में भ्रष्टाचार की ‘रोशनी’ दिन में ही टिमटिमा रही है। अवैध इमारतों और निर्माण पर कार्रवाई मनमानी तरीके से होती है। निर्माण स्वीकृति बिना ‘भेंट’ किसी को नहीं मिलती। सफाई-लाइट जैसी मूलभूत सुविधाओं को लेकर तरसन इतनी बढ़ गई है तो सड़क सहित अन्य विकास कार्यों की तो बात ही बेमानी हो जाती है।
पार्टी हाईकमान सब-कुछ जानते हुए भी महापौर और पार्षदों के बीच चल रहे विवाद को ‘पूर्ण विराम’ नहीं दे रहा। इसका खामियाजा सीधेतौर पर साठ वार्डों के वाशिंदों को ही भुगतना पड़ रहा है। यदि समय रहते पार्टी हाईकमान नहीं चेता तो आने वाले समय में जनता ये खामियाजा उन्हें भी भुगता सकती है। ऐसे में पार्टी के आला नेताओं को चाहिए कि वो महापौर और पार्षदों के बीच बनी विवाद की खाई को खत्म करें। विकास को तरस रहे साठ वार्डों पर थोड़ा तरस खाए। अन्यथा ये विवाद केवल नगर निगम को ही नहीं, बल्कि विधानसभा सीटों को भी ले डूबेगा।





