बीकानेर Abhayindia.com प्रकृति शब्द से जुड़ना ही प्राकृतिक जीवन की ओर संकेत देता है। यानि साधारण और सामान्य जीवन जीना ही प्राकृतिक जीवन कहलाता हैं। प्राकृतिक जीवन हमारी सामान्य जीवनचर्या है जिससे हमारा दैनिक कर्म और दैनिक भोग का समावेश रहता है। क्योंकि यदि हमें जीवन ईश्वर ने प्रदान किया है तो कर्म करना हमारी प्रकृति है और प्रकृति में उपस्थित सभी वस्तुओं का भोग करना हमारी नियति है। प्रकृति ने हवा, पानी, ऊर्जा और वातावरण प्रदान किया है, जिनके स्त्रोत आकाश, वायु, सूर्य, पृथ्वी और जल इन पांचों तत्वों से शरीर बना है और इसी में ही समाहित हो जाएगा। अतः इन पांचों तत्वों का आधार मानकर ही प्राकृतिक चिकित्सा की जाती है।
प्रकृति के अनुसार जीवन यापन तथा प्रकृति के अनुसार ही शारीरिक गतिविधियों का होना ये ही जीवन की कला कहलाती है। प्राकृतिक चिकित्सा की भ्रांतियां लोगों में अनावश्यक रूप से मानी जाती है जैसा कि –
-ये बुजुर्गों की चिकित्सा है।
-ये लंबी चलने वाली चिकित्सा है।
-ये भूखे रहने की चिकित्सा है।
-ये चिकित्सा तकलीफ देने वाली है।
-दिनचर्या में बाधा डालने वाली चिकित्सा है।
इस अंतरराष्ट्रीय प्राकृतिक चिकित्सा पर मैं राजस्थान प्राकृतिक चिकित्सा केन्द्र की चिकित्सा अधिकारी डॉ. वत्सला गुप्ता इन भ्रांतियों को दूर करने का प्रयास करना चाहती हूँ कि-
-प्राकृतिक चिकित्सा एक ऐसी प्रक्रिया है जो प्राकृतिक रूप से शरीर को स्वस्थ और ऊर्जावान बनाती है।
-प्राकृतिक चिकित्सा एक ऐसी पद्धति है जिसमे रोगी स्वयं का इलाज करता है।
-ये एक ऐसी प्रक्रिया है जो शरीर और प्रकृति का योग कराने में सहायक होती है।
-प्राकृतिक चिकित्सा बच्चा, बुढ़ा या जवान सभी वर्गों के लिए उपयोगी और अनिवार्य है।
ये शुद्धिकरण (प्राकृतिक रूप से) का स्वरूप है, जो आंतरिक रूप से शरीर मे स्फूर्ति प्रदान करती है। प्राकृतिक चिकित्सा प्रकृति के नियमों और सिद्धांतो की पालना के लिए हमें उत्साहित और प्रेरणा प्रदान करती हैं। प्रकृति ने हमे प्रत्येक स्वरूप से सक्षम और सुदृढ़ बनाया है, परंतु शरीर स्वयं की सुविधा और अनावश्यक कारणों से प्रकृति के विरूद्ध आहार-विहार करने लगता है और जब भी नियमों के विरूद्ध कोई भी कार्य होता है तो उसको दुष्प्रभाव भोगना पड़ता है। इसका ज्वलंत उदाहरण महामारी कोरोना ने सिद्ध कर दी है।
प्रकृति ने कोरोना के चलते शुद्ध वायु की उपयोगिता, संयमित आहार व्यवस्था, संतुलित जीवन ने मनुष्य की विचारधारा को पुनः संस्कारों की तरफ जाने का आग्रह किया है। योग द्वारा ऑक्सीजन की उपयोगिता सार्थक है। शरीर को स्वस्थ रखना ही परम् कर्तव्य है। संतुलित और संयमित खान-पान, विटामिन और फाइबर युक्त भोजन व्यवस्था तथा परस्पर सहयोग ईश्वरीय उपासना का आधार ही जीवन का अर्थ है को समझाया है। अर्थात प्राकृतिक जीवन जीने की प्रेरणा दी है।
प्राकृतिक चिकित्सा में मानसिक स्वास्थ्य को मजबूत और शारीरिक स्वस्थ्य की शुद्धि पर ध्यान केंद्रित किया जाता है और प्राकृतिक जीवन में स्वस्थ मानसिकता और स्वस्थ शरीर की आवश्यकता मानी जाती है। पंचतत्वों का उपयोग सकारात्मक ऊर्जा और निष्काम भाव ये सभी प्राकृतिक जीवन और प्राकृतिक चिकित्सा दोनों की आधारशिला है। अतः प्राकृतिक जीवन और प्राकृतिक चिकित्सा दोनों स्वस्थता के प्रयाय है। अतः इस अंतरराष्ट्रीय प्राकृतिक चिकित्सा दिवस पर मैं आप सभी से यह अनुरोध करती हूँ कि अपने स्वास्थ्य के प्रति जागरूक होंं और प्रकृति की इस देन को सहजता और संतुष्ट जीवन जीने के लिए निरंतर प्रयासरत रहे।
लेखिका : डॉ. वत्सला गुप्ता, योगाचार्य एव चिकित्सा अधिकारी, राजस्थान प्राकृतिक चिकित्सा केन्द्र गंगाशहर-बीकानेर