








26 जनवरी सम्पूर्ण भारतवर्ष के लिए गर्व, उल्लास, अभिमान और गणतंत्र के स्थापित होने वाले, विश्व के सर्वाधिक विशाल संविधान के लागू होने के दिवस के रूप में महत्ता है। इस विशाल गण समूह में एक गण जो धोरां धरती के प्रत्येक रजकण को अपनी मधुर हास्य व्यंग्य वाणी से मुखरित कर देते थे, की पुण्यतिथि का दिन भी है। अपनी कर्तव्य निष्ठा, देशप्रेम और जन–जन में लगाव का ही परिणाम था कि डॉक्टर भगवानदास किराडू “नवीन” सभी को नित्य नवीन लगते हैं। छोटी से बड़े के लिए परकोटे के हर दिल अजीज के अजीज “आयजन” है, जो अपने बड़े सरल सहज अंदाज में देश के नौजवानों को देश को उन्नति के मार्ग पर ले जाने की सीख अपने निराले अंदाज में देते हैं–
“देसरा असली कोहिनूर पल–पल पल़कता नूर,
नी हो जावे आपांरा आपा सूं दूर।“
नौजवानों को देखते ही कहते – “वाह रे म्हारा शेर” ” जय हो थौंरी“ यह वचन निराश हृदय में आशा का संचार करने के लिए काफी होते थे। सैकड़ों विद्यार्थियों ने अपने पीठ कंधे पर उनका प्रेममयी स्पर्श पाकर अपने जीवन को धन्य किया है। संस्कृत, हिंदी, राजस्थानी की त्रिवेणी की पीयूष वर्षा वे जब भी करते तो सुनने वाला अवाक् नहीं ऊर्जा से लबरेज होकर अपने आत्मविश्वास को इस प्रकार संगठित करके घर जाता कि अगली मुलाकात में उनके आशीर्वचनों का सफलतम परिणाम लेकर ही लौटता।
जब भी दो व्यक्ति मिलते हैं वहां आज भी डॉक्टर भगवानदास किराडू “नवीन” “आयजन” जीवंत हो जाते हैं। उनके बोल सभी को जीवनामृत है। भीतर की नाउम्मीदी के स्याह अंधेरे में रौशनी होते हैं -“भूल जा भलाई कर वरना गम होगा उसकी बेवफाई पर“, “मेहनत करो, फिर प्रभु को याद करो” “मेहंदी और मेहनत दोनों रंग लाते हैं“, ” झुकता है उसमें जान होती है, अकड़ना मुर्दे की पहचान होती है” “श्रेयांशी बहुविघ्नानी“ आदि आशीर्वचनों को पाकर हर किसी ने अपनी असफलता को पीछे छोड़ सफलता की उनकी दिखाई राह पकड़ी है।
साहित्य मनीषी के साथ–साथ हास्य व्यंग्य विनोद की “नवीन” साक्षात मूर्ति थे। समाज में व्याप्त देखा देखी की होड़, बढ़ते बेढ़ंगे रीति–रिवाजों पर उनके व्यंग्य देखते ही बनते हैं– “सुणों समाज रा सरदारां, सगा– समधी परसंग्यां। सै नई–नई करै ले–ले सौ धरै, पार पड़े कियां।“ जब शादी विवाह के सावे होते हैं उनके रचित गीत “बेटे रै बाप री मालनी” लोगों के लबों पर अनायास ही उस वक्त मुखरित हो उठती है जब समाज में बे–सिर–पैर की समाज बिगाडू़ रीत–रायते दिखाई पड़ते हैं– “सगे ने पैली सूं कैवायदौ रीत भांत रो कायदौ।” आज नगेंद्र नारायण किराडू “कलाकार” की आवाज में यह गीत हर घर में नवीन की नेक नीयत और सगे–संबंधियों के वास्तविक गूढ़ प्रेम को लोगों के हृदय में स्थापित करने में सफल रहा है। इसी तरह जीवन व्यवहार सिखाने वाली चलती फिरती पाठशाला ही नहीं वरन एक यूनिवर्सिटी थे डॉ भगवान दास किराड़ू जिनके शिक्षित किए अनगिनत शिष्य देश दुनिया में नवीनियत और बीकानेरियत की जीवंतता कायम किए हैं।
बकौल ‘नवीन‘ -“स्पष्ट वक्ता सुखी भवेत्। ” जिसमें होता ‘मैनर‘ वही होता असली नर” ” स्वभाव दूरतिक्रम:। ” सबसे कठिन है किसी की कृतज्ञता को स्वीकार ना, जिन्होंने काटा फिर उन्हें काटना क्या, चंदन कटकर कुल्हाड़ी में खुशबू भर डाले।” विराट व्यक्तित्व के धनी गुरुदेव भगवान दास जी यथा नाम तथा कर्म की प्रतिमूर्ति थे। भाग दौड़ के भयंकर भौतिक जीवन में 35 वर्षों तक निशुल्क अध्यापन कार्य कर वे मिसाल कायम कर गए। माता पिता गुरु और देश के प्रति कर्तव्य भाव को जीवन्त कर अपने जीवन से अपने विद्यार्थियों– शिष्यों सहित परकोटे को प्रेरणा दे गये। देश के मूर्धन्य आलोचक डॉक्टर नामवर सिंह जी के प्रति अपनी गुरुभक्ति उन्होंने मृत्यु पर्यन्त नहीं छोड़ी। अपने द्वारा रचित सभी कहानियों, कविताओं, नाटक, शोधग्रंथौं आदि में उन्होंने सदैव अपनी गुरु भक्ति , समाज और देश के प्रति कृतज्ञता को नहीं छोड़ा। उनके अनुसार “भारतीय वही,जो कृतघ्न नहीं।” ‘राम–राम सा‘ हो या मारवाड़ अभिधान अनुसीलन‘ या फिर ‘मांगा हो तर गया‘ हो सभी उनकी शिक्षा– भाषा के प्रति, जीवन की सहजता, जीवन जीने की कला को सरल रूप में अभिव्यक्त करती हैं। डॉक्टर भगवानदास किराडू एक विराट व्यक्तित्व के धनी थे। जितने गुणों से वे परिपूर्ण थे उससे कहीं अधिक वे सहज और सरल व्यवहार के व्यक्ति थे। यही कारण है कि बच्चे और बुढ़े उन्हें हमारा ‘भगवान‘ हमारा ‘आयजन‘ कह कर बुलाते थे। भले ही आज वे हमारे बीच नहीं है किंतु उन की शिक्षाएं, ऊर्जा से लबरेज उनके प्रेरक वाक्य, देश समाज के प्रति कही गई उनकी कविताएं–जुमले हम सभी के लिए बड़ी प्रेरक और बदलाव लाने वाली साबित होती है– “चलो! उनके घर रौशन करें जिन्होंने किया हमें अंधेरों के हवाले…।“ –अशोक कुमार व्यास, व्याख्याता, सेठ भैंरूदान चौपड़ा उ.मा.वि. गंगाशहर, बीकानेर






