Tuesday, September 17, 2024
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हाईकोर्ट का ऑर्डर : क्षेत्रीय वन अधिकारी और वनरक्षक का निलम्‍बन आदेश अपास्‍त

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जोधपुर Abhayindia.com राजस्थान उच्च न्यायालय की एकलपीठ के न्यायाधीश विनित कुमार माथुर ने क्षेत्रीय वन अधिकारी अशोक सिंह व वन रक्षक के पद पर कार्यरत तेजपाल सिंह की रिट याचिकाओं को स्वीकार करते हुए वन विभाग द्वारा जारी निलम्बन आदेश दिनांक 21.06.2024 को अपास्त किया है।

क्षेत्रीय वन अधिकारी अशोक सिंह व वन रक्षक तेजपाल का पदस्थापन रायसिंहनगर जिला अनूपगढ़ में था तब क्षेत्रीय वन अधिकारी अशोक सिंह द्वारा शिकार को रोकने के उद्देश्य से उड़नदस्ता का गठन किया गया। उड़न दस्ते के गठन के उपरान्त भी दिनांक 19.06.2024 को दो हिरणों का शिकार हो गया। प्रार्थियों द्वारा इसके संदर्भ में प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज करवा दी गई व तीन अभियुक्त को गिरफ्तार भी कर लिया गया। दो हिरणों के शिकार होने के कारण बिश्नाई मंदिर समिति बुड्ढा जोहड़ा (डावला) व राज्य सरकार के मध्य दिनांक 20.06.2024 को समझौता हुआ। समझौता कई शर्तो पर हुआ उनमें प्रथम शर्त यही थी कि क्षेत्रीय वन अधिकारी अशोक सिंह व  वन रक्षक तेजपाल का निलम्बन किया जाये। इसी आधार पर अतिरिक्त प्रधान मुख्य वन संरक्षक (मुख्यालय, जयपुर) ने क्षेत्रीय वन अधिकारी अशोक सिंह व वन रक्षक तेजपाल को आदेश दिनांक 21.06.2024 से राजस्थान सिविल सेवा (अपील वर्गीकरण एवं नियंत्रण) नियम, 1958 के नियम 13 में प्रदत्त शक्तियों के तहत याचिकाकर्ताओं का निलम्बित कर दिया गया व इनका मुख्यालय अनूपगढ़ से बोकानेर कर दिया गया।

विभाग के इस आदेश से व्यथीत होकर इन दोनों कर्मचारियों ने अपने अधिवक्ता प्रमेन्द्र बोहरा के माध्यम से रिट याचिकायें माननीय उच्च न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत की। उच्च न्यायालय के समक्ष याचिकाकर्ता के अधिवक्ता का तर्क था कि जो निलम्बन आदेश पारित किया गया है वह असक्षम अधिकारी द्वारा पारित किया गया है। अशोक सिंह क्षेत्रीय वन अधिकारी द्वितीय के पद पर कार्य करता है व उसके लिये सक्षम अधिकारी प्रधान मुख्य वन संरक्षक (वन बल), जयपुर है। जबकि आदेश अतिरिक्त प्रधान मुख्य वन संरक्षक द्वारा जारी किया गया है जो वन अधिनस्थ सेवा नियमों के विरूद्ध है। साथ ही आदेश केवल 20.06.2024 को बिश्नाई मंदिर समिति बुड्ढा जोहड़ा (डावला) तहसील रायसिंहनगर जिला अनूपगढ़ के दबाव में किया गया है यानि बिना स्वविवेक के आदेश पारित किया गया है।

राज्य सरकार की ओर से जवाब प्रस्तुत करते हुए यह तर्क दिया कि निलम्बन आदेश प्रार्थी के विरूद्ध अनुशासनात्मक कार्यवाही की जाना प्रस्तावित है इसलिये निलम्बन आदेश जारी किया गया है। जो उचित है। प्रार्थियों के अधिवक्ता के तर्कों से सहमत होते हुए उच्च न्यायालय ने यह माना कि प्रथमतया आदेश असक्षम अधिकारी द्वारा किया गया है तथा यह केवल 20.06.2024 को हुए समझौते के आधार पर जारी किया गया है ना कि किसी जांच के लम्बित रहते हुए या अनुशासनात्मक कार्यवाही के लम्बित रहते हुए।

राजस्थान उच्च न्यायालय के न्यायाधीश ने निलम्बन आदेश दिनांक 21.06.2024 को निरस्त करते हुए याचिकाकर्ताओं की रिट याचिकाओं को स्वीकार करते हुए यह व्यवस्था दी कि प्रथमतया निलम्बन आदेश स्वविवेक से सक्षम अधिकारी द्वारा व राजस्थान सिविल सेवा (वर्गीकरण नियंत्रण व अपील) नियम, 1958 के तहत होना चाहिए। याचिकाकर्ताओं का निलम्बन आदेश जो समझौते के आधार पर व अतिरिक्त प्रधान मुख्य वन संरक्षक जयपुर द्वारा किया गया है वह बिना परिस्थितियों के आंकलन के व असक्षम अधिकारी द्वारा किया गया है।

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