बीकानेर (सुरेश बोड़ा)। कोरोना महामारी अब अपना रौद्र रूप दिखा रही है। समाज का हर तबका तिलमिला रहा है। किसी को रोजी-रोटी तो किसी को इलाज की चिंता सता रही है। सिस्टम से जुडे अफसर और डॉक्टर दिन-रात एक करके मरीजों की जान बचाने में जुटे हैं। तो कई इसे “आपदा में अवसर” की तरह ले रहे हैं। अस्पताल चाहे सरकारी हो या निजी। मौतों की तादाद पिछले सप्ताहभर में दोनों जगह बढी है। इस भीषण दौर में आमजन कहीं न कहीं खुद को अकेला महसूस कर रहा है। उसकी कहीं पर सुनवाई नहीं हो रही। उसे आम और “खास” का पता अब चल गया है। वो अब जान गया है कि चुनाव के दिनों में “तलवे तक चाटने” को आतुर होने वाले “नेताजी” अब उन्हें कहीं ढूंढने से भी नहीं मिल रहे। वो तो बस अपने-अपने “खास” को बचाने की जैसे-तैसे जुगत भिड़ा रहे हैं। आम आदमी तो उनके महज “वोटर” ही बन कर रह गया है। जिसके पास पांच साल बाद जाना है। और उनके “तलवे चाट कर” उसकी खुशामदी करनी है। “अभय इंडिया” की रिपोर्टर्स टीम बताती है कि अस्पतालों में आमजन के लिए चिकित्सकीय सुविधाएं पाना बेहद मुश्किल हो रहा है। लोगों की बेबसी उनके चेहरों पर साफतौर पर देखी जा सकती है। महामारी के चलते वो सिस्टम के सामने खुद को असहाय महसूस कर रहे हैं। होना तो ये चाहिए कि बीकानेर के नेताओं को इस संकट की घड़ी में उनके साथ खड़ा होना चाहिए। जिस तरह नेताजी चुनाव में वोटर्स को वाहनों में डालकर मतदान बूथ तक लाते हैं। वैसे ही अब उन्हें इलाज के लिए अस्पतालों तक पहुंचाना चाहिए। जिस तरह नेताजी चुनाव में अपने दोनों हाथों से शराब और अन्य चीजें बांटते हैं, वैसे ही आज इस दौर में दवाइयों और अन्य चिकित्सकीय सुविधाएं मुहैया करानी चाहिए। जिस तरह चुनाव में गली-गली में घूमकर वोट की अपील करते हैं। कमोबेश वैसे ही गली-गली में घूमकर कोरोना मरीजों को चिन्हित करते हुए सिस्टम का सहयोग करना चाहिए। लेकिन…ऐसा कुछ भी होता नजर नहीं आ रहा है। न जाने हमारे ये नेता लोग कहां दुबक कर बैठ गए है। ऐसा नहीं है कि इन्हें महामारी की भीषणता का भान नहीं है। ये सब दिनभर खबरें पढते हैं, इनसे हालात छिपे हुए नहीं है। इसके बावजूद ये मूकदर्शक बने हुए हैं। सच्चाई तो यह है कि ये नेताजी दिनभर सोशल मीडिया पर अपनी-अपनी पार्टियों की जय-जयकार करते हैं। एक-दूसरे को नीचा दिखाने के लिए धड़ाधड़ पोस्टें वायरल करते हैं। बाद में मोबाइल पर उन पर चटखारे लेते हैं। ये इनकी बेशर्मी की हद है। “अभय इंडिया” इन नेतागणों से अपील करता है कि वे महामारी के खिलाफ जंग जीतने में सिस्टम पर धौंस दिखाने, एक-दूसरे पर छींटाकशी के बजाय आमजन का सहयोग करें, आमजन के लिए गली-चौराहों पर कैंप लगाए। अस्पतालों के बाहर कैंप लगाए। मरीजों के परिजनों को क्या-क्या दिक्कतें आ रही हैं, उन्हें सुने, उनकी समस्याओं का समाधान करें। अन्यथा ये आमजन आपको कभी माफ नहीं करेगा। जिन लोगों ने अभी अपनों को खोया है, उन्होंने यदि अपना आपा खो दिया तो नेताओं की “नेतागिरी” निकलने में भी ज्यादा समय नहीं लगेगा।
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