Thursday, September 19, 2024
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भगवती संवत्सरी महापर्व : क्षमायाचना से आत्मा को बना सकते हैं निर्मल पावन पवित्र 

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बीकानेर Abhayindia.com श्री जैन श्वेतांबर तेरापंथी सभा के तत्वावधान में तेरापंथ भवन मुनि श्री श्रेयांस कुमार जी साध्वी श्री चरितार्थ प्रभा जी एवं साध्वी श्री प्रांजल प्रभा जी के सान्निध्य में भगवती संवत्सरी महापर्व मनाया गया। इस अवसर पर मुनि श्री श्रेंयास कुमार जी ने कहाँ कि पर्युषण महापर्व आत्म शोधन का पर्व है। आज के दिन जिस जिस से भी वैर- विरोध हुआ हो और उनसे खमत खामणा न हो तो श्रावक का श्रावकत्व चला जाता है। प्रत्येक व्यक्ति से, प्राणी मात्र से शुद्ध ह्दय से निर्मल अन्तकरण से इस पावन पर्व के अवसर पर क्षमायाचना करके अपनी आत्मा को निर्मल पावन पवित्र बनानी चाहिए। मुनि श्री ने गीतिका के माध्यम से भी जनता को राग-द्वेष से मुक्त होने की प्रेरणा प्रदान की।

इस अवसर पर साध्वी श्री चरितार्थ प्रभा जी ने कहा कि संवत्सरी का पर्व हमारे लिए महत्वपूर्ण पर्व है। संवत्सर का अर्थ है वर्ष। अर्थात साल में एक बार आने वाला दिन। आगम में इसका नाम पजुषणा आता है। इसका तात्पर्य है एक स्थान पर ठहरना। यह पहले साधु साध्वियों के लिए ही सीमित थी। भगवान महावीर स्वामी के बाद के आचार्यों ने कहा यह सभी प्राणियों के कल्याण का दिवस है, इसलिए आचार्यों ने इसे श्रावक श्राविकाओं के लिए त्याग, तप, ध्यान स्वाध्याय आदि अनुष्ठान से जोड़ा। तप चार प्रकार के होते हैं – शरीर का कायिक तप, वाचिक तप, मानसिक तप, भावनात्मक तप। मन की कुटिलता दूर हो, राग द्वेष दूर हो, लोभ कम हो, हमें सहिष्णुता की साधना करनी चाहिए। अहंकार को कम करने का प्रयास करना चाहिए। क्रोध को असफल करने का प्रयास करें।

उन्‍होंने कहा कि आज के दिन हमें संकल्प करना है कि हम आत्मा की उन कमियों और बुराइयों को दूर करना है जो हमारे मोक्ष मार्ग की बाधाएं हैं। नैतिक जीवन और सुखी जीवन की बाधाएं हैं उन्हें भी दूर करने का प्रयास करना है। साध्वीजी एक श्लोक के माध्यम से बताते हैं कि खामेमि सव्वे जीवा, सव्वे जीवा खमन्तु मे, मिती मे सव्वे भुएसु, वैरं मज्झ न केणइ।। अर्थात मैं सभी जीवों को क्षमा करता हूँ। सभी जीव मुझे क्षमा करें। मेरी समस्त जीवों से मैत्री है। मेरा कोई शत्रु नहीं, मेरा किसी से कोई वैर विरोध नहीं। खमत खामणा करने के लिए संवत्सरी का दिन सबसे उत्तम दिन है। अतः सभी जीवों को अपने सम्यक दर्शन को ध्यान में रखकर आज के दिन सभी से अपनी बेर विरोध को भुलाकर नई शुरुआत करनी चाहिए।

साध्वी श्री प्रांजल प्रभा जी ने कहा कि लोग उपकार को भूल जाते हैं। एक बात होने पर गांठ पड़ जाती है। आज के दिन हमें भूलना है और सभी गांठों को तोड़ देना है। साध्वी श्रीजी उदाहरण देकर समझते हैं कि जैसे फोन में कोई चीज रिकॉर्ड करते हैं तो, फोन में उसे डिलीट करने का ऑप्शन होता है। इस तरह हमारी जिंदगी में बहुत सी चीज रिकॉर्ड हो जाती है जो इरेज़ नहीं होती, इसलिए भगवान महावीर ने एक रास्ता बताया पर्यूषण महापर्व। आपने उपवास किया, पौषध किया, प्रत्याखान किया पर आपने सभी जीवों से क्षमा याचना सच्चे मन से नहीं की तो उन सभी का कोई अर्थ नहीं रहेगा। जितने धागे की, गले की और गान्ने की गांठ दुख नहीं देती उतनी बेर की गांठ दुख देती है। जिस तरह खमत खामणा जरूरी है। उसी तरह प्रायश्चित करना जरूरी है। प्रतिक्रमण किया और प्रायश्चित का भाव नहीं रखा तो उसका फल प्राप्त नहीं होगा। हमारी गति विराधक हो जाती है।

खमत खामणा करने से पहले यह भाव नहीं आना चाहिए कि लोग क्या कहेंगे, बल्कि हमारी आत्मा क्या कहती है इस पर ध्यान देना चाहिए। जैसा की आचार्य श्री तुलसी ने कहा यह जगने की वैला है अब ना सोना चाहिए। समय के पैर नहीं होते पंख होते हैं समय के साथ दौड़ना चाहिए। अपने कर्मों को संभालो और प्रायश्चित करो। आज का दिन आत्मनिरीक्षण का दिन है। तो आत्मा का निरीक्षण करें और पाप मुक्त होने की कोशिश करें।

कार्यक्रम में मुनि श्री विमल विहारी जी, मुनि श्री प्रबोध कुमार जी एवं साध्वी श्री कृतार्थ प्रभा जी, साध्वी श्री वैभव यशा जी, साध्वी श्री आगम प्रभा जी, साध्वी श्री आर्य प्रभा जी एवं साध्वी श्री मध्यस्थ प्रभा जी ने विभिन्न विषयों पर अपने विचार व्यक्त किए।

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