बीकानेर Abhayindia.com तेरापंथ भवन, गंगाशाहर में धर्मसभा को संबोधित करते हुए युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी के आज्ञानुवर्ती मुनिश्री शांतिकुमार ने इतिहास की घटनाओं का वर्णन करते हुए धर्म को जीवन में उतारने की प्रेरणा दी। मुनि जितेंद्रकुमारजी ने जैन आगम सुक्त का विवेचन करते हुए कहा कि जीवन में कृत दोषों की आलोचना कर लेनी चाहिए। आलोचना, प्रायश्चित आत्मा की निर्मल बनाते हैं। गुरु के समक्ष एक बच्चे की भांति सरलता से प्रायश्चित ग्रहण करना चाहिए। श्रावक अपने व्रतों के प्रति जागरूक रहें। साधक को माया, निदान, मिथ्यादर्शन शल्य जैसे दोषों से बचना चाहिए।
इस अवसर पर अखिल भारतीय तेरापंथ युवक परिषद एवं समण संस्कृति संकाय, जैविभा लाडनूं के तत्वावधान में तेयुप गंगाशहर द्वारा आयोजित होने वाली सम्यक दर्शन कार्यशाला का बैनर विमोचित किया गया। इस अवसर पर कार्यशाला के राष्ट्रीय प्रभारी मनीष बाफना, तेयुप अध्यक्ष अरुण नाहटा, तेरापंथ न्यास के ट्रस्टी जतन दुगड़, आचार्य तुलसी शांति प्रतिष्ठान से मनोहर नाहटा, तेयुप उपाध्यक्ष महावीर फलोदिया, सहमंत्री मांगीलाल बोथरा, चंद्रप्रकाश राखेचा, किशोर मंडल सह संयोजक संदीप रांका आदि उपस्थित रहे। 3 अगस्त तक देशभर में चलने वाली इस यह सम्यक दर्शन कार्यशाला इस वर्ष आचार्यश्री महाश्रमणजी की पुस्तक ‘भगवान ने कहा पर आधारित है। 21 अगस्त को संबोधी मोबाइल ऐप पर इसकी ऑनलाइन परीक्षा होगी। राष्ट्रीय प्रभारी मनीष बाफना ने कार्यशाला से संबंधित जानकारी दी।
चातुर्मास काल में हुआ तपस्याओं का आगाज
जैन धर्म में तपस्या साधना का एक महत्वपूर्ण अंग है। चातुर्मास काल में विशेष रूप से श्रावक-श्राविका तपस्या के द्वारा आत्म निर्जरा करते है। तपस्या में अपने आप को संभागी बनाते हुए विजयसिंह नाहटा, सूरजमल संचेती, कुलदीप छाजेड़, प्रकाश राखेचा, मीनाक्षी नाहर, वैशाली भूरा, मनाली भूरा आदि ने मुनिश्री से सात, अठाई एवं नौ की तपस्या का पृथक-पृथक रूप में प्रत्याख्यान किया। चातुर्मास काल में तेरापंथ भवन में प्रतिदिन प्रात: 09:45 बजे मुख्य व्याख्यान का क्रम निरंतर गतिमान है वहीं सायं 08:15 बजे से अर्हत वंदना एवं जैन धर्म के इतिहास पर मुनिश्री द्वारा निवेश विवेचन का क्रम चलता जा रहा है।