Monday, May 12, 2025
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विकास की राजनीति में गहरी अभिरुचि रखने वाले अशोक गहलोत लोकतंत्र की शोभा, महिमा के प्रतीक…

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राजस्‍थान के मुख्‍यमंत्री अशोक गहलोत के जन्म दिवस (3 मई) पर आलेख :-

अशोक गहलोत (Ashok Gehlot) सरीखे व्यक्तित्व लोकतंत्र की शोभा और उसकी महिमा के प्रतीक होते हैं। लोकतंत्र ही उनकी पहचान है और वही उनका पता है। अत्यन्त साधारण परिवारिक पृष्ठभूमि वाले अशोकजी की जनाभिमुख व सतत राजनीतिक उत्कर्ष की यशस्वी जीवन यात्रा सार्वजनिक जीवन में उतरने वालों के लिये एक प्रेरक नजीर जैसी है। जोधपुर में जादूगरी से परिवार चलाने वाले भाग्यशाली पिता की संतान अशोकजी को राजस्थान में राजनीति का जादूगर कहा जाता है। बेटे के कैरियर को लेकर चिन्तित पिता ने खाद की दुकान खुलवाई, पर चल न सकी। शायद इसीलिये की नियति ने उनके लिये राजस्थान में विकास व जनसेवा की राजनीति के यश के साथ राष्ट्रीय राजनीतिक क्षितिज पर मान की उर्वर संभावनायें सहेज रखी थीं। पं. नेहरू की राजनीतिक दृष्टि व इन्दिराजी से राजीवजी तक के नेतृत्व के साथ भले ही उन्होंने राजनीतिक उत्कर्ष की सीढ़ियां चढ़ीं हों, लेकिन उनकी आस्था की बुनियादी चेतना के तार तो गांधी से जुड़े हुये हैं।

अशोकजी को गांधीवादी अभिरुचि के सार्वजनिक जीवन संस्कार शायद नैसर्गिक रूप से मिले थे। तरुणाई से ही उनकी न केवल गांधी साहित्य के प्रति, बल्कि गांधीवादी रचनात्मक आन्दोलनों में भी गहरी अभिरुचि थी। वह सेवाग्राम तक उन्हें  खींच ले जाती रही। सुब्बारावजी के संग स्वयंसेवक के रूप में काम करते हुये पूर्वी पाकिस्तान के लोगों के रिफ्यूजी कैंप में काम करते उस तरुण पर इन्दिरा गांधी की पारखी निगाहें पड़ीं और राजनीतिक क्षेत्र में काम करने के रास्ते खुल गये। राजस्थान एनएसयूआई अध्यक्ष से शुरू कर उनकी संगठनात्मक क्षमता लगातार परवान चढ़ी और जन राजनीति में वह लोकप्रिय उत्कर्ष अर्जित करते ही चले गये। अभी चुनाव लड़ने की उम्र हुई ही थी कि 1977 का विधानसभा चुनाव कांग्रेस टिकट पर लड़ा। पुरानी मोटरसाइकिल बेचकर लड़ा चुनाव वह हारे। उस छोटी उम्र में जिला कांग्रेस का भी काम संभालने लगे। 1979 में उनके आमंत्रण पर जोधपुर आईं इन्दिराजी के अपूर्व जन स्वागत ने 1980 में लोकसभा पहुंचने के द्वार खोल दिये।

सन् 1989 से 91 के दो वर्षों का अंतराल छोड़कर 1980 से 98 तक पांच बार लोकसभा में और उसके बाद पांच बार से लगातार विधान सभा में रहते अब तक 38 साल संसदीय जीवन में बीते हैं। कई बार केन्द्र व प्रदेश में मंत्री रहे और तीसरी बार मुख्यमंत्री हैं। तीन-तीन बार राजस्थान प्रदेश कांग्रेस कमेटी अध्यक्ष एवं अ.भा. कांग्रेस कमेटी महासचिव के रूप में काम किया है। इन भूमिकाओं के साथ एक अति कुशल राजनीतिक प्रशासक तथा दक्ष राजनीतिक संगठनकर्ता की यशस्वी साख उनकी राजनीतिक पूंजी है।

निकट से काम करते देखने पर अशोकजी के व्यक्तित्व से हर वक्त कुछ न कुछ सीखा जा सकता है। ईमानदार एवं पाक साफ सार्वजनिक जिन्दगी, सर्व सुलभ जनाभिमुख राजनीतिक जीवन शैली, सहजता एवं सरलता, एक मिनट की भी भेंट में भी अपने को अगले में उलेड़ कर रख देना, दल ही नहीं उसके बाहर भी आत्मीय निजी रिश्ते जीना व रिश्तों की मर्यादा का निर्वाह, शाकाहारी व सात्विक अभिरुचियां, नशे से चिढ़, पूर्ण आस्तिक होते हुये भी अपने  काम को ही पूजा समझना, संग़ठन या सरकार के किसी भी उत्तरदायित्व निर्वहन में पूर्ण समर्पण के साथ जूझना, किसी अभियान में काम की धुन ऐसी कि चाहे दिन या रातें गुजर जाए अथवा दशहरे दीवाली के बीत जाने का भी पता न चले, नाराजगी की भी अपनत्व में लिपटी आवेशशून्य अभिव्यक्ति, सिद्धान्तों व विचारों की एकनिष्ठ प्रतिबद्धता, अपने फैसलों में सिद्धांत के साथ आम आदमी के हित को कसौटी की तरह इस्तेमाल करना आदि सहित कितनी और भी खासियतें हैं जो अशोक गहलोत गढ़ा करती हैं।

पद प्रतिष्ठा हमेशा अशोकजी की अनुगामिनी रही, लेकिन निकट रहे लोग बखूबी जानते हैं कि उनके प्रति अनुरक्ति का भाव उन्होंने कभी नहीं जिया। विकास की राजनीति में उनकी गहरी अभिरुचि है और शिक्षा व स्वास्थ्य आदि सहित बुनियादी क्षेत्रों पर विशेष बल के साथ राजस्थान एवं जोधपुर के विकास में भगीरथ योगदान दर्ज करने वाले वह एक यशस्वी राजनेता हैं। वह ऐसे जनाधारवादी नेतृत्वकर्ता हैं जो राजस्थान के प्राय: हर गांव में किसी न किसी को सीधा जानता है। खुद की अपनी जाति के संख्याबल का कोई राजनीतिक आधार नहीं, पर राजस्थान में जननायक कहे जाते हैं। राजस्थान में अपनी राजनीतिक जड़ों को दृढ़ रखते हुये व्यापक राष्ट्रीय दृष्टिकोण उनकी विशेषता है। जन्मदिन पर उन्हें बधाईयां और शुभकामनायें। -डॉ. बिट्ठल बिस्सा, राजीव गांधी स्टडी सर्कल, बीकानेर

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