Monday, April 7, 2025
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वास्तु से बना पूर्वमुखी घर ला सकता है परिवार में खुशियां व प्यार

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वास्तुकला केवल भौगोलिक दिशा का मामला नहीं है; यह किसी के रहने की जगह में ऊर्जा, समृद्धि और शांति पैदा करने की नींव है। प्रमुख दिशाओं में, पूर्व-मुखी घर खास तौर पर तब खास होते हैं, जब ये वास्तु शास्त्र के प्राचीन ज्ञान का पालन करते हुए डिजाइन किए गए हों। घर का महत्व केवल चार दीवारों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह परिवार, प्रेम और आपसी सहयोग का प्रतीक होता है। घर का वातावरण हमेशा सुखद और सौहार्दपूर्ण बनाए रखना चाहिए और यह काफ़ी हद तक आपके घर के वास्तु पर भी निर्भर करता है। हमारे यहाँ पूर्व मुखी घर को बहुत शुभ माना जाता है परंतु सिर्फ दिशा से कोई घर शुभ या अशुभ नहीं होता। कई कारण इसे अशुभ बना सकते हैं। जैसे मुख्य द्वार, पूजा कक्ष या रसोई का गलत स्थान घर में नकारात्मक ऊर्जा ला सकता है। इन दोषों को ठीक करना जरूरी होता है। पूर्व दिशा सूर्योदय से जुड़ी है, जो प्रकाश, ज्ञान और आध्यात्मिक विकास का प्रतीक है। ऐसा माना जाता है कि पूर्व मुखी घर इस ऊर्जा का उपयोग करते हैं, जिससे रहने वालों को ज्ञान और स्पष्टता की सुविधा मिलती है।

सकारात्मक ऊर्जा को और बढ़ाने के लिए मुख्य प्रवेश द्वार पर ‘स्वास्तिक’ चिह्न लगाने का सुझाव दिया जाता है। इस प्राचीन चिह्न को शुभ माना जाता है और माना जाता है कि यह घर के निवासियों के लिए समृद्धि और सौभाग्य लाता है।

वास्तु शास्त्र के अनुसार, रसोई के लिए दक्षिण-पूर्व दिशा आदर्श है। खाना बनाते समय सुनिश्चित करें कि आप पूर्व दिशा की ओर मुंह करके बैठना चाहिए। इस दिशा को भोजन बनाने के लिए आदर्श माना गया है। यदि यह संभव नहीं हो तो उत्तर दिशा में मुख करके भी भोजन बनाया जा सकता है।

वास्तु के अनुसार, पूर्वमुखी घर में मास्टर बेडरूम दक्षिण-पश्चिम दिशा में होना चाहिए। यह कमरे में मौजूद अन्य कमरों से बड़ा होना जरूरी है। बेड को दक्षिण या पश्चिम दीवार के पास रखना चाहिए। मास्टर बेडरूम में बदलने (ड्रेसिंग) का कमरा पश्चिम या उत्तर दिशा में होना चाहिए। साथ ही, बाथरूम का दरवाजा सीधे बेड की ओर नहीं होना चाहिए और उसे हमेशा बंद रखना चाहिए।

आजकल लोग मास्टर बेडरूम का तो ध्यान रख लेते है लेकिन उसमें अटैच बाथरूम का निर्माण कहाँ होना चाहिए इसका उन्हें सम्यक् ज्ञान नहीं होता है और उन्हें धन संबंधी नुकसान या धन से संबंधित समस्याएँ बनी रहती हैं। घर के पूर्वी भाग में यदि संभव हो सके तो बालकनी या ज़्यादा संख्या में खिड़कियां रखनी चाहिए। अनुभवों में आया है कि ऐसा करने से वास्तु संबंधी परेशानियों का शमन होता है।

घर में पूजा घर के लिए भी उचित स्थान होना आवश्यक है। पूर्व दिशा वाले घर में पूजा कक्ष आदर्श रूप से उत्तर-पूर्व दिशा में होना चाहिए। सुनिश्चित करें कि आपका पूजा कक्ष बाथरूम से दूर हो। पूजा घर किसी भी घर का मुख्य ऊर्जा का स्रोत होता है। पूर्व मुखी घर में यदि मंदिर उपयुक्त स्थान पर नहीं होता है तो इसके घातक परिणाम होते हैं।

घर में भूमिगत जल भंडारण को ईशान कोण में रखना उचित है परंतु साथ ही यह भी ध्यान रखना चाहिए कि इस दिशा में गलती से भी हमें सेप्टिक टैंक नहीं बनाना चाहिए। यदि यहाँ सेप्टिक टैंक होता हैं तो यह शारीरिक समस्याओं का कारण बन सकता है। पूर्व मुखी घर बनाते समय यह समस्या आती है कि अतिथि कक्ष कहाँ रखें? इसके लिए यह समाधान है कि ऐसी स्थिति में अतिथि कक्ष उत्तर पश्चिम में बनाया जा सकता है।

वास्तु शास्त्र के अनुसार, पूर्व मुखी वास्तु योजना में सीढ़ियों का निर्माण पश्चिम, दक्षिण या दक्षिण-पश्चिम दिशा में किया जाना चाहिए। उत्तर-पूर्व दिशा में सीढ़ियाँ बनाने से बचना चाहिए तथा इसके साथ ही मकान मालिक को रसोईघर को उत्तर-पूर्व दिशा में बनाने से बचना चाहिए ।उत्तर-पूर्व दिशा में शौचालय भी नहीं बनाना चाहिए।

सार रूप में कह सकते हैं कि वास्तु सिद्धांतों के अनुसार, पूर्व दिशा वाला घर शुभ माना जाता है। पूर्व मुखी घरों की वास्तु विजिट के दौरान पाया गया कि यह अपने निवासियों के लिए खुशियाँ, अच्छे बच्चे और विभिन्न प्रकार की सफलताएँ लेकर आता है। -सुमित व्यास, एम.ए (हिंदू स्टडीज़), काशी हिंदू विश्वविद्यालय, वाराणसी, मोबाइल – 6376188431

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