








बीकानेर abhayindia.com नगर निगम चुनावों के लिये वार्डों की लॉटरी निकाले जाने के बाद कई मौजूदा पार्षदों की राजनीतिक जमीन खिसकने के कारण वे नए वार्ड क्षेत्रों की तलाश कर रहे हैं, जहां से आगामी चुनाव में ताल ठोक सकें।
गौरतलब है कि वार्डों के पुनर्गठन की कवायद से नगर निगम वार्ड बढकऱ 80 हो गए हैं। पहले इनकी संख्या 60 थी। एक साथ 20 नए वार्ड क्षेत्रों के बढऩे से राजनीतिक संभावनाएं बढ़ी हैं, लेकिन जो पार्षद पिछली दफा निर्वाचित हुए थे, उन क्षेत्रों में आरक्षण की लॉटरी से उलटफेर हो जाने से उथल–पुथल मच गई है। उनके वार्ड भले ही बदल गये हो, लेकिन पार्षदी का मोह नहीं छूट रहा।
जानकारी के अनुसार फिलहाल भाजपा और कांग्रेस के दो दर्जन से ज्यादा ऐसे पार्षद है जिनके वार्ड में उलटफेर हो जाने के बाद वह नये वार्ड से अपनी जीत के समीकरण तलाशने में जुटे है। दिलचस्प बात तो यह है इनमें गंगाशहर इलाके का एक पार्षद अब अपने ससुराल के वार्ड से दावेदारी की कशकमश में जुटा है। वहीं जिन स्थापित शहरी नेताओं के अपने वार्ड आरक्षण की जद में आने से उनसे दूर छिटक गए हैं, वे शहर में ऐसे वार्डों को राजनीतिक कर्मभूमि बनाने की संभावनाएं तलाश रहे हैं, जो आकार और मतदाताओं की संख्या के लिहाज से अपनेक्षाकृत छोटे हैं। वे संबंधित क्षेत्रों के मतदाताओं से ऊपरी तौर पर सम्पर्क करने में भी जुट गए हैं। इसके अलावा संबंधित वार्ड की आने वाले समय की चुनावी तस्वीर पर भी नजरें जमाए हुए हैं।
महापौर की लॉटरी पर निर्भरता
नगर निगम चुनाव की असली रंगत महापौर की लॉटरी के बाद ही जम सकेगी। कई नेता ऐसे हैं जो महापौर बनने के मंसूबे पाले हुए हैं, वे महापौर के पद का फैसला होने के बाद ही आगामी कदम बढ़ाएंगे। जानकारों के मुताबिक बीकानेर नगर निगम महापौर चुनाव सामान्य होकर या तो सबके लिए खुल जाएगा अथवा ओबीसी महिला के लिए आरक्षित होने की सबसे अधिक संभावना है। सामान्य वर्ग के नेता हो अथवा ओबीसी के पुरुष राजनीतिक, वे इसी कारण पार्षद चुनाव को लेकर खुलकर बोलने से भी कतराते नजर आते हैं। इस बीच स्वायत्तशाषी निकायों के मुखिया का चुनाव प्रत्यक्ष करवाने के निर्णय को पलटे जाने की अटकलों से चर्चा का एक नया बिंदु सामने आ गया है। सत्ताधारी पार्टी के नेता–कार्यकर्ता भी यह मान रहे हैं कि, राजस्थान निकाय चुनावों में मुखिया का प्रत्यक्ष चुनाव करवाने से कांग्रेस को नुकसान हो सकता है।





