सनातन में विश्वास रखने वाले अपने घर में एक छोटा सा पूजा घर अवश्य बनाते है। घर के इस स्थान पर व्यक्ति आध्यात्मिक शांति का अनुभव करता है, इसलिए इस स्थान का निर्माण करने में विशेष सावधानी बरतनी चाहिए। इस सम्बंध में सबसे पहला सवाल उठता है कि मंदिर कहां बनाया जाए। इस सम्बंध में प्राचीन वास्तु ग्रन्थ कमोबेश एक सा ही जवाब देते है। वास्तु रत्नाकर में कहा गया है -“मंदिरं कुर्यात् पूर्वभागे वा मध्यभागे वा तु दक्षिणे उत्तरे वा अपि वा ईशान्यां शुभं मंदिरम्” इसका आशय है मंदिर का निर्माण पूर्व, मध्य, दक्षिण या उत्तर दिशा में किया जा सकता है, लेकिन ईशान्य (उत्तर-पूर्व) दिशा में मंदिर बनाना सबसे शुभ है। इसी प्रकार विश्वकर्मा प्रकाश में कहा गया है- “पूर्वाभिमुखं मंदिरं यः करोति स उच्चताम् धनधान्यसमृद्धिः स्यात् तेन कुलं प्रजायते” इसका आशय है जो व्यक्ति पूर्व दिशा की ओर मंदिर बनाता है, वह उच्चता को प्राप्त होता है। उसके घर में धन-धान्य की समृद्धि होती है और कुल में वृद्धि होती है।”
वहीं, वास्तु ग्रंथ मानसार में कहा गया है – “मंदिरे ईशान्यदेशे तु देवतानां समीपस्थितः तेन कुलं प्रजायते सुखसमृद्धि च” इसका आशय है मंदिर का निर्माण ईशान्य दिशा में करना चाहिए, जहाँ देवताओं का निवास होता है। इससे कुल में वृद्धि होती है और सुख-समृद्धि आती है। इन सभी वास्तु ग्रन्थों का सार है मंदिर का निर्माण पूर्व, मध्य, दक्षिण या उत्तर दिशा में किया जा सकता है।साथ ही ईशान्य दिशा में मंदिर बनाना सबसे शुभ है। पूर्व दिशा की ओर मंदिर बनाने से घर में धन-धान्य की समृद्धि होती है। वास्तु के मुताबिक, सुख-सौभाग्य में वृद्धि के लिए पूजा करते समय मुख हमेशा पूर्व की ओर होना चाहिए। पश्चिम दिशा की ओर मुख करके पूजा करने से धन में वृद्धि होती है। वहीं, मान्यता है कि दक्षिण दिशा की ओर मुख करके पूजा नहीं करना चाहिए। इससे अशुभ फल मिल सकते हैं।
वास्तु ग्रंथों में मल-मूत्र विसर्जन स्थल, कुएं या जल संचयन स्थल, भोजनशाला, पाकशाल, शयनागार, दरवाजे के सामने, खिड़की के नीचे, सीढ़ियों के पास, बाथरूम के पास व कूड़ेदान के पास मंदिर न बनाने के लिए हिदायत दी गई है। वास्तु रत्नाकर में कहा गया है -“मलमूत्र विसर्जनस्थाने मंदिरं न कुर्यात् पापीयानां निवासभूतम् तेन कुलं नश्यति” इसका आशय है मल-मूत्र विसर्जन स्थल पर मंदिर नहीं बनाना चाहिए। यह स्थान पापियों के निवास के लिए होता है और इससे कुल का नाश होता है।” इसी प्रकार विश्वकर्मा प्रकाश में कहा गया है – “कूपे च जलसंचयने मंदिरं न कुर्यात् जलदोषेण कुलं नश्यति” इसका आशय है कुएं या जल संचयन स्थल पर मंदिर नहीं बनाना चाहिए। इससे जल दोष होता है और कुल का नाश होता है। मंदिर में क्या हो क्या नहीं हो इस बारे में सनातन ग्रंथों की अपनी आचार संहिता है। इसके अनुसार घर में दो शिवलिंग, तीन गणेश, दो शंख, दो सूर्य-प्रतिमा, तीन देवी प्रतिमा, दो द्वारकाके (गोमती) चक्र और दो शालग्राम का पूजन करने से गृहस्वामी को उद्वेग (अशान्ति) प्राप्त होती है- गृहे लिङ्गद्वयं नार्च्य गणेशत्रितयं तथा। शङ्खद्वयं तथा सूर्यो नाच्यौं शक्तित्रयं तथा॥ द्वे चक्रे द्वारकायास्तु शालग्रामशिलाद्वयम्। तेषां तु पूजनेनैव उद्वेगं प्राप्नुयाद् गृही ॥ (आचारप्रकाश; आचारेन्दु) मंदिर एक पवित्र स्थान है जहाँ आप प्रार्थना कर सकते हैं, ध्यान लगा सकते हैं और सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त कर सकते हैं। इसलिए, ऐसे शुभ स्थान के लिए सही रंग हल्के, सुखदायक रंग हैं। ये रंग घर में सूक्ष्म शांति को प्रतिध्वनित करने में मदद करते हैं जो शांतिपूर्ण वातावरण बनाए रखने में मदद करते हैं। हल्के रंग किसी भी स्थान को हवादार और विशाल दिखाते हैं, जबकि गहरे रंग चुनने से स्थान तंग और भारी लग सकता है। इसलिए, मंदिर के रंगों के रूप में सफेद, ऑफ-व्हाइट, क्रीम, हल्के गुलाबी और हल्के पीले रंग चुनें।सनातन धर्म में घर में मंदिर को सही दिशा में बनाने का विशेष महत्व है।
कुछ घरों में ऐसा देखा गया है कि भोले भाले लोग किसी भी व्यक्ति के कहने पर बड़ी बड़ी मूर्तियाँ अपने मंदिर में रखते है। ऐसा करना शास्त्र सम्मत नहीं है तथा कुछ लोग तो इस पूर्वाग्रह या अफ़वाह का शिकार भी होते है कि घर में मूर्ति ही नहीं रखनी चाहिए जबकि ऐसा कुछ भी नहीं है। इसके संदर्भ में हमें मत्स्यपुराण के इस श्लोक को अवश्य संज्ञान में लाना चाहिए। अङ्गुष्ठपर्वादारभ्य वितस्तिर्यावदेव तु। गृहेषु प्रतिमा कार्या नाधिका शस्यते बुधैः ॥ (मत्स्यपुराण २५८। २२) इसका मतलब है कि एक बित्ते से अधिक ऊँची मूर्ति नहीं रखनी चाहिए।
सबसे महत्वपूर्ण बातों में से एक यह है कि पूजा घर में गैर जरूरी चीजे और मृतक सदस्यों की तस्वीर ना रखें। पूजा घर को हमेशा साफ रखें और नियमित पोछा लगाएं। बहुत से लोग घर का राशन और दूसरी चीजें भी पूजा घर में रख लेते हैं। इन्हें समझना होगा कि पूजा घर स्टोर रूम नहीं होता है, इसे भारी ना होने दें। पूजा घर भार मुक्त रहेगा तो मन उन्मुक्त रहेगा और सकारात्मकता आपके अंदर प्रवेश करेगी। पूजास्थल निर्माण के समय या निर्माण के बाद भी योग्य वास्तुविद से सलाह लेकर सकारात्मक परिणाम लिए जा सकते है। -सुमित व्यास, एम.ए (हिंदू स्टडीज़), काशी हिंदू विश्वविद्यालय, वाराणसी, मोबाइल – 6376188431