








बीकानेर Abhayindia.com भीष्म पंचक व्रत (पंचभीखा) के व्रत का दौर चल रहा है। यह व्रत आमतौर पर महिलाएं करतीं हैं। लेकिन, बदलते परिवेश में आजकल पुरुष भी इस व्रत का पालन करने में पीछे नहीं है। बीकानेर के युवक नारायण बाबू पुरोहित ने लगातार तीसरे साल इस व्रत के पालन का निर्णय किया है।
सुथारों की बड़ी गुवाड़ निवासी सामाजिक कार्यकर्त्ता नारायण बाबू ने बताया कि वे पहले भी दो साल इस व्रत का सफलतापूर्वक पालन कर चुके हैं। इस दौरान वे केवल जल ही ग्रहण करते हैं। इसके अलावा कुछ भी अन्न या अन्य चीज ग्रहण नहीं करते। व्रत के दौरान उन्हें अभी तक स्वास्थ्य संबंधी भी कोई परेशानी नहीं हुई है। नारायण बाबू के अनुसार, समस्त मानव जाति में लोक कल्याण की भावना स्थापित हो, इसी कामना को लेकर वे यह व्रत करते हैं। वे बताते हैं कि कई परिचित मित्र भी इस व्रत का पालन करते हैं। इससे हमें आत्मिक संतुष्टि मिलती है। देवउठनी एकादशी (4 नवंबर) से शुरू हुआ यह व्रत 8 नवम्बर (कार्तिक पूर्णिमा) तक रहेगा।
इसलिए कहा जाता है कि भीष्म पंचक या पंचभीखा…
पांच दिनों तक चलने के कारण इसे भीष्म पंचक कहा जाता है। स्थानीय भाषा में इसे पंचभीखा भी कहा जाता है। आपको बता दें कि यह लोक मान्यता है कि इस व्रत को जो नियमों के साथ करता है उसे हर तरह के पापों से मुक्ति मिल जाती है। मान्यता यह भी है कि इससे नि:संतान दंपति को संतान सुख मिलता है। साथ ही धन धान्य की बढ़ोत्तरी और स्वास्थ्य अच्छा रहता है।
ऐसे हुई व्रत की शुरूआत…
मान्यता है कि भीष्म पंचक व्रत रखने की परंपरा महाभारत काल से शुरू हुई थी। जब महाभारत के युद्ध के समय शरशैया पर शयन करते हुए सूर्य के उत्तरायण की प्रतिक्षा कर रहे थे। तब भगवान श्रीकृष्ण पांचों पांडवों को लेकर उनके पास पहुंचे थे। ऐसे में युधिष्ठिर ने भीष्म पितामह को उपदेश देने के लिए कहा था। जब भीष्म पितामह ने अगले पांच दिनों तक राज धर्म, वर्ष, मोक्ष धर्म आदि का उपदेश दिया था। उनके उपदेश सुनकर श्रीकृष्ण ने पितामह से कहा– पितामह! आपके कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष से पूर्णिमा तक धर्म संबंधी उपदेश दिया। इससे मैं काफी प्रसन्न हुआ था। इन पांच दिनों को याद करते हुए आपके नाम पर भीष्म पंचक व्रत स्थापित करता हूं। जो लोग इस व्रत को रखेंगे वह जीवन भर सुख–समृद्धि के भागीदार होंगे और मृत्यु के बाद मोक्ष की प्राप्ति होगी।





