योग : कर्मसु कौशलम्” अर्थात् योग से कर्मों में कुशलता आती है। व्यावहारिक स्तर पर योग शरीर, मन और भावनाओं में संतुलन और सामंजस्य स्थापित करने का एक साधन है। योग का मतलब है आत्मा से परमात्मा का मिलन। महाभारत युदध् के दौरान जब अर्जुन रिश्ते नातों में उलझ कर मोह में बंध रहे थे तब भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को बताया कि जीवन में सबसे बड़ा योग कुछ है तो वह है, कर्म। योग का वर्णन कर के ही भगवान ने अर्जुन के अंदर जमा प्रेम, मोह और डर को दूर किया था। लेकिन हर योग अंतत: ईश्वर से मिलने मार्ग से ही जुड़ता है। योग का मतलब है आत्मा से परमात्मा का मिलन। भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को 18 प्रकार के योग मुद्रा के बारे में जानकारी देकर उनके मन में व्याप्त नकारात्मकता को दूर किया था।
गीता में उल्लिखित प्रमुख योग मुद्राएं विषाद योग-
विषाद यानी दुख। युद्ध के मैदान में जब अर्जुन ने अपनो को सामने देखा तो वह विषाद योग से भर गए। उनके मन में निराशा और अपनो के नाश का भय हावी होने लगा। तब भगवान श्रीकष्ण ने अर्जुन के मन से यह भय दूर करने का प्रयास किया। श्रीकृष्ण ने अर्जुन को जो उपदेश दिए, वही गीता बनीं। उन्होंने सर्वप्रथम विषाद योग से अर्जुन को दूर किया और युद्ध के लिए तैयार किया था।
सांख्य योग-
सांख्य योग के जरिये भगवान श्रीकृष्ण ने पुरुष की प्रकृति और उसके अंदर मौजूद तत्वों के बारे में समझाया। उन्होनें अर्जुन को बताया कि मनुष्य को जब भी लगे कि उस पर दुख या विषाद हावी हो रहा है उसे सांख्य योग यानी पुरुष प्रकृति का विश्लेषण करना चाहिए। मनुष्य पांच सांख्य से बना है,आकाश (Space) , वायु (Force), अग्नि (Energy), जल (State of matter) तथा पृथ्वी (Matter) अंत में मनुष्य पंच महाभूत में ही विलीन हो जाता है।
कर्म योग-
भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को बताया कि जीवन में सबसे बड़ा योग कर्म योग है। इस योग से देवता भी नहीं बच सकते। कर्म योग से सभी बंधे हैं। सभी को कर्म करना है। इस बंधन से कोई मुक्त नहीं हो सकता है। साथ ही यह भी समझाया की कर्म करना मनुष्य का पहला धर्म है। उन्होंने अर्जुन को समझाया कि सूर्य और चंद्रमा भी अपने कर्म मार्ग पर निरंतर प्रशस्त रहते हैं। तुम्हें भी कर्मशील बनना होगा।
ज्ञान योग-
भगवान श्रीकृष्ण ने अजुर्न से कहा कि ज्ञान अमृत समान होता है। इसे जो पी लेता है उसे कभी कोई बंधन नहीं बांध सकता। ज्ञान से बढ़कर इस दुनिया में कोई चीज़ नहीं होती है। ज्ञान मनुष्य को कर्म बंधनों में रहकर भी भौतिक संसर्ग से विमुक्त बना देता है।
कर्म वैराग्य योग-
भगवान ने अर्जुन को बताया कि कर्म से कोई मुक्त नहीं, यह सच है, लेकिन कर्म को कभी कुछ पाने या फल पाने के लिए नहीं करना चाहिए। मनुष्य को अपना कर्म करना चाहिए यह सोचे बिना कि इसका फल उसे कब मिलेगा या क्या मिलेगा। कर्म के फलों की चिंता नहीं करनी चाहिए। ईश्वर बुरे कर्मों का बुरा फल और अच्छे कर्मों का अच्छा फल देते हैं।
ध्यान योग-
ध्यान योग से मनुष्य खुद को मूल्यांकन करना सीखता है। इस योग को करना हर किसी के लिए जरूरी है। ध्यान योग में मन और मस्तिष्क का मिलन होता है और ऐसी स्थिति में दोनों ही शांत होते हैं और विचलित नहीं होते। ध्यान योग मनुष्य को शांत और विचारशील बनता है।
विज्ञान योग-
इस योग में मनष्य किसी खोज पर निकलता है। सत्य की खोज विज्ञान योग का ही अंग है। इस मार्ग पर बिना किसी संकोच के मनुष्य को चलना चाहिए। विज्ञान योग तप योग की ओर ही अग्रसर होता है।
अक्षर ब्रह्म योग-
श्रीकृष्ण ने अर्जुन को बताया कि अक्षर ब्रह्म योग की प्राप्ति से ही ब्रह्मा, आधिदेव, अध्यात्म और आत्म संयम की प्राप्ति होती है। मनुष्य को अपने भौतिक जीवन का निर्वाह शून्य से करना चाहिए। अक्षर ब्रह्म योग के लिए मनुष्य को अपने अंदर के हर विचार और सोच को बाहर करना होता है। नए सिरे से मन को शुद्ध कर इस योग को कराना होता है।
राज विद्या गुह्य योग-
इस योग में स्थिर रहकर व्यक्ति परम ब्रह्म के ज्ञान से रूबरू होता है। मनुष्य को परम ज्ञान प्राप्ति के लिए राज विद्या गुह्य योग का आत्मसात करना चाहिए। इसे आत्मसात करने वाला ही हर बंधनों से मुक्त हो सकता है।
विभूति विस्तारा योग-
मनुष्य विभूति विस्तार योग के जरिये ही ईश्वर के नजदीक पहुंचता है। इस योग के माध्यम से साधाक ब्रह्म में लीन हो कर अपने ईश्वर मार्ग को प्रशस्त करता है।
विश्वरूप दर्शन योग-
इस योग को कर लेने पर मनुष्य को ईश्वर के विश्वरूप का दर्शन होता है। ये अनंत योग माना गया है। ईश्वर ने भी योग के माध्यम से ही विराट रूप प्राप्त किया हैं।
भक्ति योग-
भक्ति योग ईश्वर प्राप्ति का सर्वश्रेष्ठ योग है। बिना इस योग के भगवान नहीं मिल सकते। जिस मनुष्य में भक्ति नहीं होती उसे भगवान कभी नहीं मिलते।
क्षेत्र विभाग योग-
क्षेत्र विभाग योग ही वह जरिया है जिसके द्वारा मनुष्य आत्मा, परमात्मा और ज्ञान के गूढ़ रहस्य को जान पाता है। इस योग में समा जाने वाले ही साधक योगी होते हैं।
आज के वर्तमान परिदृश्य में जहां जीवन की परेशानियों से निजात पाने के लिए लोग या तो गलत रास्ते अपना रहे हैं या आत्महत्या का प्रयास कर अपनी जीवन लीला समाप्त कर रहे हैं। अतः गीता में वर्णित ये योग, मौजूदा समय में मनुष्य की जरूरत हैं। इसे अपनाने वाला ही असल मायने में अपने जीवन की कठिनाइयों को दूर कर पूर्ण रूप से जी पाता है। -डॉ. मनीषा शर्मा, संपादक: शिक्षा कौस्तुभ शोध पत्रिका, जयपुर