बीकानेर (अभय इंडिया न्यूज)। उष्ट्र अनुसंधान केन्द्र ने ऊंटों की महत्ता सिद्ध करने के लिए अपनी प्रतिबद्धता दिखाई है। बदलते परिवेश में उष्ट्र पालन व्यवसाय को जीवित रखने के लिए केन्द्र ने ऊंट को एक दूधारू पशु के रूप में विकसित कर एक बेहतर विकल्प सुझाया है। साथ ही एनआरसीसी द्वारा ऊंटनी के दूध की मैडीसनल वैल्यू भी पता लगाई है, परंतु ऊंटों की संख्या तेजी से घट रही है, ऐसे में दूध की व्यवसायीकरण सोच जरूरी है। क्योंकि कैमल मिल्क में विभिन्न मानवीय रोगों जैसे मधुमेह, टी.बी. ऑटिज्म आदि को ठीक करने का सामथ्र्य है और यह अब सर्वमान्य भी है।
केन्द्रीय कृषि एवं किसान कल्याण राज्य मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने रविवार को एनआरसीसी में पशुपालक कृषक-वैज्ञानिक संवाद कार्यक्रम को संबोधित करते हुए यह बात कही। उन्होंने ऊंटनी के दूध के औषधीय गुणधर्मों एवं संस्थान द्वारा विकसित प्रौद्योगिकी पर बात रखते हुए कहा कि विश्व के कई देशों में ऊंटनी के दूध से बने उत्पादों विशेषकर पाउडर आदि की बिक्री कीमत बहुत ज्यादा है। ऐसे में जब एनआरसीसी ने इस दूध से बने अनेकानेक दूध उत्पाद जैसे चाय, कॉफी, आइसक्रीम, फ्लेवर्ड मिल्क आदि विकसित किए गए है तो ऐसे में देश में अमूल के कन्सेप्ट की तरह ही इन उत्पादों का व्यावसायीकरण होने पर ऊंट पालकों की आय को दुगुना की अपेक्षा कई गुना भी बढ़ाया जा सकता है। उन्होंने ऊंट पालकों को प्रोत्साहित करते हुए कहा कि यह एक ऐसा पशु है जो जीते जी व मरने के बाद भी अपने स्वामी को लाभ मुहैया करवाता है, अत: पर्यटन के दृष्टिकोण से इस व्यवसाय में प्रबल संभावनाएं है।
शेखावत ने बैठक से पूर्व एनआरसीसी के उष्ट्र संग्रहालय, डेयरी, फीड टैक्नोलॉजी आदि का अवलोकन करते हुए उष्ट्र सवारी का भी आनंद लिया। उन्होंने एनआरसीसी परिसर में पौधा भी लगाया। इस अवसर पर केन्द्र निदेशक डॉ. एन. वी. पाटिल ने ऊंटों के विभिन्न पहलुओं से जुड़ी संस्थान की उपलब्धियों की जानकारी देते हुए कहा कि केन्द्र ऊंटनी के दूध पर गहन अनुसंधान कर इसकी महत्ता सिद्ध कर चुका है, अब इसका विपणन किया जाना है। इसके लिए नीतिगत (पॉलिसी सपोर्ट) सहायता आवश्यक है साथ ही तथा राज्य सरकार व पशुपालन विभाग भी आगे आएं क्योंकि अब रायका समाज ऊंट पालक भी इसके दूध संबंधी भ्रांतियों से ऊपर उठकर व्यवसाय के लिए उत्सुक है। डॉ. पाटिल ने बताया कि एनआरसीसी ने ऊंट की अनुकूलन, रोग प्रतिकारक क्षमता एवं दूध के औषधीय गुणधर्मों को ध्यान में रखते हुए महत्वपूर्ण अनुसंधान परिणाम प्राप्त किए हैं। केन्द्र ने यह पता लगाया है कि कैमल की इम्यूनोलॉजी अद्वितीय है, इसका करेक्ट्राईजेशन भी किया गया है। केन्द्र इको-टूरिज्म के लिए प्रयासरत है।
डॉ. पाटिल ने केन्द्र की समन्वयात्मक अनुसंधान उपलब्धियों एवं केन्द्र में साईंटिफिक संवर्ग आदि की कमी की ओर ध्यान आकर्षित करवाते हुए सहयोग की अपेक्षा जताई। इस अवसर पर केन्द्रीय शुष्क बागवानी संस्थान के निदेशक डॉ. पी. एल. सरोज ने अपने संस्थान की उपलब्धियों संबंधी विवरण करते हुए अपने विचार रखे। इस अवसर पर राजूवास के पूर्व कुलपति प्रो. ए. के. गहलोत, प्रगतिशील उष्ट्र पालक जगमाल सिंह राईका, शंकर रेबारीए, श्रेयकुमार उपस्थित थे। इस दौरान केन्द्र की कार्यक्रम संचालन प्रधान वैज्ञानिक डॉ. सुमन्त व्यास ने किया।