Saturday, May 4, 2024
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शिक्षा विभाग की विशेष अपील खारिज, जिला परिषद बीकानेर के अप्रशिक्षित अध्यापक का मामला

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जोधपुर Abhayindia.com राजस्थान उच्च न्यायालय की खण्डपीठ ने प्राथमिक शिक्षा विभाग द्वारा प्रस्तुत की गई विशेष अपील जो एकलपीठ के आदेश के विरूद्व प्रस्तुत की गई थी जिसे खारिज करते हुए प्रार्थी चौरूलाल को 318 दिनों के अध्ययन अवकाश यानि की एकलपीठ के आदेश को यथावत रखते हुए एकलपीठ के आदेश में किसी भी तरह का हस्तक्षेप करने से इंकार कर दिया है।

प्रार्थी चौरूलाल की नियुक्ति उसके पिता के देहान्त के बाद अनुकम्पा आधार पर अप्रशिक्षित अध्यापक के रूप में वर्ष 1997 में जिला परिषद बीकानेर के राजकीय प्राथमिक विधालय नौरंगदेसर जिला बीकानेर में हुई थी। उसके नियुक्ति आदेश में प्राथमिक शिक्षा विभाग द्वारा यह शर्त रखी गयी थी कि उसे तीन वर्ष में प्रशिक्षण प्राप्त करना होगा एवं प्रशिक्षण प्राप्त करने के उपरांत ही उसे वार्षिक वेतनवृद्वि प्रदान की जायेगी। विभाग द्वारा उसे दो वर्ष के बाद वर्ष 2001 में प्रशिक्षण के लिए भेजा गया था जिसमें से एक वर्ष पत्राचार के माध्यम से व एक वर्ष के लिये नियमित प्रशिक्षाणार्थी के रूप में प्रशिक्षण प्राप्त करने का आदेश प्रदान किया गया। नियमित प्रशिक्षाणार्थी के रूप में उसे 19.9.2001 को शिक्षण प्रशिक्षण महाविधालय के लिए कार्यमुक्त किया गया एवं प्रशिक्षण प्राप्त करने के उपरांत उसने 3.8.2002 को पुन: अपनी शाला में कार्यग्रहण कर लिया। द्वितीय वर्ष का पाठयक्रम उसने पत्राचार के माध्यम से पूर्ण किया।

प्राथमिक शिक्षा विभाग द्वारा उसके नियमित छात्र के रूप में प्रथम वर्ष के लिये यानि 19.9.2001 से 3.8.2002 तक के 318 दिनों का अवकाश अध्ययन अवकाश के रूप में स्वीकृत नहीं करने पर उसके द्वारा राजस्थान उच्च न्यायालय में वर्ष 2017 में एक याचिका प्रस्तुत की गई। उक्त रिट याचिका को वर्ष 2019 में एकलपीठ ने प्रार्थी चौरूलाल के पक्ष में निर्णित करते हुए उसको 318 दिनो का अध्ययन अवकाश स्वीकृत करने का आदेश विभाग को जारी किया गया।एकलपीठ आदेश के विरूद्व विभाग द्वारा खण्डपीठ में वर्ष 2022 में एक विशेष अपील प्रस्तुत की। विभाग का खण्डपीठ के समक्ष यह तर्क था कि प्रार्थी ने रिट याचिका अपनी नियुक्ति वर्ष 1997 से लगभग 15 वर्षो पश्चात एकलपीठ के समक्ष प्रस्तुत की है एवं एकलपीठ द्वारा जो निर्णय प्रार्थी के पक्ष में पारित किया गया है। वह इसी आधार पर निरस्त करने योग्य है क्योकि प्रार्थी ने समय पर अध्ययन अवकाश मांग नहीं की है।

खण्डपीठ के समक्ष चौरूलाल के अधिवक्ता प्रमेन्द्र बोहरा का यह तर्क था कि अध्ययन अवकाश स्वीकृत नही करने के कारण प्रार्थी को प्रत्येक माह की 01 तारीख को वित्तीय हानि उठानी पड रही है, अध्ययन अवकाश स्वीकृत नही करने के कारण विभाग द्वारा उसको वार्षिक वेतन वृद्वि का लाभ प्रदान नहीं किया जा रहा है एवं विभाग द्वारा जो अपील प्रस्तुत की गयी है वह भी 795 दिनों के मियाद बाद प्रस्तुत की गई है।

खण्डपीठ ने चौरूलाल के अधिवक्ता के तर्को से सहमत होेते हुए विभाग द्वारा प्रस्तुत की गई विशेष अपील को खारिज करते हुए एकलपीठ के निर्णय केा उचित ठहराते हुए एवं उसमें किसी प्रकार का हस्तक्षेप न करते हुए प्रार्थी को 318 दिनों का अध्ययन अवकाश स्वीकृत करने का आदेश विभाग को प्रदान किया गया है।

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