Monday, December 23, 2024
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वर्तमान जलवायु परिवर्तन में परंपरागत जैव विविधता संरक्षण के स्रोतों की प्रासंगिकता

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बीकानेर Abhayindia.com अंतरराष्ट्रीय जैव विविधता दिवस पर आज राज्य जैव विविधता बोर्ड व एमबीएस गवर्नमेंट कॉलेज बाड़मेर की ओर से संयुक्त रूप से आयोजित कार्यक्रम में प्रो. अनिल कुमार छंगाणी, विभागाध्यक्ष, पर्यावरण विज्ञान विभाग महाराजा गंगा सिंह विश्वविद्यालय बीकानेर ने “जैव विविधता की महत्वता तथा कोविड जैसी महामारी में भी परंपरागत जैव विविधता संरक्षण की व्यवस्थाओं की सार्थकता” विषय पर ऑनलाइन व्याख्यान दिया।

इस अवसर पर प्रो. छंगाणी ने बताया कि जैव विविधता में टाइगर, शेर व हाथी जितना ही महत्व मधुमक्खियां व तितलियां जैसे छोटे जीव जंतुओं का भी है। थार मरुस्थल में जैव विविधता संरक्षण की परंपरागत व्यवस्थाएं हमारे बुजुर्गों द्वारा स्थापित की गई थी, वो आज भी उतनी ही प्रासंगिक है जितना की वर्तमान विज्ञान। उन्‍होंने कहा कि इन परंपरागत जैव विविधता संरक्षण की व्यवस्थाओं ने जिन में जैसे ओरण, गोचर, नाडी, तालाब, डोली, आगोर इत्यादि ने अपनी प्रासंगिकता कोविड के दौरान मानव, पशुधन व वन्य जीवों को भोजन, पानी व चारे उपलब्ध करा कर अपनी सार्थकता बखूबी साबित की थी। आज वर्तमान में इन परंपरागत व्यवस्थाओं पर कई तरह के विकास से दबाव आ रहे हैं। जिसके चलते आज इनका हास हो रहा है इस हास को बचाने के लिए इनके संरक्षण व प्रबंधन की महती आवश्यकता है। क्योंकि बिना जैव विविधता संरक्षण के मानव जीवन का अस्तित्व भी संकट में आ जाएगा।

इस अवसर पर एमबीएस गवर्नमेंट कॉलेज बाड़मेर के प्राचार्य डॉ मनोज पचौरी ने सभी आगंतुकों का स्वागत किया व सभी विद्यार्थियों से जैव विविधता बचाने में युवा पीढ़ी का आह्रान किया।

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