




जोधपुर Abhayindia.com राजस्थान सिविल सेवा अपील अधिकरण जोधपुर ने कनिष्ठ लिपिक के पद पर कार्यरत नागाराम की अपील को स्वीकार करते हुए उसे 32 वर्षों से लम्बित कनिष्ठ लिपिक के पद के सभी परिलाभ देने का आदेश पारित किया है।
नागाराम जन स्वास्थ्य अभियांत्रिकी विभाग, बाड़मेर में कनिष्ठ लिपिक के पद पर वर्ष 1992 से न्यूनतम वेतन श्रृंखला पर कार्यरत है। उसके नियुक्ति वर्ष 1985 में दैनिक वेतन भोगी कर्मचारी के रूप में हुई थी। इसके बाद 13.03.1992 के एक आदेश से उसकी सेवायें अर्द्ध स्थाई की गई। प्रार्थी प्रथम नियुक्ति से ही कनिष्ठ लिपिक के पद पर कार्यरत है। विभाग के परिपत्र दिनांक 18.12.1989 के द्वारा अनेकों दैनिक वेतन भोगी कर्मचारियों को जो कनिष्ठ लिपिक के पद पर कार्यरत थे उन्हें कनिष्ठ लिपिक के पद पर समायोजन कर दिया गया। परन्तु अपीलार्थी को कनिष् लिपिक के पद पर समायोजन नहीं किया गया। विभाग के इस कृत्य से व्यथित होकर अपलार्थी ने राजस्थान उच्च न्यायालय के समक्ष वर्ष 1992 में एक रिट याचिका प्रस्तुत की।
राजस्थान उच्च न्यायालय जोधपुर ने अपीलार्थी की उक्त रिट याचिका को स्वीकार करते हुए उसे वर्ष 1992 में ही कनिष्ठ लिपिक के लिए योग्य मानते हुए परिपत्र दिनांक 18.12.1989 के तहत तीन माह में कनिष्ठ लिपिक बनाने एवं कनिष्ठ लिपिक के पद के समस्त परिलाभ भी देने का आदेश पारित किया। विभाग की हठधर्मिता के कारण उसे उच्च न्यायालय के आदेश के उपरान्त भी कनिष्ठ लिपिक के पद पर समायोजन कर दिया गया।
प्रार्थी द्वारा उच्च न्यायालय के समक्ष एक अवमानना याचिका प्रस्तुत की गई। अवमानना याचिका में उसे दिनांक 16.10.1998 के आदेश से 16.01.1992 से कनिष्ठ लिपिक के पद पर नियुक्ति प्रदान कर दी गई। प्रत्यर्थी विभाग की हठधर्मिता यहां पर भी खत्म नहीं हुई। विभाग द्वारा प्रत्यर्थी को परेशान करने की नियत से उसे कनिष्ठ लिपिक तो बना दिया गया परन्तु उसके आदेश में ये शर्त रख दी गई कि उसे कनिष्ठ लिपिक के पद पर नियमितिकरण का लाभ तभी दिया जायेगा जब वह टंकण परीक्षा उत्तीर्ण कर लेगा।
अपीलार्थी द्वारा इस शर्त के अनुसरण में विभाग के समक्ष अनेक अभ्यावेदन प्रस्तुत किये गये व निवेदन किया गया कि उसकी टंकण परीक्षा लेकर उसे कनिष्ठ लिपिक के पद के नियमितिकरण का लाभ प्रदान किया जावें। लेकिन, विभाग द्वारा न तो उसकी टंकण परीक्षा ली गई और ना ही उसे नियमितिकरण का लाभ प्रदान किया गया। विभाग की हठधर्मिता के कारण अपीलार्थी पिछले 32 वर्षों से कनिष्ठ लिपिक के पद की न्यूनतम वेतन श्रृंखला पर कार्यरत है उसे किसी भी प्रकार की वार्षिक वेतन वृद्धि, पदोन्नति, चयनित वेतनमान एवं वरिष्ठता का लाभ प्रदान नहीं किया जा रहा है।
विभाग के इस कृत्य से व्यथित होकर अपीलार्थी ने अपने अधिवक्ता प्रमेन्द्र बोहरा के माध्यम से वर्ष 2023 में एक अपील अधिकरण के समक्ष प्रस्तुत की। अपीलार्थी के अधिवक्ता का अधिकरण के समक्ष यह तर्क था कि की प्रथमतयाः राजस्थान उच्च न्यायालय जोधपुर ने अपीलार्थी को वर्ष 1992 में ही कनिष्ठ लिपिक के पद पर नियुक्ति प्रदान कर सभी परिणामिक लाभ तीन माह में देने का आदेश पारित कर दिया था इसके बावजूद भी वर्ष 1992 से आज दिनांक तक अपीलार्थी को कनिष्ठ लिपिक के पद की नियमित वेतन श्रृंखला एवं अन्य लाभ विभाग द्वारा प्रदान नहीं करना विभाग की हठधर्मिता को प्रदर्शित करता है।
विभाग द्वारा उच्च न्यायालय के आदेश के विपरीत जाकर उसके कनिष्ठ लिपिक के पद पर नियुक्ति के समय यह शर्त अंकित करना की टंकण परीक्षा उत्तीर्ण करने पर ही उसे नियमितिकरण के लाभ प्रदान किये जायेंगे। जो विधि विरूद्ध है इसके बावजूद भी अपीलार्थी द्वारा विभाग के समक्ष पिछले 32 वर्षों से यह निवेदन किया जा रहा है कि उसकी टंकण परीक्षा लेकर उसे कनिष्ठ लिपिक के पद के नियमितिकरण का लाभ प्रदान करें लेकिन विभाग द्वारा न तो उसकी टंकण परीक्षा ली जा रही और ना ही उसे नियमितिकरण का लाभ प्रदान किया जा रहा है।
अपीलार्थी के अधिवक्ता के तर्कों से सहमत होते हुए अधिकरण ने अपीलार्थी द्वारा प्रस्तुत अपील को स्वीकार करते हुए अपीलार्थी को वर्ष 1992 से कनिष्ठ लिपिक के पद पर नियमितिकरण का लाभ प्रदान करते हुये उसे कनिष्ठ लिपिक की वरिष्ठता सूची, चयनित वेतनमान, पदोन्नति एवं वार्षिक वेतन वृद्धि प्रदान करने का आदेश पारित किया।





