Wednesday, April 23, 2025
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ऑर्डर-ऑर्डर : प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के विरुद्ध पारित आदेश को किया अपास्‍त

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जोधपुर Abhayindia.com उच्च न्यायालय की एकलपीठ के न्यायाधीश दिनेश मेहता ने राजस्थान राज्य कृषि विपणन बोर्ड से स्टेनोग्राफर के पद से सेवानिवृत्‍त कर्मचारी अंजना चौधरी की रिट याचिका को स्वीकार करते हुए बोर्ड द्वारा प्राप्ति आदेश अपास्त किया है।

मामले के अनुसार, राजस्थान कृषि विपणन बोर्ड जयपुर के सचिव ने 22.7.1982 को याचिकाकर्ता को स्टेनोग्राफर (शीघ्र लिपिक) के पद पर ’’नियमित वेतन श्रृखला मे अस्थायी तौर पर प्रथम तीन माह के लिय अथवा चयनित व्यक्ति उपलब्ध होने तक, जो भी पहले हो तक के लिये’’ नियुक्ति अधिशाषी अभियंता राजस्थान राज्य कृषि विपणन बोर्ड जोधपुर कार्यालय मे दी। इस के अनुसरण में याचिकाकर्ता ने 28.7.1982 को कार्यग्रहण कर लिया।

15.04.1999 के आदेश से याचिकाकर्ता की सेवायें उसके कार्यग्रहण करने की दिनांक से यानि 28.7.1982 से नियमित कर दी गई। नियमितीकरण के पश्चात उसे संशोधित वेतनमान चयनित वेतनमान व वेतन स्थिरीकरण का लाभ भी उसके कार्यग्रहण करने की दिनांक से विभाग द्वारा समय समय पर प्रदान कर दिये गये। दिनांक 02.11.1999 को प्रार्थी द्वारा एक अभ्‍यावेदन विभाग के समक्ष प्रस्तुत कर निवेदन किया है कि उसे वरिष्ठता सूची मे भी उचित स्थान प्रदान किया जाए क्योंकि उसे प्रथम नियुक्ति तिथि से नियमित कर दिया गया है। विभाग द्वारा दिनांक 10.10.2002 के आदेश से उसके नियमितिकरण के आदेश में संशोधन करते हुए उसकी जो सेवाओं का नियमितीकरण 28.7.1982 से था उसमें संशोधन कर उसे 15.4.1999 से कर दिया गया।

विभाग के इस कृत्य से व्यथित होकर प्रार्थीनी ने एक रिट याचिका अपने अधिवक्ता प्रमेन्द्र बोहरा के माध्यम से उच्च न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत की। उच्च न्यायालय के समक्ष प्रार्थीनी के अधिवक्ता का यह तर्क था कि प्रथमतया प्रार्थीनी के नियमितीकरण के आदेश में जो संशोधन किया गया है उससे पहले उसे किसी तरह की सुनवाई का मौका या अपना पक्ष रखने का कोई मौका विभाग द्वारा प्रदान नहीं किया गया। इसलिए विभाग द्वारा पारित आदेश प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत के विरूद्ध है। दूसरा प्रार्थीनी रिट के लम्बित रहते सेवानिवृति भी हो चुकी है। विभाग की ओर से जवाब प्रस्तुत करते हुए यह तर्क प्रस्तुत किया कि प्रार्थीनी ने दक्षता परीक्षा पास नहीं करने के कारण उसकी नियमितीकरण की तारीख में संशोधन किया गया है।

प्रार्थीनी के अधिवक्ता के तर्को से सहमत होते हुए उच्च न्यायालय की एकलपीठ के न्यायाधीश दिनेश मेहता ने कृषि विपणन बोर्ड द्वारा पारित संशोधन आदेश दिनांक 10.10.2002 को विधि विरूद्ध व प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के विरूद्ध मानते हुए अपास्त कर दिया एवं विभाग को यह आदेशित किया कि चूंकि प्रार्थीनी रिट के लम्बित रहते हुए सेवानिवृत हो चुकी है इसलिए उसे 28.07.1982 से नियमित करते हुए सभी लाभ व पेशन का लाभ भी प्रदान करें व सम्पूर्ण कार्यवाही 31.01.2029 तक पूर्ण करें।

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