Friday, May 10, 2024
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ऑर्डर-ऑर्डर : नैसर्गिक न्याय के सिद्धांत के विरूद्ध प्रस्तुत अपील खारिज, कृषि विपणन बोर्ड का मामला

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जोधपुर Abhayindia.com राजस्थान उच्च न्यायालय की खण्डपीठ के न्यायाधीश डॉ. पुष्‍पेन्द्र सिंह भाटी व मुनारी लक्ष्मण ने राजस्थान कृषि विपणन बोर्ड, जोधपुर द्वारा नैसर्गिक न्याय के सिद्धांत के विरूद्ध प्रस्तुत अपील को खारिज करते हुए कर्मचारी अंजना चौधरी द्वारा प्रस्तुत रिट याचिका में हुए निर्णय को उचित एवं वैध ठहराया है।

सनद रहे अंजना चौधरी की प्रथम नियुक्ति शीघ्रलिपिक (स्टेनो) के पद पर वर्ष 1982 में नियमित वेतन श्रृंखला प्रत्यर्थी विभाग में हुई थी। दिनांक 15.04.1999 के आदेश से उसे प्रथम नियुक्ति तिथि से नियमित कर दिया गया। नियमितीकरण के पश्‍चात कर्मचारी को नियमितीकरण के सभी लाभ यानि वेतन स्थायीकरण, चयनित व वार्षिक वेतन वृद्धियां वेतनमान आदि विभाग द्वारा समय-समय पर प्रदान किये गये। प्रार्थी द्वारा वरिष्‍ठता सूची में अपना नाम जुड़वाने के लिए अभ्यावेदन देने पर कृषि विपणन बोर्ड द्वारा आदेश दिनांक 10.10.2002 से सेवा नियमितीकरण आदेश दिनांक 15.04.1999 में संशोधन करते हुए उसे प्रथम नियुक्ति तिथि से नियमितीकरण के स्थान पर दिनांक 15.04.1999 जब से पूर्व में नियमितीकरण का आदेश पारित किया गया तब से नियमितीकरण कर दिया गया।

संशोधित नियमितीकरण आदेश दिनांक 10.10.2002 से व्यथित होकर अंजना चौधरी द्वारा एकलपीठ में इसे चुनौती दी। उसका एकलपीठ के समक्ष निवेदन था कि संशोधित आदेश पारित करते समय विभाग द्वारा नैसर्गिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन किया गया व संशोधन आदेश पारित करने से पूर्व उसे कोई सुनवाई का अवसर प्रदान नहीं किया गया। प्रार्थी के अधिवक्ता के तर्कों से सहमत होते एकल पीठ ने दिनांक 11.10.2023 को प्रार्थियां की रिट याचिका को स्वीकार करते हुए संशोधित आदेश दिनांक 10.10. 2002 को अपास्त कर दिया था।

एकलपीठ के आदेश के विरूद्ध बोर्ड द्वारा खण्ड पीठ के समक्ष अपील प्रस्तुत की गयी। खण्ड पीठ के समक्ष कर्मचारी के अधिवक्ता प्रमेन्द्र बोहरा का तर्क था की बोर्ड द्वारा जो नियमितीकरण की दिनांक में जो संशोधन के सम्बन्धी आदेश दिनांक 10.10.2002 पारित  किया वो पूर्ण रूप से अनुचित व विधी विरूद्ध है इस आदेश को पारित करते समय बोर्ड द्वारा नैसर्गिक न्याय के सिद्धांतों का पालन नहीं किया गया है। साथ ही कर्मचारी की नियुक्ति 1982 में हुई व दिनांक 30 जून 2022 को वह सेवानिवृत भी हो गई इसलिए अब इसके नियमितीकरण आदेश में उसकी 40 वर्षों की सेवा अवधि को देखते हुए हस्तक्षेप करना अनुचित है। कर्मचारी के अधिवक्ता के तर्को से सहमत होते हुए खण्डपीठ ने बोर्ड द्वारा प्रस्तुत अपील को खारिज करते हुए यह व्यवस्था दी कि संशोधित नियमितीकरण आदेश जारी करने से पूर्व प्रार्थीनी को कोई सुनवाई का अवसर प्रदान नहीं करना, विधि विरूद्ध है व एकल पीठ के आदेश दिनांक 11.10.2023 में किसी भी प्रकार का हस्तक्षेप करना उचित नहीं है इसलिए एकलपीठ के आदेश को बरकरार रखा जाता है।

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