Friday, April 18, 2025
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कारखाने से करनी है कमाई तो न बरतें वास्तु नियमों में कोताही

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औद्योगिक वास्तु  के तहत ऐसे कारखाने आते हैं जहाँ वस्तुओं का प्रारंभिक निर्माण, उत्पादन, संग्रह और क्रय-विक्रय होता है। ऐसी इमारते हैं : कल-कारखाने, मील, सोलर प्लांट, वेयर हाउस इत्यादि। मूलत: इन इमारतों का निर्माण व्यावहारिक ढंग पर होना चाहिए, अर्थात् इनका ढाँचा ऐसा हो जिससे कम से कम खर्च से, स्थान, सामग्री और धन का अपव्यय रोकते हुए अधिकतम लाभ लेने के लिए इनका निर्माण किया जाता है। ये इमारतें और कारखाने जिन लोगों के उपयोग में आते हैं उन्हें पर्याप्त सुरक्षा और अधिक सुख सुविधा प्राप्त हो सके, इसका पूरा ध्यान रखना आवश्यक होता है। आकार प्रकार में भी इन इमारतों को संतुलित व भव्य होना चाहिए।

फैक्ट्री वह स्थान होती है जहाँ विभिन्न वस्तुओं का निर्माण बड़े पैमाने पर किया जाता है। यह उत्पादन प्रक्रिया को संगठित एवं कुशल बनाकर वस्तुओं की लागत कम करने में सहायक होती है। फैक्ट्रियां उत्पादन को बढ़ावा देकर देश की अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाती हैं। जब किसी देश में उत्पादन बढ़ता है, तो उसका निर्यात भी बढ़ता है, जिससे विदेशी मुद्रा अर्जित होती है और देश की समृद्धि बढ़ती है परंतु यदि ऐसा न हो तो देश की अर्थव्यवस्था पर बुरा असर पड़ता है।

जिस प्रकार हम घर बनवाते समय वास्तु नियमों का पालन कर उसका लाभ उठाते हैं, ठीक उसी प्रकार फैक्ट्री निर्माण में भी वास्तु सिद्धांतों का पालन करना चाहिए, जिससे उस स्थान पर पंचतत्वों का ठीक से समन्वय हो और उसका लाभ मालिक को मिल सके। फैक्ट्री निर्माण करते समय वास्तु नियमों की अवेहलना करना नुकसान का कारण हो सकता है। फैक्ट्री बनाने के बाद आपको उससे धन लाभ हो इसके लिए कुछ वास्तु नियमों का पालन करना आवश्यक है। कारखानों में वास्तु का महत्व बहुत अधिक है, क्योंकि यह उत्पादन, श्रमिकों की संतुष्टि और कारखाने की समृद्धि पर प्रभाव डालता है।

कारखाने का प्रवेश द्वार उत्तर-पूर्व दिशा में होना चाहिए, जो सकारात्मक ऊर्जा को आकर्षित करता है। कार्यालय उत्तर दिशा में होना चाहिए, जो ज्ञान और बुद्धिमत्ता को बढ़ावा देता है। भंडारण क्षेत्र दक्षिण दिशा में होना चाहिए, जो स्थिरता और सुरक्षा को बढ़ावा देता है। शौचालय वायव्य दिशा में होना चाहिए, जो नकारात्मक ऊर्जा को दूर करता है। पूजा कक्ष ईशान दिशा में होना चाहिए, जो आध्यात्मिक ऊर्जा को बढ़ावा देता है। कारखाने में उन्हीं रंगों का उपयोग करना चाहिए जो सकारात्मक ऊर्जा को बढ़ावा देते हैं, जैसे कि हरा, नीला, और पीला। कारखाने में तुलसी, नीम, और अशोक जैसे पेड़ सकारात्मकता लाते है। योग्य वास्तुविद से सलाह कर कारखानों में उत्पादन, श्रमिकों की संतुष्टि, और कारखाने की समृद्धि में वृद्धि लाई जा सकती है।

किसी भी रूप में उद्योग या व्यवसायिक स्थल की उत्तर, पूर्व दिशा एवं ईशान कोण में ऊँचाई होती है और अन्य दिशाओं और कोणों की ओर निचाई पूर्व दिशा एवं निचाई किसी भी रूप में हो सकती है जैसे बेसमेंट, भूमिगत पानी के टैंक, कैमिकल टैंक, जमीन का ढाल, कोई मशीन जमीन में गड्‌ढा करके लगाई गई हो या जमीन का ढलान दक्षिण पश्चिम दिशा की ओर हो। कहने का तात्पर्य है कि, दक्षिण-पश्चिम दिशा या नैऋत्य कोण उत्तर-पूर्व दिशा एवं ईशान कोण की तुलना में किसी भी प्रकार से नीचा होता है तो यह वास्तु सम्मत नहीं है। उद्योग व्यवसायिक परिसर की चारदीवारी का या बिल्डिंग का ईशान कोण दबा, घटा, कटा, गोल होता है और नैऋत्य कोण बढ़ा हुआ होता है तब भी यह वास्तु सम्मत नहीं है और इससे भारी नुक़सान उठाना पड़ता है।

फैक्ट्री में उपयोग आने वाले बायलर, ट्रांसफार्मर, चिमनी, जनरेटर, बिजली या टेलीफोन का खम्बा, बिजली का मीटर, गैस या बिजली से चलने वाला कोई भी उपकरण आदि की व्यवस्था सदैव अग्नि की दिशा, आग्नेय कोण में की जानी चाहिए। फैक्ट्री में अण्डरग्राउण्ड पानी की टंकी, बोरिंग, कुआँ इत्यादि उत्तर दिशा, ईशान कोण में होना बहुत शुभ होता है, इससे आर्थिक स्थिति अच्छी रहती है।

हर प्रकार का सीवरेज, सेनेटरी लाइन, बरसात का पानी आदि फैक्ट्री के उत्तर दिशा ईशान कोण या पूर्व दिशा से बाहर निकलना चाहिए। फैक्ट्री में बिल्डिंग का निर्माण करते समय बिल्डिंग के उत्तर दिशा, ईशान कोण व पूर्व दिशा में ज्यादा खुली जगह छोड़कर दक्षिण, नैऋत्य व पश्चिम दिशाओं की ओर बनाना चाहिये। फैक्ट्री की कम्पाउंड वॉल एवं बिल्डिंग का ईशान कोण किसी भी प्रकार से दबा, कटा या गोल नहीं होना चाहिये इस वास्तुदोष से एक दिन फैक्ट्री अवश्य बन्द हो जाती है।

उत्पादन के लिए यदि एक से अधिक मशीनें हों तो दक्षिण, नैऋत्य एवं पश्चिम क्लॉक वाइज़ लगानी चाहिए। सबसे बड़ी एवं भारी मशीन नैऋत्य में लगानी चाहिए। इससे मशीनें बिना रुकावट के अच्छी चलती हैं। ईशान कोण में मशीन लगाने पर या तो चलती नहीं है या हमेशा खराब होती रहती है। ध्यान रखने योग्य है कि उत्पादन का क्रम क्लॉक वाईज़ होना चाहिए। उत्पादन पूर्व से प्रारम्भ होकर दक्षिण दिशा, नैऋत्य कोण और पश्चिम दिशा में तैयार होते हुए वायव्य कोण में तैयार माल रखा जा सके।

दैनिक उत्पादन के लिये थोड़े कच्चे माल का स्टॉक पूर्व दिशा में रखना चाहिए व तैयार माल वायव्य कोण में रखना चाहिए। माल की डिलेवरी उत्तर दिशा में द्वार बनाकर वहाँ से करने से माल जल्दी निकलता है। सुख-समृद्धि के लिए वास्तु शास्त्र में कई तरह के नियम बताए गए हैं। मान्यता है कि इन नियमों का पालन करने से घर में मां लक्ष्मी का आगमन होता है। अगर आप कोई फैक्ट्री या कारखाना चलाते हैं तो वास्तु के नियमों का विशेष ध्यान रखना चाहिए। -सुमित व्यास, एम.ए (हिंदू स्टडीज़), काशी हिंदू विश्वविद्यालय, वाराणसी, मोबाइल – 6376188431

दामाद से झगड़े की जड़ में कहीं वास्तु दोष तो नहीं जिम्मेदार…!

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