Sunday, February 23, 2025
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नहीं दिखा पा रहे है कोचिंग में कमाल तो सुधारे वास्तुदोष

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इस सदी में शिक्षा का महत्व सभी मानते हैं। जाहिर है उच्च तकनीक और प्रतिस्पर्धा के इस युग में सफलता पाने के लिए सुनियोजित अध्ययन और प्रशिक्षण आवश्यक है। गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के लिए छात्रों को विभिन्न शिक्षण संस्थानों में जाना पड़ता है। कोचिंग संस्थानों में विषय-विशेषज्ञ शिक्षकों द्वारा पढ़ाया जाता है, जो जटिल विषयों को सरल और रोचक तरीके से समझाने में सक्षम होते हैं। उनकी अनुभवजन्य शिक्षण विधियाँ और परीक्षा-उन्मुख रणनीतियाँ छात्रों को अधिक प्रभावी ढंग से पढ़ने में मदद करती हैं। कोचिंग संस्थानों में अध्ययन का एक निश्चित ढांचा और समय-सारणी होती है। कई बार ऐसा देखा जाता है कि सब कुछ ठीक होते हुए भी परिणाम प्रतिकूल प्राप्त होते हैं जो कि किसी के जीवन को अत्यधिक प्रभावित करते हैं। ऐसे में यदि उस स्थान के वास्तु दोष का निवारण कर लिया जाए तो हो सकता है कि कुछ सकारात्मक बदलाव आए।

स्कूल का भवन समकोणीय भूखंड पर होना चाहिए। किसी भी शिक्षण संस्थान के निर्माण के लिए बहुत बड़ी भूमि की आवश्यकता होती है। यदि निर्माण खंडों में किया जा रहा है, तो उत्तर और पूर्व भाग को खुला रखना चाहिए और भूमि के दक्षिण, पश्चिम दिशा में निर्माण कार्य शुरू करना चाहिए। शिक्षण संस्थान की भूमि के चारों तरफ निर्माण कार्य किया जाता है। कोचिंग सेंटर का मुख्य द्वार आकर्षक और भवन के आकार प्रकार के अनुरूप होना चाहिए। सेन्टर का प्रवेश द्वार पूर्व, ईशान तथा उत्तर दिशा में होने से कोचिंग सेंटर का मान सम्मान बढ़ता है तथा ज्यादा से ज्यादा संख्या में छात्र सफल होते है।

कोचिंग सेन्टर बेसमेन्ट या संकीर्ण गली में नहीं होना चाहिये तथा कोचिंग सेन्टर का साइनबोर्ड खूबसूरत आकर्षक तथा स्पष्ट होना चाहिए।यदि मुख्य दरवाजा पूर्व की ओर हो तो कोचिंग भवन में प्रवेश करते समय बायीं ओर स्वागत कक्ष होना चाहिए। सेन्टर के कमरों का फर्श उत्तर, पूर्व या ईशान कोण में नीचा होना चाहिए तथा दक्षिण, पश्चिम एवं नैऋत्य कोण में फर्श ऊंचा होना चाहिए।

कोचिंग सेंटर में सेंटर प्रबंधक के बैठने का स्थान दक्षिण पश्चिम दिशा में रखनी चाहिए। बैठने के लिए कुर्सी तथा टेबल की व्यवस्था इस तरह से करनी चाहिए कि बैठने के बाद इनका मुख उत्तर या पूर्व दिशा में हो।

कोचिंग संस्थान में शौचालय वायव्य कोण में बनाना चाहिये कभी भी ईशान कोण में नहीं बनाना चाहिए। यदि ईशान कोण में टॉयलेट बनाते है तो छात्रों में गुस्सा तथा नकारात्मक विचार बढ़ेगा जिससे कोचिंग मालिक का नुकसान हो सकता है। इलेक्ट्रिक सप्लाई के लिए बिजली का मीटर आग्नेय (पूर्व-दक्षिण) दिशा में लगाना चाहिए। छात्रों के लिए शीतल जल की व्यवस्था पूर्व, उत्तर या ईशान कोण में करनी चाहिए।

आज कल एसी के चलन के कारण प्रायः अध्ययन कक्ष की खिड़कियों को बंद ही रखा जाता है जो की सही नहीं है इससे परिणाम पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता हैं इसलिए यदि सूर्योदय की किरणें स्टडी रूम में आती हों तो, सुबह के वक्त खिड़की दरवाजे खोलकर रखना चाहिये जिससे कि सुबह के सूर्य की सकारात्मक ऊर्जा का लाभ लिया जा सके। कॉन्फ्रेंस हॉल की व्यवस्था उत्तर दिशा में करनी चाहिए तथा इसका प्रवेश द्वार पूर्व में होना चाहिए। खेल मैदान पूर्व तथा उत्तर की दिशा में ही होना चाहिए।

सेन्टर में कमरों के अंदर बीम की ऐसी व्यवस्था हो की कोई भी छात्र बीम के नीचे न बैठे क्योकि बीम के नीचे बैठने वाले छात्र को मानसिक तनाव होता है तथा उनकी सफलता उनसे कोसो दूर चली जाती है। छात्रों को प्रेरणा देने के लिए अध्ययन कक्ष में सफल एवं प्रसिद्ध व्यक्तियों के आकर्षक फोटो लगाना चाहिए। सेन्टर में किसी भी प्रकार की ख़राब या बंद कम्प्यूटर, प्रिन्टर, घड़ी, टेलीफोन इत्यादि नहीं होने चाहिए क्योकि इससे नेगेटिव एनर्जी उत्पन्न होती है। कोचिंग सेंटर की पश्चिम दिशा में बच्चे को पूर्व दिशा की ओर मुँह करके पढ़ना-लिखना चाहिए। मैंने वास्तु विजिट के दौरान देखा है कि ऐसी कोचिंग का रिजल्ट अन्य कोचिंग की तुलना में बेहतर रहता है।

कोचिंग सेंटर में यदि विद्यार्थी कम्प्यूटर का प्रयोग करते हैं तो कम्प्यूटर आग्नेय से लेकर दक्षिण पश्चिम के मध्य कहीं भी रख सकते हैं। इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि ईशान कोण में कम्प्यूटर कभी न रखें। ईशान कोण में रखा कम्प्यूटर बहुत ही कम उपयोग में आता है।

कमरों की दीवारों एवं पर्दों का रंग गहरा नही रखना चाहिए ऐसा करने से छात्रों में उग्रता बढती इसलिए कमरा का रंग हल्का होना चाहिए। रंग का प्रभाव छात्र के मन तथा बुद्धि के ऊपर बहुत प्रभाव पड़ता है। हल्का रंग मानसिक तथा बौद्धिक शांति तथा एकाग्रता प्रदान करता है।

यदि वास्तु अनुरूप बदलाव किए जाए तो छात्रों की एकाग्रता बढ़ेगी। इससे सकारात्मक परिणाम मिलेंगे। संस्थान की ख्याति बढ़ेगी और विद्यार्थी उन्नति करेंगे। भूमिगत जल स्रोत जैसे टैंक, कुआं या बोरवेल पूर्व, उत्तर या उत्तर-पूर्व क्षेत्र में होना चाहिए।

स्कूल की बिल्डिंग पश्चिम या दक्षिण दिशा में बनाई जा सकती है। अगर बिल्डिंग को L शेप में बनाना है तो उसे दक्षिण-पश्चिम क्षेत्र के पश्चिम या दक्षिण में बनाना चाहिए। इससे पूर्व और उत्तर दिशा में खुली जगह रहेगी। भवन की सीढ़ियां दक्षिण-पश्चिम क्षेत्र में कहीं भी बनाई जा सकती हैं। इन्हें कभी भी उत्तर-पूर्व क्षेत्र में नहीं बनाना चाहिए। शौचालय और स्नानघर उत्तर-पश्चिम क्षेत्र के पश्चिम में बनाए जा सकते हैं। इन्हें कभी भी उत्तर-पूर्व क्षेत्र में नहीं बनाना चाहिए।

स्कूल भवन में कोई तहखाना नहीं बनाया जाना चाहिए। कक्षाओं की लंबाई-चौड़ाई का अनुपात 1:2 से अधिक नहीं होना चाहिए। सभी कमरे समकोणीय होने चाहिए। कक्षा का ब्लैकबोर्ड पश्चिम दिशा में होना चाहिए। यहाँ शिक्षकों के लिए एक छोटा मंच बनाया जा सकता है। कक्षा में कहीं भी बीम नहीं होनी चाहिए, इससे नीचे बैठने वाले विद्यार्थियों में तनाव पैदा होगा।

कक्षा का प्रवेश द्वार उत्तर-पूर्व क्षेत्र के उत्तर या पूर्व में होना चाहिए। दरवाज़ा हमेशा दो शीशों वाला होना चाहिए और अंदर की ओर खुलना चाहिए। कक्षा और उसके पर्दों का रंग हल्का नीला, हल्का हरा या हल्का भूरा होना चाहिए। सफेद रंग छात्रों को आलसी बनाता है। स्कूल की बाकी इमारत को हल्के क्रीम या सफेद रंग से रंगा जा सकता है। गहरे रंग छात्रों के व्यवहार में हिंसा लाते हैं। कक्षा के दरवाजे की स्थिति ऐसी होनी चाहिए कि छात्रों और शिक्षकों की पीठ कक्षा की ओर न हो।

प्रयोगशाला का कक्ष पश्चिम में होना चाहिए और उनके दरवाजे पूर्व दिशा में खुलने चाहिए। स्टाफ रूम और छात्रों के लिए कॉमन रूम उत्तर-पश्चिम क्षेत्र में होना चाहिए। स्कूल का कार्यालय, जहां फीस जमा की जाती है और प्रवेश दिया जाता है, स्कूल भवन के पूर्व में होना चाहिए। स्कूल के प्रिंसिपल का कमरा पश्चिम, दक्षिण या दक्षिण-पश्चिम दिशा में होना चाहिए, जिसका दरवाजा पूर्व दिशा में खुले। स्कूल का सभागार उत्तर दिशा में होना चाहिए तथा उसका दरवाजा पूर्व दिशा में होना चाहिए। -सुमित व्यास, एम.ए (हिंदू स्टडीज़), काशी हिंदू विश्वविद्यालय, वाराणसी, मोबाइल – 6376188431

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