दस साल से कार्यग्रहण नहीं करवाने पर उच्‍च न्यायालय ने माना गंभीर, नोटिस जारी

जोधपुर Abhayindia.com राजस्थान उच्च न्यायालय की एकल पीठ के न्यायाधीश अरूण भंसाली ने शिक्षा विभाग द्वारा पिछले एक दशक से कनिष्‍ठ लिपिक के पद पर कार्यग्रहण नही करवाने को गंभीरता से लेते हुए माध्यमिक शिक्षा विभाग व प्राथमिक शिक्षा विभाग को नोटिस जारी कर जवाब तलब किया है।

जोधपुर निवासी शैला खान ने अपनी माता जीनत आरा जो कि शिक्षा विभाग में अध्यापक के पद पर कार्यरत थीं। उनके निधन के बाद अनुकम्पा आधार पर नियुक्ति के लिए शिक्षा विभाग के समक्ष प्रार्थना पत्र प्रस्तुत किया। माध्यमिक शिक्षा विभाग द्वारा प्रार्थीनी को नियुक्ति नहीं देने पर शैला खान ने वर्ष 2010 में उच्च न्यायालय के समक्ष एक रिट याचिका प्रस्तुत की। प्रार्थीनी की उक्त रिट याचिका को दिनांक 24. 8.2011 को उच्च न्यायालय द्वारा स्वीकार करते हुए प्रार्थीनी को अनुकम्पा आधार पर नियुक्ति प्रदान करने का आदेश प्रदान करने के साथ-साथ प्रार्थीनी को एक वर्ष का मूल वेतन हर्जाने के रूप में देने का आदेश प्रदान किया। उच्च न्यायालय के आदेश 24.8.2011 को पारित हुआ था। उस पूर्ववर्ती आदेश की पालना में जिला शिक्षा अधिकारी माध्यमिक शिक्षा जोधपुर द्वारा प्रार्थीनी को हर्जाने के रूप में एक वर्ष का मूल वेतन कुल रूपये 70,000/ रुपये प्रदान किये व उसे मृत राज्य कर्मचारी आश्रित भर्ती सेवा नियम 1999 के अंतर्गत कनिष्‍ठ लिपिक के रूप में 24.12.2012 नियुक्ति प्रदान की गई। इस आदेश से प्रार्थी का पदस्थापन राजकीय उच्च माध्यमिक विधालय चैराई ओसिया जिला जोधपुर में किया गया। उपरोक्त नियुक्ति आदेश के अनुसरण में जब प्रार्थीनी को कनिष्‍ठ लिपिक के पद पर कार्यग्रहण करने के लिए गई तब वहॉं के प्रधानाचार्य द्वारा उसे कार्यग्रहण नहीं करवाया गया। प्रधानाचार्य द्वारा कार्यग्रहण नही करवाने की शिकायत प्रार्थीनी द्वारा 27.03.2012 को जिला शिक्षा अधिकारी माध्यमिक शिक्षा जोधपुर से की। जिला शिक्षा अधिकारी माध्यमिक शिक्षा जोधपुर ने प्रार्थीनी को सूचित किया कि निदेशालय द्वारा मार्ग दर्शन मांगा गया है, मार्गदर्शन प्राप्त होते ही आपको सूचित कर दिया जायेगा। 27.03.2012 के आदेश के बाद प्रार्थीनी को विभाग द्वारा कभी कोई सूचना नहीं दी गयी।

प्रार्थीनी ने विभाग के समक्ष कई अभ्यावेदन प्रस्तुत किये मगर विभाग द्वारा उसे पिछले 10 वर्षों से कार्यग्रहण नही करवाया गया। प्रार्थीनी द्वारा अपने अधिवक्ता मार्फत विभाग को कार्यग्रहण करवाने के लिए विधिक नोटिस भी दिया गया परन्तु विभाग द्वारा प्रार्थीनी को कार्यग्रहण करवाने के संदर्भ में कोई कार्यवाही नहीं की गई । विभाग के इस कृत्य से व्यथित होकर प्रार्थीनी ने अपने अधिवक्ता प्रमेन्द्र बोहरा के माध्यम से एक रिट् याचिका कार्यग्रहण करवाने के उद्वेश्‍य से प्रस्तुत की। प्रार्थीनी के अधिवक्ता का न्यायालय के समक्ष यह तर्क प्रस्तुत किया कि उच्च न्यायालय का आदेश प्रार्थीनी के पक्ष मे पिछले 10 वर्ष से है व विभाग द्वारा उसे नियुक्ति आदेश भी जारी कर दिया गया एंव नियुक्ति आदेश के साथ-साथ प्रार्थीनी को हर्जाने के रूप में एक वर्ष का मूल वेतन कुल रूपये 70,000/- रुपए प्रदान कर दिये गये लेकिन प्रार्थीनी को एक दशक के लम्बे इंतजार के बावजूद भी कार्यग्रहण नही करवाया गया है। जो अनुचित एवं विधि विरूद्व है।

प्रार्थीनी के अधिवक्ता के तर्को से सहमत होते हुए एकलपीठ के न्यायाधीश अरूण भंसाली ने माध्यमिक शिक्षा विभाग के इस कृत्य पर प्रसंज्ञान लेते हुए शिक्षा सचिव, निदेशक, जिला शिक्षा अधिकारी, माध्यमिक शिक्षा एवं प्राथमिक शिक्षा जोधपुर को प्रार्थीनी के पिछले 10 वर्ष से कार्यग्रहण नहीं करवाने के संदर्भ में विभाग को नोटिस जारी करते हुए जवाब तलब किया।