Thursday, September 19, 2024
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महिलाओं को बेवजह बदनाम कर सकता है दूषित अग्नि कोण

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“अग्नि कोण” संस्कृत भाषा से लिया गया एक शब्द है, जहाँ “अग्नि” का अर्थ आग है और “कोण” का अर्थ है कोना। वराहमिहिर अपने ज्योतिष ग्रंथ बृहत्संहिता में कहते हैं- “अग्नेयं पूर्वजान् पश्चिमायं याम्यं दक्षिणस्यां नैरृत्यां कुबेरस्योत्तरस्यां दिशि देवस्यां वायव्याश्चैव नैऋतीं प्रजानां पतिं विनायकं वरदं शारदां प्रत्यग्दिशो भालचंद्रं प्रतिदिशश्चंद्रमसं विद्यां अशेषजगद् विष्णुम्” इसका आशय है अग्निकोण में अग्नि देवता का निवास होता है, पूर्व दिशा में इंद्र देवता का, पश्चिम में वरुण देवता का, दक्षिण में यम देवता का, नैरृत्य में निरृति देवता का, उत्तर में कुबेर देवता का, ईशान में वायु देवता का, और प्रत्येक दिशा में विनायक, वरदा, शारदा, भालचंद्र, चंद्रमा, विष्णु आदि देवताओं का निवास होता है।

सनातन संस्कृति में जीवन से सम्बंधित प्रत्येक कार्य के लिए आवश्यक दिशा निर्देश मिलते है। यदि इनका पालन शिद्दत से किया जाए तो वो व्यक्ति एक सुखमय जीवन जी सकता है। ऐसे में ही वास्तु शास्त्र आग्नेय कोण के महत्व पर प्रकाश डालता है। जिसके संतुलित होने पर हमारे जीवन की कई ऐसी परेशानियाँ जिनसे हम व्यर्थ ही जूझ रहें है, उनसे मुक्ति मिल सकती है।

आग्नेय कोण गर्म दिशा है और सर्वविदित है कि ये दिशा अग्नि से संबंधित है। इसलिए हर वस्तु का यहां रखना शुभ नहीं माना जाता है। इस दिशा में बिजली के उपकरण के साथ इन्वर्टर, भट्टी, बॉयलर आदि रखना शुभ माना जाता है। लेकिन कई ऐसी चीजें भी है जिन्हें इस दिशा में रखने से वास्तु दोष बढ़ता है। इसलिए इस दिशा में जल से संबंधित चीजों को नहीं रखना चाहिए। क्योंकि यह एक-दूसरे के विरोधी तत्व है। इसलिए इस दिशा में बोरिंग, हैंडपंप, पानी की टंकी, नल नहीं लगाना चाहिए। इसके अलावा अंडरग्राउंड वाटर टैंक भी इस दिशा में नहीं बनवाना चाहिए। क्योंकि ये चीजें घर में सकारात्मक ऊर्जा के प्रवाह को रोकता है। जिसके कारण घर में रहने वाले लोगों के स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ता है। इसके साथ ही तरक्की के रास्ते पर भी बुरा असर पड़ता है। इसके साथ ही परिवार के लोगों के बीच किसी न किसी बात पर बहस होती रहती है।

वास्तु शास्त्र के अनुसार, विवाहित लोगों को आग्नेय कोण में बेड भी नहीं रखना चाहिए। क्योंकि इस दिशा में विवाहित लोगों को सोने से दांपत्य जीवन में बुरा प्रभाव पड़ता है। तो पति-पत्नी के बीच छोटी-छोटी बेमतलब की बातों पर लड़ाई होती रहती है। अगर कोई व्यक्ति उत्तर दिशा की ओर सिर करके आग्नेय कोण के बेडरूम में सोता है, तो उसे अनिद्रा से सम्बंधित समस्या होने की काफी संभावना होती है।

इस दिशा का आधिपत्य शुक्र ग्रह के पास है। आग्नेय दिशा में शुक्र का प्रतिनिधित्व होने के कारण यह दिशा महिलाओं के स्वास्थ्य को भी प्रभावित करती है। इस दिशा में वास्तुदोष होने से घर की महिलाएं बीमार रह सकती हैं। वास्तुशास्त्र के अनुसार, घर के आग्नेय कोण में खाने का सामान भारी मात्रा में स्टोर करने से मालकिन तथा घर की बेटी का स्वास्थ्य खराब रहने लगता है। यहां तक कि स्थिति समय रहते न संभाली जाए तो बेवजह बदनामी का भी सामना करना पड़ सकता है।

बृहत्संहिता में वराहमिहिर कहते हैं-

“अग्निर्देवो भवेदग्नौ पाकशाला तु पूर्वजान्”
“अग्नेय्यां पाकशाला स्यात्पूर्वजान् पैत्रिकं गतिः”
“पूर्वजान् पाकशाला स्यात्पैत्रिकं गतिः पूर्वजान्”

इसका आशय है अग्निकोण में अग्नि देवता का निवास होता है, जो पाकशाला (रसोई) को नियंत्रित करता है। अग्निकोण में पाकशाला (रसोई) का निर्माण करना चाहिए, जो पूर्वजों की गति को नियंत्रित करती है।पूर्वजों की गति पाकशाला (रसोई) से संबंधित होती है, जो अग्निकोण में स्थित होती है। वास्तु के प्रमुख ग्रन्थ विश्वकर्मा प्रकाश में कहा गया है – “अग्नि कोणे पाकशाला स्यात् सुखं समृद्धि च प्रयच्छति” इसका आशय है कि अग्नि कोण (दक्षिण-पूर्व दिशा) में पाकशाला (रसोई) होनी चाहिए, क्योंकि इससे सुख और समृद्धि प्राप्त होती है। यह ग्रन्थ आगे कहता है- “अग्नि कोणे पाकशाला यः करोति तस्य गृहे अन्नपूर्णा च भवेत्” इसका आशय है कि जो व्यक्ति अग्नि कोण में पाकशाला बनाता है, उसके घर में अन्न की पूर्णता और संपन्नता होती है।

विश्वकर्मा प्रकाश अग्नि कोण में पाकशाला बनाने की सलाह अग्नि कोण में बनाने की देता है क्यों कि इसी कोण में अग्नि तत्व का प्रभाव होता है, जो पाकशाला में उपयुक्त होता है। रजस ऊर्जा से युक्त आग्नेय दिशा में रसोई का निर्माण बहुत शुभ होता है। यह निर्माण के लिए उत्तम स्थानों में से एक है। यहाँ स्थित रसोई व्यक्ति की आर्थिक स्थिति बेहतर करती है और रुके हुए धन को प्राप्त करने में भी मददगार होती है।

कुछ लोग अज्ञानतावश सेप्टिक टैंक का निर्माण भी आग्नेय कोण में करवा लेते है जो वास्तु दोष का कारण बनता है तथा परिणामस्वरूप उन्हें स्वास्थ्य संबंधित परेशानियों का सामना करना पड़ता है। हमेशा ध्यान रखने योग्य बात है कि आग्नेय दिशा ईशान और वायव्य से भारी होनी चाहिए, लेकिन यह नैऋत्य दिशा से हल्की हो इस बात का ध्यान रखना भी अत्यंत आवश्यक है।

भूखंड में आग्नेय कोण का बढ़ा होना या इस दिशा में किसी प्रकार का गड्ढा होना बेहद अशुभ होता है। क्योंकि इस प्रकार के भूखंड में आग्नेय दिशा में अग्नि तत्व आवश्यकता से अधिक बढ़ जाता है। नतीजे में घर के लोगों का पित्त बढ़ जाता है और वे उच्च रक्तचाप, पेट की गड़बड़ी, पेट में अल्सर और यहाँ तक की हृदय रोग के भी शिकार हो जाते है। इस प्रकार का बढ़ा हुआ आग्नेय कोण कानूनी विवाद, अग्निभय और दुर्घटनाओं का भी कारण बनता है।

इस दिशा के भवन में यदि आग्नेय कोण दक्षिण की तरफ ज्यादा बढ़ा हो तो शत्रुता एवं घर की महिलाओं के रोगग्रस्त होने की आशंका रहती है। अक्सर लोग एक गलती करते है इस दिशा को बंद कर देते हैं। सनद रहे आग्नेय दिशा को बंद न करें, इस दिशा में छोटा दरवाजा अथवा खिड़की अवश्य ही रखें। इस दिशा को बंद करने से विकास में गतिरोध आ जाता है और आकस्मिक दुर्घटनाओं की सम्भावना भी रहती है।

वास्तु के अनुसार, भोजन पकाते समय हमेशा आपका मुख पूर्व दिशा में रहे तो इसे शुभ माना गया है। दरअसल, ऐसे में उस दिशा की सकारात्मक ऊर्जा आपको प्राप्त होती है और आप अपना काम बेहतर कर पाते हैं। हालांकि ईशानकोण में किचन का निर्माण बिल्कुल निषेध माना गया है।

बृहत्संहिता में कहा गया है-

“यत्र कुत्सितं वस्तु स्थानं तत्र दोषो भवेत् ध्रुवम्” अर्थात जिस स्थान पर वास्तु दोषपूर्ण है, वहाँ निश्चित रूप से दोष (नुकसान) होगा। वास्तु शास्त्र कहता है- “वास्तुदोषेण विनश्यति कुलं वास्तुदोषेण विनश्यति धनम्” इसका आशय है वास्तु दोष के कारण कुल (परिवार) और धन दोनों का नाश हो सकता है। -सुमित व्यास, एम.ए. (हिंदू स्टडीज़), काशी हिंदू विश्वविद्यालय, वाराणसी, मोबाइल – 6376188431

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