बीकानेर abhayindia.com पंचायती राज चुनावों के लिये पहले चरण के कार्यक्रम की घोषणा के साथ ही जिले के ग्रामीण अंचलों में सियासी माहौल परवान चढना शुरू हो गया है। इधर कांग्रेस व भाजपा के रणनीतिकार पंचायत चुनाव के जरिए गांवों में अपनी पकड़ बनाने के प्रयास में जुट गई हैं।
फिलहाल प्रमुख पार्टियां की रणनीति बिना सिम्बल ही कार्यकर्ताओं को सरपंच व पंच के चुनाव में उतारने की है, जिससे पार्टियों को निकाय चुनाव की तरह बगावत की समस्या नहीं झेलनी पड़े। ग्रामीण जन प्रतिनिधियों के अनुसार ग्राम पंचायत के सरपंच का चुनाव कहने में भले ही छोटा लगे, लेकिन पंचायत राज संस्थाओं में ग्राम पंचायत महत्वपूर्ण कड़ी होने से जिले की राजनीति में सरपंचों का रोल बड़ा रहा है।
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अभी तक की रणनीति के तहत कांग्रेस व भाजपा ने सरपंच व पंच पद के चुनाव में सिम्बल पर प्रत्याशी नहीं उतारने का निर्णय किया है, लेकिन दोनों ही पार्टियों के नेताओं की चाहत उनकी विचारधारा से जुड़े कार्यकर्ताओं को सरपंच व पंच पद का चुनाव लड़वाने की है। दोनों ही पार्टी के पंचायत चुनाव के रणनीतिकार ग्राम पंचायतों में अपनी विचारधारा से जुड़े लोगों की पहचान कर सरपंच व पंच पद के चुनाव में उतारने की तैयारी में जुटे हैं।
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पंचायत चुनाव में प्रमुख राजनीतिक पार्टियां सरपंच व पंच पद के चुनाव में सिम्बल पर प्रत्याशी नहीं उतारती। राजनीतिक दलों से जुड़े लोगों का मानना है कि सरपंच का चुनाव महत्वपूर्ण होने के बाद भी प्रमुख पार्टियों की ओर से सिम्बल पर प्रत्याशी नहीं उतारने के पीेछे प्रत्याशियों की बगावत का भय है। कारण है कि प्रमुख पार्टियां लंबे समय से निकाय चुनाव में सिम्बल पर प्रत्याशी उतारती रही हैं, पार्षद पद के चुनाव में पार्टी टिकट के कई दावेदार होने से बगावत का खतरा झेलना पड़ता है।
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इसी बगावत के भय से फिलहाल प्रमुख पार्टियां सरपंच पद के चुनाव में सिम्बल पर प्रत्याशी उतारने से बचती हैं। जानकारी में रहे कि पंचायत समिति व जिला परिषद सहित प्रधान, उप प्रधान, जिला प्रमुख तथा उप जिला प्रमुख के चुनावों की तारीख का ऐलान होना अभी बाकी है। यही कारण है कि सडक़ों पर प्रमुख पार्टियों की भागदौड़ कम दिखाई पड़ रही है, लेकिन ऐसा भी नहीं है कि प्रमुख पार्टियां पंचायत चुनाव को लेकर शांत बैठी हो।