Sunday, November 24, 2024
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कृष्ण के अनन्य भक्त : सूरदास

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भक्ति काव्य की सगुण धारा के कृष्ण भक्ति शाखा के प्रतिनिधि कवि सूरदास का जन्म संवत 1478 ई विक्रम संवत 1535 वैशाख माह शुक्ल पक्ष पंचमी को आगरा से मथुरा जाने वाले मार्ग पर स्थित रूनकता नामक गांव में हुआ था। कुछ विद्वान दिल्ली के समीप सीही नामक गांव को इनका जन्म स्थान मानते हैं। सूरदास सारस्वत गोत्रीय ब्राह्मण थे। इनके पिता का नाम पंडित रामदास सारस्वत और माता का नाम जमुना दास था।

सूरदास बचपन से ही भगवत भक्ति के गायन में रुचि रखते थे। उनके भक्ति पदों को सुनकर महाप्रभु वल्लभाचार्य ने उनको अपना शिष्य बना लिया। सूरदासजी ने महाप्रभु वल्लभाचार्य जी से दीक्षा ली। दीक्षा के बाद गुरु जी के आशीर्वाद से सूरदास जी ने गोवर्धन के श्रीनाथजी के मंदिर में कीर्तन शुरू कर दिया। सूरदास जी ने पांच ग की रचना की – १. सूरसागर २. सूरसरावली ३. साहित्य लहरी ४् नल दमयंती ५् ब्याहहलो।

सूरदासजी की काव्य भाषा ब्रजभाषा है। इनकी भाषा में लोकभाषा और संस्कृत दोनों का समावेश है। सूरदासजी ने अपने काव्य में कृष्ण भक्ति के साथ-साथ कृष्ण के बाल रूप का अत्यंत सुंदर चित्रण किया है। हिंदी साहित्य में इनको सूर्य की उपाधि दी गई है। सूरदास जी अपने जीवन के अंतिम समय में गोवर्धन के पारसौली नामक स्थान पर रहे। यही पर सन 1583 ईस्वी संवत् 1640 में इनका देहावसान हो गया। –जय प्रकाश शर्मा, लिपि एवं पांडुलिपि विशेषज्ञ, जयपुर

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