








बीकानेर (आचार्य ज्योति मित्र) राजस्थान सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे देवीसिंह भाटी ने नए साल के शुरुआत में एक बड़ी लड़ाई का बिगुल बजा दिया है। इस बार मुद्दा गोचर, ओरण व चारागाह की जमीन पर हुए अतिक्रमण को नियमित करने के राज्य सरकार के निर्णय के खिलाफ हैं। भाटी ने इस निर्णय के खिलाफ राज्य स्तर पर आंदोलन का एलान किया है। भाटी स्वयं 13 जनवरी से सरह नथानिया गोचर भूमि पर अनिश्चित कालीन धरने पर बैठने की बात कही है। भाटी ने सरकार के इस निर्णय पर पुनर्विचार न करने पर भूख हड़ताल की चेतावनी देकर सियासी तापमान बढ़ा दिया है। इस लड़ाई में भाटी के हथियार वही पुराने है, लेकिन फ्रंट पर इस बार गाय है। गौवंश के लिए बीकानेर शहर से सटी सरह नथानिया गोचर भूमि पर चारदीवारी बनवाने का असम्भव लगने वाले कार्य को वो अपनी ग्रीन आर्मी के बूते पूरा कर चुके है। पिछले दिनों अपने कार्यकर्ताओं के भरपूर दबाव से चुनाव लड़ने की घोषणा करने के बाद से भाटी समर्थक खासे उत्साह में है। उसी दिन बीकानेर बंद के दौरान राष्ट्रवादी संगठन के नेताओ की गिरफ्तारी पर प्रशासन की क्लास लेकर भाटी ने बिना कानूनी कार्यवाही के उनकी रिहाई का मार्ग प्रशस्त किया। भाटी के आह्वान पर हजारों की संख्या मे जुटकर उनके समर्थकों व आम जनता ने परिवर्तन की हवा को तेज कर दिया है।
अपनी साफगोई के लिए जाने जाने वाले राजपूतों के इस खांटी नेता के लिए पहले भी ओरण व गोचर हमेशा से ही प्राथमिकता में रहे हैं। भाटी के करीबी रामकिशन आचार्य बताते हैं कि एक बार कांग्रेस सरकार में बीकानेर जिले के एक कांग्रेसी नेता को गोचर की जमीन पेट्रोल पंप के लिए अधिग्रहित कर आवंटित कर दी। पता चलने पर भाटी ने राजस्थान विधानसभा को इस मुद्दे पर हिला कर रख दिया। भाटी ने तत्कालीन गृह मंत्री गुलाबसिंह शक्तावत से कहा यदि गोचर की जमीन पर ये अधिग्रहण निरस्त नहीं किया गया तो वो वे गौ प्रेमियों के साथ पेट्रोल पम्प को आग लगा देंगे। विधानसभा में गोचर के मुद्दे पर भाटी के इस तरह से गरजने से सरकार की काफी किरकिरी हुई। अंततः सरकार को झुकना पड़ा व फैसले को पलटना पड़ा। अब जब राज्य सरकार ने इस भूमि पर हुए अतिक्रमण को नियमित कर पट्टे देने का निर्णय लिया तो भाटी ने अपने अस्त्र–शस्त्र निकालकर अनशन व भूख हड़ताल की घोषणा कर दी। पानी मे रहकर मगर से बैर रखना हर किसी के बस की बात नहीं है। इसके लिए जिस ज़िगर की जरूरत होती है वो देवी सिंह भाटी के पास है। सरकारों से दो– दो हाथ करना उनका पसंदीदा शगल है। अपनी साफगोई के लिए अपने समर्थकों व जनता में अलग ही छवि रखते है। सुविधा की राजनीति के लिए कभी समझौता नहीं करने वाले जमीन से जुड़े भाटी ने अपने राजनीतिक जीवन की शुरूआत के बाद लगातार चुनाव जीतने वाले राजस्थान के एकमात्र करिश्माई नेता है, जिनका ब्राह्मणों, मुसलमानों, राजपूतों, पिछड़े वर्ग, आरक्षण से वंचित सहित अन्य वर्गों में खासा प्रभाव है।
नब्बे के दशक में भाजपा की शेखावत सरकार को बचाने के लिए जनता दल दिग्विजय का भाजपा में विलय करवाकर राज्य की राजनीति की धारा को ही बदल दिया था। यही वो दौर था जिसमें भाटी ने सामाजिक न्याय मंच नाम से आरक्षण आंदोलन शुरू किया था। राजस्थान के लगभग हर जिले में उस दौर की रैलियों में उमडऩे वाली भीड़ ने राष्ट्रीय स्तर पर राजनीतिक प्रेक्षकों का ध्यान अपनी ओर खींचा। ये इस कद्दावर नेता का ही कमाल था जिसने भाजपा को पहली बार बीकानेर से भाजपा का सांसद दिया। एक अरसे से भाटी अपना पूरा ध्यान भारतीय संस्कृति की धरोहर आयुर्वेद व गोचर भूमि को बचाने, सेवण घास व गौधन को बचाने के लिए अपने स्तर प्रयास कर रहे है। इस बीच, राज्य सरकार के गोचर पर पट्टे जारी करने के इस निर्णय ने भाटी को एक बड़ा राजनीतिक मुद्दा दे दिया है। वहीं, गौधन पर अपनी प्रतिबद्धता के कारण भाटी संघ के शीर्ष पदों पर बैठे पदाधिकारियों की आंखों में चढ़ गए है।
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