








बीकानेर abhayindia.com मदर्स डे वाली माता कौन है जिसके लिए वर्ष में एक बार दिवाली होली की तर्ज़ पर त्योहार मनाना चाहते है ? शेष वर्ष (364 दिन ) के लिए चर्चा से बाहर।
पूरे साल में केवल एक ही दिन मदर्स डे क्यों मनाते है, क्या बस यही समर्पण है, बस हमारी अपनी मां के प्रति आभार जताने के लिये ?
मां हमेशा हमें समस्याओं से उभारने में मदद करती है और हम सिर्फ एक ही दिन मदर्स डे मना कर इतिश्री कर लेते है। क्या हो गया हमारे संस्कारों को ? यह बेहद चिंताजनक विषय है।
चिंताजनक इसलिए है कि कुछ लोग घर में अपनी मां से इज्जत से बात तक नहीं करते है, वहीं लोग दिखावे के खातिर सोशल मीडिया में अपनी मां को प्यार भरा संदेश लिखकर फोटो शेयर करते है। आज तो मानो की माँ के प्रति प्रेम फूट रहा है , यह सब नक़ली चहेरे है , कोई अपवाद स्वरूप हो वो अलग बात है। इनकी असलियत तो यह है की घर में प्रवेश करते ही माँ के सामने ऐसे पेश आते है जैसे की कोई इनसे रिश्ता ही ना हो।
नक़ली चेहरों की बात यहीं ख़त्म नाहोती है, जब माँ बीमार होती है तो हॉस्पिटल ले जाने के लिए एक दूसरे पर थोपते रहते है । यहीं नहीं उन्हें जब यह पूछा जाता है की माँ किसके साथ रहती है , तब कहते है मेरे साथ। अरे ! माँ आपके साथ रहती है या आप माँ के साथ।
यह दिखावटी प्रेम की ख़ौफ़नाक तस्वीर तो यह की शादी के बाद माँ को शक की नज़र से देखते है, माँ की बात पर विश्वास ही ना होता है, और कल आई पत्नी पर अपरंपार विश्वास।
अगर मां भी ऐसा करने लगी तो हमारा क्या होगा ? लेकिन मां अपने बच्चों के लिए ऐसा कभी नहीं करती है। इसलिए मां को मां समझे न कि एक फार्मेलिटी अदा करें।
क्या कोई माँ के लिए निश्चित दिन हो सकता है ? क्या कोई भी दिन उसके बाहर होना सम्भव है?
तब क्या अर्थ एक दिन का मदर्स डे का। ये सब नक़ली चेहरे है जीवन के। असंभव को सम्भव करने वाली माँ के लिए कोई विशेष दिन नहीं होता है बल्कि हर पल होता है।





