








बीकानेर abhayindia.com सरकार ने लोगों को सूचना पाने के लिए आरटीआई कानून दिया है, लेकिन अफसर जानकारी देने के बजाय छिपाने के लिए कानूनी गलियां तलाशते हैं। राज्य सूचना आयोग तक पहुंचने वाले ऐसे मामलों की संख्या सर्वाधिक है। अब आयोग ने सूचना अधिकारियों के साथ विभाग के आला अफसरों की जिम्मेदारी तय करना शुरू कर दी है। सूचना अधिकार के तहत आमतौर पर आवेदक को 30 दिन में जानकारी मिल जानी चाहिए, लेकिन आयोग में ऐसे मामले भी सामने आए हैं, जिनमें तीन–तीन साल तक लोगों को जानकारी नहीं मिली।
इस मामले में बीकानेर नगर विकास न्यास और नगर निगम का नाम सबसे प्रमुखता पर है। न्यास और नगर निगम के अधिकारी सूचना अधिकार अधिनियम के तहत सूचनाएं उपलब्ध कराने के बजाय किसी ना किसी बहाने सूचनाएं छुपाने में ज्यादा जोर रखते है। नगर निगम से जुड़ा एक मामला तो सोशल मीडिया की सुर्खिया बना हुआ है। मामले के अनुसार आवेदक ने गंगाशहर रोड़ पर हरियाणा होटल के पास बन रही बहुमंजिला बिल्डिंग की नक्शा स्वीकृति से जुड़ी कुछ सामान्य जानकारी सूचना अधिकारी के तहत मांगी थी, लेकिन निगम के लोक सूचना अधिकारी ने तीसरे पक्ष का बहाना बना कर सूचनाएं देने से इंकार कर दिया, जबकि इससे पहले पवनपुरी और रानी बाजार में बनी एक बहुमंजिला इमारत की नक्शा स्वीकृति एवं इजाजत तमारी से जुड़ी सूचनाएं नगर निगम मुहैया भी करवा चुका है।
इसी तरह नगर विकास न्यास की ओर से भी अवैध अतिक्रमणों के खिलाफ की गई कार्यवाही की रिपोर्ट से जुड़ी सूचनां देने से भी आनाकानी की जा रही है। ऐसा ही आलम पीबीएम होस्पीटल और चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग के जिला मुख्यालय में है। जहां भ्रष्टाचार से जुड़े मामलों से बचने के लिये आरटीआई के तहत मांगी गई सूचनाएं देने से बचने के लिये कानूनी गलियां निकालते है।
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