








बीकानेर abhayindia.com सार्दुलगंज क्षेत्र में अतिक्रमण को लेकर चले लंबे घटनाक्रम ने प्रदेश की राजधानी जयपुर के पृथ्वीराज नगर के बहुचर्चित मामले की याद दिला दी। दोनों ही मामलों की पडताल में कई समानताएं भी देखने को मिली। जयपुर के पृथ्वीराज नगर में जैसे जेडीए वर्षों से रह रहे लोगों के आशियाने ध्वस्त करने पर आमादा था, जबकि लोग मौके से टस से मस होने को तैयार नहीं थे। लिहाजा जन आंदोलन की नींव पड़ गई और उसमें तत्कालीन यूनिवर्सिटी के छात्र नेता और वर्तमान में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता प्रताप सिंह खाचरियावास बडा राजनीतिक चेहरा बनकर उभरे।
आपको बता दें कि सार्दुलगंज प्रकरण में भी कमोबेश ऐसी ही परिस्थितियां सामने आई है। यहां भी लोग इस मामले ने जन आंदोलन की शक्ल लेनी शुरू कर दी। इसमें प्रताप सिंह की तरह सुरेन्द्र सिंह शेखावत उभर कर सामने आए। छात्र राजनीति के समय से ही संजीदा होकर मसलों पर बात करने वाले सुरेन्द्र सिंह शेखावत भाजपा के उभरते चेहरे हैं। ऐसे में उन्हें न केवल सार्दुलगंज में अतिक्रमण की कार्रवाई से डरे हुए निवासियों का साथ मिला, बल्कि दलगत राजनीति से ऊपर उठते ही अन्य दलों के युवा व वरिष्ठ नेता भी संघर्ष में उनके साथ नजर आए। आखिरकार सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के निर्णय को निरस्त करते हुए एकबारगी राहत दे दी है, लेकिन संघर्ष अभी खत्म नहीं हुआ है। कानूनी दांव-पेच के चलते ऊंट किस करवट बैठेगा, यह तो आने वाला समय ही बताएगा।
…और आंदोलन में ऐसे जुटते गए लोग
सार्दुलगंज अतिक्रमण के मामले में यूआईटी ने 21 मई 2019 को जोधपुर उच्च न्यायालय के निर्णय की अनुपालना में आकस्मिक निविदाएं निकाल कर अतिक्रमण हटाने की मुनादी भी जारी कर दी। इससे क्षेत्र के निवासियों में खलबली सी मची गई। वे अफसरों और नेताओं के चक्कर काटते रहे, लेकिन सब जगह से एक ही जवाब मिला- हाईकोर्ट का आर्डर है…। ऐसे में उकताए 48 से 50 डिग्री तापमान के बीच धरने पर बैठने को विवश हो गए। इसी बीच भाजपा नेता सुरेन्द्र सिंह शेखावत के प्रयास से कई नेताओं ने दलगत राजनीति से ऊपर उठते हुए धरनार्थियों के साथ बैठ गए। इसके साथ ही जयपुर के पृथ्वीराज नगर जैसे आंदोलन की नींव यहां भी पड गई।
बेटा म्हारो टापरो बचा ले…
धरनार्थियों में भी उम्मीद की नई लौ जल उठी। धरने का दायरा बढाने के लिए कोई अपने घर से दरी ले आया तो कोई पानी से भरी मटकियां। रशीदा मौसी तो धरनार्थियों के लिए पंखियां तक लेकर धरनास्थल पहुंच गई। वो कहने लगी सुरेन्द्र बेटा म्हारो टापरो बचा ले…। इसी आंदोलन के दरम्यान दो युवक टावर भी चढ गए, लेकिन सर्वदलीय नेताओं ने बिना शर्त उन्हें नीचे उतार कर आंदोलन को उग्रता की ओर जाने से रोका। इस बीच धरने पर भी धरनार्थियों की संख्या दिनोंदिन बढने लगी। सुप्रीम कोर्ट से जब राहत मिली तो लोगों ने भी सर्वदलीय संघर्ष समिति के नेता सुरेन्द्र सिंह शेखावत, विधायक सिदिधकुमारी, शशिकांत शर्मा, हारून राठौड, अशोक भाटी, दुर्गा सिंह, शब्बीर अहमद, विक्रम भाटी, विष्णु साध, मनोज बिश्नोई, प्रेम बिश्नोई, नवरतन सिंह का साफा पहनाकर अभिनंदन किया।
अब इनको मिलेगा सुनवाई का मौका
सार्दुलगंज मामले में सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट का 21 मई का आदेश रद्द कर दिया और मामला पुन: सुनवाई के लिए हाईकोर्ट को लौटा दिया है। हाईकोर्ट से यह भी कहा कि कच्ची बस्ती वालों को सुनवाई का मौका दिया जाए, इसके बाद ही आदेश पारित हो। न्यायाधीश इंदिरा बनर्जी व न्यायाधीश अजय रस्तोगी की खण्डपीठ ने सोमवार को यह आदेश दिया। सुप्रीम कोर्ट ने बस्ती वालों को इस मामले में पक्षकार बनाकर हाईकोर्ट को उनका पक्ष सुनने का भी आदेश दिया है। ध्यान में रहे कि इससे पहले हाईकोर्ट ने 21 मई को चार सप्ताह में कच्ची बस्ती का अतिक्रमण हटाने का निर्देश दिया था, जिसे प्रेम कुमार विश्नोई ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। विश्नोई की ओर से अधिवक्ता शेखरप्रीत झा ने कोर्ट को बताया कि हाईकोर्ट ने कच्ची बस्ती वालों का पक्ष सुने बिना ही चार सप्ताह में कार्रवाई करने का आदेश दे दिया। वरिष्ठ अधिवक्ता मनिन्दर सिंह ने कहा कि बस्ती 60 साल से बसी हुई है।





