







बीकानेर Abhayindia.com जैन श्वेताम्बर खरतरगच्छ के जैनाचार्य पीयूष सागर सूरीश्वर ने मंगलवार को ढढ्ढा चौक में धर्मचर्चा में कहा कि मन से अशुभ नहीं शुभ चिंतन करें। देव, गुरु व धर्म का आलम्बन लेकर किसी भी भय से भयभीत नहीं हो। बीमारी, दुःख व तकलीफ को समता भाव से आत्म-परमात्म चिंतन के साथ सहन करें।
आचार्यश्री की ओर से प्रस्तुत विषय का विस्तार करते हुए बीकानेर के मुनि सम्यक रत्न सागर ने मन की विभिन्न स्थितियों का वर्णन करते हुए कहा काम, क्रोध, लोभ, मोह, राग, द्वेष, बैर भाव, कुंठा से मन के भाव बिगड़ जाते है। दूसरों की बजाए अपने दोष देखें तथा उसको दूर करने के प्रयास करें। भावनाओं व कोरी कल्पनाओं से मन को नहीं बिगाड़े।
उन्होंने अकस्मात भय, मृत्यु भय आदि भयों का वर्णन करते हुए कहा कि त्रियंच से लेकर देव तक गति मे मृत्यु का भय सबको रहता है। आयुष्य के पूर्ण होने के दौर में मृत्यु के भय को समता से भोगना समाधि में रहना धर्म है। श्री सुगनजी महाराज का उपासरा ट्रस्ट व श्री जिनेश्वर युवक परिषद की ओर से आचायश्री के दर्शन वंदन करने आए छतीसगढ व अन्य स्थानों के श्रावकों का अभिनंदन किया गया।



