Sunday, May 19, 2024
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संयुक्त निदेशक कॉलेज शिक्षा के पद पर प्राचार्य के स्थान पर प्रशासनिक सेवा का अधिकारी लगाने का विरोध

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बीकानेर Abhayindia.com राज्य सरकार की ओर से हाल में जारी आर..एस. तबादलासूची में आयुक्तालय, कॉलेज शिक्षा राजस्थान, जयपुर में संयुक्त निदेशक के पद पर प्राचार्य की नियुक्ति की नियमगत व्यवस्था के विपरीत राजस्थान प्रशासनिक सेवा के एक अधिकारी की नियुक्ति का विरोध करते हुए एबीआरएसएम राजस्थान ने इसे अविलंब रद्द करने की मांग मुख्यमंत्री से की है।

इस संबंध में एबीआरएसएम राजस्थान (उच्च शिक्षा) के महामंत्री डॉ. सुशील बिस्सु ने मुख्यमंत्री को ज्ञापन प्रेषित कर बताया है कि कि इस तरह की नियुक्तियाँ राज्य सरकार के जन घोषणा पत्र के पूर्णतः विरुद्ध हैं, जिसके अनुसार प्रदेश के महाविद्यालयों एवं विश्वविद्यालयों की अकादमिक स्वतन्त्रता और स्वायत्तता को सुनिश्चित किये जाने की घोषणा की गयी थी। यह नियुक्ति उच्चशिक्षा की अकादमिक स्वायत्तता पर सरकार का प्रहार है।

डॉ बिस्सु के अनुसार कालेज शिक्षा में नियुक्ति के नियमों के संबंध में 31 जनवरी 2018 को प्रसारित गजट अधिसूचना में संयुक्त निदेशक, कॉलेज शिक्षा के पद पर केवल प्राचार्य की नियुक्ति का स्पष्ट प्रावधान है, इसके विपरीत संयुक्त निदेशक के पद पर राजस्थान प्रशासनिक सेवा के अधिकारी को नियुक्त कर राज्य सरकार ने गजट अधिसूचना का खुला उल्लंघन किया है।

इस व्यवस्था से अनुभव की दृष्टि से कनिष्ठ अधिकारी अपने से वरिष्ठ प्राचार्य व शिक्षक अधिकारियों को प्रशासित करेंगे। इस अपमानजनक, अवैधानिक और अनुचित विसंगति से उच्च शिक्षा में सेवारत अनुभवी शिक्षकों का मनोबल और कार्यक्षमता प्रभावित होगी तथा राज्य का शैक्षिक पर्यावरण दुष्प्रभावित होने की संभावना है। सरकार का यह कदम उच्च शिक्षा को नौकरशाही के नियन्त्रण की ओर ले जाने वाला कृत्य है।

एबीआरएसएम राजस्थान (उच्च शिक्षा) के प्रदेशाध्यक्ष डॉ. दीपक शर्मा ने कहा कि शिक्षा जैसे संवेदनशील तंत्र के संचालन को उच्च शिक्षा क्षेत्र के विशिष्ट अनुभवी शिक्षकों के हाथ से छीन कर पूर्णत: प्रशासनिक तन्त्र के अधीन कर देना निश्चित रूप से राज्य की उच्च शिक्षा के लिए प्रतिगामी कदम है।

डॉ बिस्सु ने बताया कि राज्य सरकार के इस आदेश से महाविद्यालय शिक्षा के समस्त शिक्षक अत्यंत क्षुब्ध एवं आक्रोशित है। यदि इस आदेश को निरस्त नहीं किया गया तो राज्य की उच्च शिक्षा में नौकरशाही का अनावश्यक, अनुचित और अवैधानिक हस्तक्षेप रोकने और शिक्षकों की गरिमा की रक्षा के लिए प्रदेश के महाविद्यालयशिक्षकों को आन्दोलनात्मक कदम उठाने के लिए विवश होना पड़ेगा।

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