






विद्यालय किसी भी बच्चे के जीवन में शिक्षा का प्रथम और सबसे महत्त्वपूर्ण स्थान होता है। स्कूल में बच्चे केवल किताबों का ज्ञान नहीं प्राप्त करते, बल्कि वहाँ वे जीवन जीने की कला भी सीखते हैं। ऐसे में स्कूल का वास्तु सम्मत होना अत्यावश्यक है।
स्कूल के लिए सबसे पहले यह ध्यान रखना जरूरी साइट का आकार नियमित हो, जैसे कि आयताकार या वर्गाकार। नियमित आकार वाले भूखंडों को स्कूल भवन के लिए भाग्यशाली माना जाता है। अनियमित आकार वाले भूखंड, जैसे कि त्रिकोण, वृत्त और विस्तारित कोने, स्कूलों के लिए उपयोग करने के लिए उपयुक्त नहीं हैं।
किसी भी स्कूल भवन के लिए पूर्व, उत्तर-पूर्व या उत्तर दिशा से प्रवेश द्वार बनाना बहुत ही शुभ माना जाता है। इसलिए, स्कूलों में प्रवेश द्वार पूर्व, उत्तर या उत्तर-पूर्व दिशा से होना चाहिए। अगर स्कूल की इमारत बहुत बड़ी है और दो या अधिक प्रवेश द्वारों की आवश्यकता है, तो इन दिशाओं में प्रवेश द्वार बनाएं।
भवन का मुख्य निर्माण दक्षिण, पश्चिम या दक्षिण-पश्चिम दिशा में किया जाए। वास्तु के अनुसार, स्कूल भवन का निर्माण करते समय, सकारात्मक ऊर्जा के त्वरित प्रवाह के लिए पूर्वी और उत्तरी क्षेत्रों में पर्याप्त जगह होनी चाहिए। वास्तु के अनुसार] कक्षा का प्रवेश द्वार पूर्व दिशा में होना चाहिए। ब्लैकबोर्ड को पूर्व दिशा की ओर मुख करके रखा जाना चाहिए। विद्यार्थियों को इस तरह बैठाया जाना चाहिए कि उनका मुख पूर्व या उत्तर की ओर हो। विद्यालय के वास्तु के लिए एक श्लोक है । विद्यार्थी पूर्वमुखो भूत्वा शृणुयात् श्रुतिं शुभाम्। अध्यापकश्च पश्चिममुखो भूत्वा अध्यापयेत् सदा। इसका आशय है- “विद्यार्थी को पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठना चाहिए और अध्यापक को पश्चिम दिशा की ओर मुख करके पढ़ाना चाहिए।”
यह ध्यान रखना चाहिए कि स्कूल भवन निर्माण के लिए वास्तु में सलाह दी गई है कि निर्माण के दौरान बीम को इस प्रकार रखा जाए कि कोई भी छात्र उसके ठीक नीचे न बैठें। कक्षा में शिक्षक की मेज फर्श से ऊपर होनी चाहिए। इससे छात्रों और शिक्षक की उत्पादकता बढ़ती है। स्कूल के पूर्व, उत्तर-पूर्व या उत्तर दिशा में पीने के पानी की व्यवस्था करें। पीने का पानी, स्विमिंग पूल, फव्वारे, भूमिगत जल भंडारण आदि।
प्रयोगशाला मुख्य भवन के दक्षिण-पूर्व में स्थित होनी चाहिए। प्रयोगशाला में अभ्यास करते समय छात्रों का मुख पूर्व या उत्तर दिशा में होना चाहिए। विद्युत उपकरणों, जैसे जनरेटर, मुख्य बिजली स्रोत, बिजली मीटर, मुख्य स्विच आदि के लिए आदर्श स्थान दक्षिण-पूर्व में है। स्कूल के उत्तर-पश्चिम कोने में कार्यरत कर्मचारियों और शिक्षकों के उपयोग के लिए एक स्टाफ़ रूम उपलब्ध कराएं। स्टाफ़ रूम में पर्याप्त रोशनी और हवादार व्यवस्था होनी चाहिए।
आपको स्कूल भवन के उत्तर, उत्तर-पूर्व या पूर्व में शौचालय नहीं बनवाना चाहिए। शौचालय एक के नीचे एक और एक ही दिशा में व्यवस्थित होने चाहिए यदि कई मंजिलें हैं और प्रत्येक मंजिल पर एक है। स्कूल की कैंटीन दक्षिण-पूर्व दिशा में होनी चाहिए और बच्चों को भोजन देने वाले व्यक्ति का मुख पूर्व दिशा में होना चाहिए। ऐसा करने से यह सुनिश्चित होता है कि छात्र भूखे न रहें और लौटने से पहले उनके पास खाने के लिए भरपूर भोजन हो।
प्रबंधन विभाग या प्रिंसिपल का कार्यालय स्कूल भवन के दक्षिण-पश्चिम या दक्षिण में बनाया जाना चाहिए। सुनिश्चित करें कि उनके बैठने की व्यवस्था इस तरह से हो कि काम करते समय उनका मुख उत्तर, उत्तर-पूर्व या पूर्व की ओर हो। स्कूल में खेल का मैदान स्कूल की इमारत और छात्रों के लिए एक ज़रूरी हिस्सा है। खेल का मैदान स्कूल की इमारत के पूर्व, उत्तर या उत्तर-पूर्व दिशा में होना चाहिए। इससे छात्रों को अपनी ऊर्जा और उत्साह बनाए रखने में मदद मिलती है।
स्कूल के कार्यालय में रिसेप्शन क्षेत्र भी शामिल है। जब कोई आगंतुक पहली बार स्कूल परिसर में आता है, तो वह पूछताछ करने के लिए वहाँ जाता है। रिसेप्शन क्षेत्र स्कूल के मुख्य प्रवेश द्वार के ठीक बाद, भवन के पूर्व, उत्तर या उत्तर-पूर्व कोने में स्थित होना चाहिए। माता-पिता और बच्चों को आकर्षित करने के लिए, यह सबसे वांछनीय दिशा में होना चाहिए।
स्कूल की इमारत में लाइब्रेरी पश्चिम दिशा की ओर होनी चाहिए। सुनिश्चित करें कि छात्र लाइब्रेरी में इस तरह बैठें कि वे अपना मुंह उत्तर, पूर्व या उत्तर-पूर्व दिशा में करके पढ़ सकें। किताबों की अलमारियाँ दक्षिण, पश्चिम और पश्चिमी दीवारों में बनाएँ। लाइब्रेरी के केबिन को दक्षिण-पश्चिम दिशा में केंद्रीय स्थान के रूप में स्थापित करें। वास्तु की बात हो तो रंग को छोड़ा नहीं जा सकता नीला और हरा रंग शांत और ध्यान केंद्रित करने के लिए उत्कृष्ट है, पीला रंग रचनात्मकता और ध्यान को उत्तेजित करने के लिए और लाल रंग ऊर्जावान गतिविधियों के लिए है। कक्षा के माहौल में इन रंगों को सोच-समझकर संतुलित करने से छात्रों की भलाई और शैक्षणिक प्रदर्शन में सुधार हो सकता है।
केस स्टडी-1 : मैंने एक स्कूल का अवलोकन किया जो पूर्व मुखी थी। उसमें सभी कार्य ढंग से चलते थे परंतु उस स्कूल को वह ऊचाइयाँ नहीं प्राप्त हुई जो होनी चाहिए थी। उसका वास्तु के अनुसार यह कारण था कि स्कूल के आग्नेय कोण में शौचालय था और उसी से सट कर ही जल का स्थान था, साथ ही वह स्कूल भी नियमित आकार की नहीं थी।
केस स्टडी-2 : मैंने एक स्कूल दक्षिण मुखी देखी जो बहुत अच्छी थी। यह स्कूल आधी कच्ची थी तथा आधी पक्की थी । परंतु वास्तु के अनुकूल थी। स्कूल में थोड़े से समय के बाद निर्माण कार्य हुआ इसमें यह गलती हो गई कि इसका दक्षिण का हिस्सा थोड़ा नीचे रह गया । बस यहाँ से इस स्कूल की अवनति शुरू हो गई। इस स्कूल में बालकनी में टॉयलेट भी था जो नैऋत्य कोण में था।
केस स्टडी-3 : हमारे शहर का एक बड़े नाम वाला स्कूल देखते ही देखते खाली हो गया। मैंने स्कूल के प्रबंधन के आग्रह पर वहां का विजिट किया तो देखा कि ईशान कोण में उन्होंने शौचालय बना रखे थे। इसके अलावा प्रिंसिपल का कमरा आग्नेय कोण में था जिससे उनके जीवन में कभी तनाव खत्म ही नहीं हुए। स्कूल के मालिक ने अपनी टेबल कुर्सी भी गलत दिशा में लगा रखी थी। नतीजा यह कि उस स्कूल के तीन-चार बार मालिक बदले लेकिन सफलता किसी को हासिल नहीं हुई। आज की तारीख में इस स्कूल में छात्र संख्या शून्य है स्कूल कागजों में ही चल रही है। समय रहते स्कूल प्रबंधन यदि इन कमियों को सुधार ले तो फिर से यह स्कूल भवन बच्चों के शोर से से गूंज उठेगा।
विद्यालय का वास्तु एक महत्वपूर्ण विषय है जो छात्रों के शैक्षिक प्रदर्शन और समग्र विकास पर प्रभाव डाल सकता है। वास्तु दोषों को कम करने के लिए विद्यालय में वास्तु पूजा करना और वास्तु दोषों को कम करने के लिए उपाय करना। विद्यालय में पौधे लगाना और उनकी देखभाल करना। विद्यालय में रंग और प्रकाश का संतुलन बनाए रखना। इन वास्तु सुझावों का पालन करके आप अपने विद्यालय को अधिक सकारात्मक और शैक्षिक बना सकते हैं। -सुमित व्यास, एम.ए (हिंदू स्टडीज़), काशी हिंदू विश्वविद्यालय, वाराणसी, मोबाइल – 6376188431
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