Saturday, May 4, 2024
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राष्ट्रीय चेतना के पहले कवि बांकीदास : गिरधरदान

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बीकानेर abhayindia.com राजस्थानी काव्य की डिंगल शैली के मर्मज्ञ विद्वान गिरधरदान रतनू दासोड़ी का मानना है कि कविराजा बांकीदास आशिया देश में राष्ट्रीय चेतना के पहले कवि थे। रतनू ने बांकीदास के व्यक्तित्व और कृतित्व पर प्रकाश डालते हुए बताया कि उन्हें कविराजा की पदवी जोधपुर महाराजा मानसिंह जी ने प्रदान की। वे महाराजा मानसिंह जी के भाषा गुुरु भी थे।

बीकानेर के गिरधरदान रतनू दासोड़ी जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय, जोधपुर के राजस्थानी विभाग द्वारा ऑनलाईन फेसबुक लाइव पेज पर ‘गुमेज व्याख्यानमाला’ के तहत मुख्य वक्ता के रूप में डिंगळ सिरोमणी कविराजा बांकीदास आशिया पर अपना महत्त्वपूर्ण वक्तव्य दिया। गिरधरदान ने बताया कि बांकीदास जी संस्कृत डिंगळ, फारसी, प्राकृत आदि भाषाओं के जानकर थे। उन्होंने लगभग 40 से अधिक ग्रंथों का लेखन किया एवं राजस्थानी भाषा के साहित्य में वृद्धि की। उन्होंने महाभारत का भाषा अनुवाद एवं बाकीदास की ख्यात नामक संग्रह लिख कर यह सिद्ध किया कि भाषा की समृद्धि गद्य सृजन से ही होती है। बांकीदास जी अभिजात्य वर्ग के इतर सामान्य वर्ग के पक्ष में भी अपनी अभिव्यक्ति करने वाले कवि के रूप में जाने जाते हैं।

 

उन्होंने कहा कि जब पूरा देश, देशी राजा, रजवाडे अंग्रेजों के आंतक से आंतकित थे। उस समय भविष्यदृष्टा कवि ने भारतीय जनमानस को सामूहिक रूप से मिलकर अंग्रेजों से मुकाबला करने का आह्वान किया। जनमानस में जोश का संचरण करने वाले एकाएक भारतीय कवि बांकीदास आशिया ने 1857 के गदर के 52 वर्ष पहले यानी 1805 ई. में चेतावनी का गीत लिख दिया था। बांकीदास जी ने आज से लगभग दो सौ वर्ष पहले महिलाओं, बालिकाओं की रक्षा एवं मान सम्मान के लिए आम जनता को अपने काव्य के माध्यम से संदेश दिया था।

 

इस ऑनलाईन व्याख्यानमाला में डॉ. गजेसिंह राजपुरोहित, भंवरलाल सुथार, मानसिंह शेखावत, महेन्द्रसिंह छायण, प्रमोद शर्मा, जगदीश मेघवाल, गोकुल खिडिय़ा, कमल बोराणा, सवाई सिंह महिया, तरूण दाधीच आदि बड़ी संख्या में श्रोता जुड़े रहे। व्याख्यानमाला का संयोजन विश्वविद्यालय के राजस्थानी विभाग की अध्यक्ष डॉ. मीनाक्षी बोराणा ने किया।

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